भारत के बढ़ते कूटनीतिक और सैन्य शक्ति से पहली बार चीन को भय लग रहा है

भारत चीन

संयुक्त राष्ट्र के दूसरे सतत परिवहन सम्मेलन में भारत ने चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) और चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर अपनी सख्त आपत्ति जताई है। हालांकि, जब यूएन में भारत की तरफ से विरोध जताया जा रहा था तब अचानक भारतीय राजनयिक प्रियंका सोहनी का माइक बंद हो गया। माइक को लेकर आए व्यवधान को ठीक करने में कई मिनट लगे जिस कारण चीन को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।

दरअसल, बैठक की मेजबानी खुद चीन कर रहा था।  भारतीय राजनयिक प्रियंका सोहनी के माइक में आ रही दिक्कत को कुछ देर बाद ठीक कर लिया गया, लेकिन तबतक दूसरे वक्ता का वीडियो स्क्रीन पर शुरू हो गया था। अब इस घटना से चीन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल ये कि कहीं चीन ने अपनी फजीहत से बचने के लिए तो भारतीय राजनयिक प्रियंका सोहनी का माइक बंद नहीं करवाया ? क्या पाकिस्तान को जैसे भारत ने धोया था कहीं चीन की भी भारत ऐसी-तैसी न कर दे चीन इसी तो नहीं डरा हुआ था।

वैसे चीन की असुरक्षा के अपने ठोस कारण है। सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर चीन को भारत से डर है और यह डर होना भी चाहिए।

भारत के सैन्य ताकत से भय

2018 से भारत के बारे में अपने लेखों और वीडियो में पीएलए के ऑनलाइन मीडिया ने मुख्य रूप से अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया है, इस विषय पर 23 बार चर्चा की गई है। इसने भारत के रक्षा उद्योग और हथियारों की खरीद पर 21 बार चर्चा की है। अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को अक्सर रूस के साथ उसके संबंधों के साथ जोड़ा गया है, जिस पर 13 बार चर्चा हुई है।

पीएलए मीडिया भारत के हालिया सैन्य अभ्यासों को “बड़े देशों को उकसाने और छोटे देशों को दबाने” की प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित के रूप में देखता है। हथियारों की कुछ खरीद और परीक्षण (जैसे 2021 में अग्नि -5 मिसाइलों) को चीन भारत के उकसावे के रूप में देखता है,  विशेष रूप से 2021 में भारत-चीन सीमा के पास सरप्राइज अटैक अभ्यास।

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हालांकि, चीनी विशेषज्ञों को इस बात का डर है कि नई दिल्ली एक प्रमुख शक्ति है और अपनी सामरिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए एक सैन्य और आर्थिक शक्ति के रूप में अपने स्वयं के विकास में तेजी लाने के लिए यू.एस. के साथ अपने संबंधों का उपयोग करना चाहती है।

इस संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करना था, जो अमेरिकी कंपनियों को निजी भारतीय कंपनियों के साथ संवेदनशील प्रौद्योगिकी साझा करने की अनुमति देता है।

हाल ही में, पीएलए मीडिया के लेखकों और विशेषज्ञों ने इस विचार की पुष्टि की है कि भारत दक्षिण एशिया में अपने प्रभुत्व को मजबूत करने और हिंद महासागर पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के अवसर को देखते हुए अपनी एक्ट ईस्ट नीति को यूएस इंडो-पैसिफिक रणनीति से जोड़ रहा है। यह साबित करता  है कि क्यों भारत ने मेडागास्कर, सेशेल्स, मॉरीशस, मालदीव और  हिंद महासागर के आसपास के देशों में एक सैन्य नेटवर्क स्थापित किया है और अंडमान के पास संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अभ्यास किया।

बीजिंग में पीएलए एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंस द्वारा 2013 में एक पुस्तक में “सैन्य रणनीति का विज्ञान” शीर्षक से भविष्यवाणी की गई थी कि भारत look east policy में तेजी लाएगा जो जापान के दक्षिण-नीति के साथ जुड़ जाएगी और फिर ये दक्षिण चीन सागर में शक्ति असंतुलन का कारण बनेगी।

कूटनीतिक प्रभाव से भारत की बढ़ती ताकत

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तो वैसे चीन अर्थव्यवस्था को पहले की तरह खोलने की बात कही है परंतु, चीन को घटते विदेशी मुद्रा भंडार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में जब भारत आक्रामक रूप से खुद को विदेशी निवेश के लिए एक गंतव्य के रूप में आगे बढ़ा रहा है तब चीन को डर है कि वह FDI की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है।

चीनी राज्य मीडिया इस बात से सहमत हैं कि भारत के पास चीन से बेहतर तकनीकी प्रतिभा है। हाल ही में, ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था, “भारत, पर्याप्त युवा प्रतिभा पूल के साथ, तेजी से आकर्षक होता जा रहा है।“

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जब भारत ने एक बार में पृथ्वी की कक्षा में 37 उपग्रहों को स्थापित करने के रूसी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 104 उपग्रहों को लॉन्च किया, तो चीनी मीडिया ने इस उपलब्धि पर तंज़ कसा था, लेकिन कुछ दिनों बाद उसने अपना रुख ठीक किया और कहा कि चीन अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत से सीख सकता है।

इससे पहले मई 2017 में भारत ने संप्रभुता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए चीन के पहले  बड़े डिप्लोमैटिक इवेंट बेल्ट एंड रोड फोरम के उद्घाटन में उपस्थित नहीं होने की घोषणा की। हालांकि, चीन भारत के अंतिम मिनट के बहिष्कार से नाराज़ थे पर, उन्होंने आधिकारिक तौर पर चुप रहने का फैसला किया। चीन के विदेशी मामलों के टिप्पणीकारों ने कहा कि यह उनकी कूटनीति के लिए एक हल्का झटका था।

अधिकांश चीनी यह भी मानते हैं कि जापान चीन के “शांतिपूर्ण उदय” के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा था पर, “दक्षिणपंथी” राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में भारत की बढ़ती वैश्विक प्रोफ़ाइल ने भारत को चीन के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा बना दिया है।

भारत एक संप्रभु, सहिष्णु और समझदार राष्ट्र है। हम सर्वत्र शांति चाहते हैं लेकिन शांति की स्थापना हेतु युद्ध से भी परहेज नहीं है। भारत “विश्वविजेता” नहीं “विश्वगुरु” बन मानवता के उद्धार का उद्देश्य लेकर चलता है। हम चीन जैसे कुशासन के वाहक नहीं बनना चाहते परंतु, भारत सरकार ने अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं कि अब चीन के ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।

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