किसी का नुकसान, किसी न किसी का फायदा बन कर सामने आता है। दुनिया के दो देश भारत और चीन, लगभग सभी चीजों में एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं। आबादी से लेकर आर्थिक और सैन्य शक्ति तक, दोनों देशों में तगड़ी प्रतिस्पर्धा है। हालांकि, कोरोना के बाद से एक तरफ जहां चीन दिन प्रतिदिन नई-नई मुसीबतों से घिरता जा रहा है, तो वहीं भारत ने जबरदस्त वापसी करते हुए दुनिया भर में अपना स्थान बना लिया है। दोनों देशों की राष्ट्राध्यक्षों की बात करें, तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश से कदम निकालने से डर रहे हैं, तो वहीं पीएम मोदी दुनिया भर के देशों को भारत के वैक्सीन का लोहा मनवाकर, अब बेधड़क विदेश यात्रा कर रहे हैं। इन यात्राओं से जितना फायदा भारत को हो रहा है, उतना ही नुकसान चीन का हो रहा है। हाल ही में भारत को रणनीतिक रुप से जो भी फायदा हुआ है, वह चीन के नुकसान के बाद ही हुआ है। चाहे विदेशी कंपनियों का चीन से निकलने के बाद भारत की ओर रुख करना हो या फिर अन्य देशों में पीएम मोदी की लोकप्रियता का बढ़ना हो।
और पढ़े: अमेरिका की टॉप एजेंसी ने कोरोनोवायरस संकट के दौरान पीएम मोदी को No.1 पीएम बताया, ट्रम्प सबसे पीछे
दरअसल, विदेश नीति में राष्ट्राध्यक्षों का मित्र देशों की यात्रा को अहम माना जाता है। राष्ट्राध्यक्षों की यात्रा से न सिर्फ रणनीतियों पर बातचीत होती है, बल्कि समस्याओं के समाधान पर बातचीत के साथ-साथ भविष्य के सम्बन्धों की रूपरेखा भी तय होती है। जब से चीन ने कोरोना फैलाया था, तब से इस तरह की यात्राएं लगभग बंद हो चुकी थी। कोरोना के समय राष्ट्राध्यक्ष ऑनलाइन ही बातचीत करते थे, पर ऑनलाइन में वह गर्मजोशी कहां जो साथ मिलकर, गले लग एक दूसरे से बातचीत करने में होती है। पीएम मोदी कोरोना से पहले इसी तरह कई देशों में अपनी छाप छोड़ चुके थे। एक बार फिर से दुनिया खुलने लगी है और पीएम मोदी, भारत की विदेश नीति को एक नयी ऊंचाई देने के लिए एक बार फिर से विदेश के दौरों का आरंभ कर चुके हैं।
इटली पहुंचे हैं पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को इटली के प्रधानमंत्री मारियो ड्रैगी के निमंत्रण पर 29 से 31 अक्टूबर तक 16 वें जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इटली पहुंचे। जहां वह COVID-19 महामारी से प्रभावित वैश्विक अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सुधार पर चर्चा करेंगे। 29-31 अक्टूबर के बीच पीएम मोदी रोम और वेटिकन सिटी का दौरा करेंगे, जिसके बाद वह ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के निमंत्रण पर 1-2 नवंबर से यूके के ग्लासगो की यात्रा करेंगे।
वहीं, कुछ दिनों पहले कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी के बाद पहली बार पीएम मोदी ने अमेरिका की यात्रा भी की थी, तथा QUAD देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में शामिल हुए थे। QUAD की बैठक तो कई मामलों में सफल रही और और चीन से सप्लाई चेन की निर्भरता समाप्त करने पर भी सहमति बनी। यही नहीं, QUAD में शामिल देशों का चीन के मुक़ाबले के लिए रणनीतिक तौर पर साथ आने का लक्ष्य भी पूरा हुआ। एक तरह भारत जहां लगातार विश्व में अपनी बेहतरीन नीतियों से एक अलग पहचान बना रहा है, तो वहीं इससे सबसे अधिक नुकसान चीन को हो रहा है।
