सरकार की नई “Coal Block Surrendering” नीति उर्जा क्षेत्र की कंपनियों को खुश कर देगी

बिजली उत्पादन

विश्व के तमाम देश अगर किसी आर्थिक खेल में प्रतिभागी हैं तो भारत इस समय विश्व का सबसे मजबूत खिलाड़ी है। इस खिलाड़ी के पास इस समय सबसे बेहतरीन पोजिशन है। आज जब दुनिया के ज्यादातर देश ऊर्जा संकट और समस्याओं से जूझ रहे हैं तब भारत सीना तान कर खड़ा है। अब भारत सरकार देश में कोयले की आपूर्ति को पूरा करने के लिए नई योजना पर काम कर रही है।

पिछले कुछ समय से यूरोप और पूर्वी एशिया सहित दुनिया भर के देश बिजली संकट का सामना कर रहे हैं। हालांकि, भारत ने अपने उपभोक्ताओं और उद्योगों को निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाए रखी है और इसके पीछे प्राथमिक कारण कोयला उत्पादन में देश का आत्मनिर्भर होना कहा जा सकता है।

भारत के पास दुनिया का 5वां सबसे बड़ा कोयला भंडार है और कुल बिजली उत्पादन का आधे से अधिक मात्रा में उत्पादन थर्मल इलेक्ट्रिसिटी प्लांट के माध्यम से होती है, जो बिजली पैदा करने के लिए कोयले को जलाते हैं।

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देश में कोयले की आपूर्ति अभी भी मांग से कम है और अगर कंपनियां अधिक कोयले का उत्पादन कर सकती हैं तो ना वो केवल घरेलू, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मांग पर भी लाभ कमाएंगी। इस अवसर को देखते हुए भारत सरकार कोयले के उत्पादन में तेजी लाने के लिए तमाम योजनाओं पर विचार कर रही है।

2021-22 के लिए कोयला मंत्रालय के एजेंडे अनुसार, “उन मालिकों को कोयला खदानों को आत्मसमर्पण करने की अनुमति दी जाए जो उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं और आत्मसमर्पण पर लगाए गए दंड को हटा दिया जाएगा।”

एजेंडे के अनुसार, “आवंटित कोयला ब्लॉकों से उत्पादन में तेजी लाने के लिए और व्यापार करने में आसानी के लिए, उन आवंटियों को कोयला ब्लॉक के आत्मसमर्पण की अनुमति देने के लिए एक योजना तैयार की जाएगी जहां वर्तमान आवंटन तकनीकी कारणों से कोयला ब्लॉक विकसित करने की स्थिति में नहीं है।”

आत्मसमर्पण कर चुके खदानों की फिर से जल्द ही नीलामी की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उत्पादन जल्द से जल्द शुरू हो सके और भारत को आने वाले त्योहारी सीजन में बिजली आपूर्ति में रुकावट का सामना न करना पड़े।

पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत का कुल कोयला उत्पादन 2.02 प्रतिशत की गिरावट के साथ 716.084 मिलियन टन दर्ज किया गया था। कोयला मंत्रालय के 2020-21 के अंतरिम आंकड़ों के अनुसार, देश ने वित्तीय वर्ष 2020 में 730.874 मिलियन टन (MT) कोयले का उत्पादन किया था। कुल कोयला उत्पादन में से 671.297 मीट्रिक टन गैर-कोकिंग कोयला था और शेष 44.787 मीट्रिक टन कोकिंग कोयला था।

सार्वजनिक क्षेत्र ने 685.951 मीट्रिक टन उत्पादन किया जबकि शेष 30.133 मीट्रिक टन निजी क्षेत्र द्वारा उत्पादित किया गया।

पिछले कुछ महीनों में वाणिज्यिक खनन की अनुमति के साथ कोयला क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार हुए और सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षम कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के एकाधिकार का अंत हुआ, जिसने दशकों तक कोयला खनन में भारत को पिछड़ा रखा था।

इससे पहले पिछले साल जून में मोदी सरकार ने दुनिया के लिए अपनी कोयला खदानें खोल दीं और प्रधानमंत्री मोदी ने वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया शुरू की। राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियां जितना उत्पादन करने में सक्षम हैं, उसकी तुलना में देश में कोयले की मांग बहुत अधिक है और थर्मल पावर प्लांट कंपनियां और अन्य उद्योग जो कोयले का उपयोग करते हैं उनकी अक्षमता के कारण चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को कोयला आयात करना पड़ता है।

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बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को आयात करने के लिए मजबूर इसलिए नहीं होना पड़ता है क्योंकि देश में कोयले के भंडार की कमी है, बल्कि कोल इंडिया लिमिटेड जैसी कम्पनियों की खनन क्षमता बहुत कमजोर है। कोल इंडिया लिमिटेड और कुछ अन्य निजी कंपनियों के स्वामित्व वाली कई कोयला खदानें बेकार पड़ी हैं क्योंकि वे उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं और नवीनतम योजना से उन उत्पादकों को अधिकार दिया जाएगा जो जल्द से जल्द, ज्यादा से ज्यादा उत्पादन शुरू करने के लिए तैयार हैं।

भारत में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार (106 बिलियन टन) है, जैसे ही बड़े लाभ को देखते हुए निजी खिलाड़ियों द्वारा वाणिज्यिक खनन गति पकड़ेगा, देश कोयला और बिजली क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ होगा।

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