और पढ़े: कोवैक्सिन का टीका लगवा कर अमेरिका जाने वाले अकेले भारतीय नहीं रहने चाहिए PM मोदी
600 दिनों से चीन में कैद हैं शी जिनपिंग
दुनिया भर के लोगों को घरों में कैद होने पर मजबूर करने वाले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इन दिनों work-from-home कर रहे हैं और चीन में लगभग 600 दिनों से कैद हैं। CCP के जनरल सेक्रेटरी जिनपिंग पिछले 20 महीनों से चीन के बाहर नहीं निकले हैं। उन्हें इस बात का भी भय है कि चीन द्वारा फैलाए हुए वुहान वायरस के कारण उनकी छवि दुनियाभर में इतनी चौपट हो चुकी है कि उन्हें किसी भी देश में विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ सकता है। चीनी राष्ट्रपति ने 20 महीनों तक अपने ही देश में बंद रहकर एक महारिकॉर्ड कायम किया है। उनसे पहले आज तक कोई भी G-20 लीडर यह कारनामा नहीं कर सका है।
जिनपिंग ने अंतिम बार 18 जनवरी 2020 को चीन के पड़ोसी देश म्यांमार का दौरा किया था। वहां से वापस आते ही वुहान में लॉकडाउन लग गया और कोरोना ने दुनिया में पहली दस्तक दी थी। जिनपिंग, चीन के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं, क्योंकि किसी देश के सबसे बड़े नेता का इस तरह से अपने देश में कैद होना कूटनीतिक दृष्टिकोण से सही नहीं है। एक ऐसे समय में जब चीन की छवि को बड़ा धक्का लगा है तथा दुनिया, चीन को कोरोना महामारी का जिम्मेदार मान रही है, तब यह आवश्यक था कि चीन के सुप्रीम कमांडर दूसरे देशों का दौरा करें और संबंध सुधारे। परंतु इसके ठीक उलट चीन ने हर उस देश के प्रति कड़ा रवैया अपनाया है, जिसने वुहान वायरस को लेकर चीन से सवाल किए हैं। ऐसे में चीन के पास सहयोगी कम ही बचे हैं और जो बचे हैं उनके साथ संबंध तब तक प्रगाढ़ नहीं होंगे, जब तक चीनी राष्ट्रपति उन देशों का दौरा नहीं करते।
वैश्विक स्तर पर चीन की जगह ले रहा है भारत
इतना ही नहीं, चीन में ऊर्जा संकट के बाद बड़ी-बड़ी कंपनियां दोगुनी रफ्तार से चीन से बाहर निकल रही हैं। जिनपिंग के किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष से बात न करना या चीन से बाहर न निकलना, चीन के निवेशों को भी समाप्त कर चुका है। हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि चीन से निकलने वाली अधिकतर कंपनियां भारत की ओर रुख कर रही हैं। यानि यहां भी फायदा भारत को ही हुआ है। वैश्विक दुनिया में भारत को चीन का विकल्प माना जाता है। चाहे वो रणनीतिक समर्थन की बात हो या फिर सप्लाई चेन में भागीदारी।
कोरोना के बाद से जिस प्रकार दुनिया भर के देशों का चीन से मोहभंग हुआ है, उसका सबसे अधिक फायदा भारत ने ही उठाया है। एक तरह दुनिया भर के देश चीन से नाराज तो थे ही, साथ ही साथ चीनी राष्ट्रपति के चीन से बाहर न जाने की स्थिति में चीन की और दुर्गति हो गयी। चीन के कारण खाली हुए स्थान को भारत की प्रतिबद्धता और पीएम मोदी के एक्शन ने बखूबी भरा और दुनिया को यह एहसास दिलाया है कि जब तक भारत है किसी भी देश को चिंता करने की जरुरत नहीं है। अमेरिका, जापान, भारत सहित यूरोप के कई बड़े देशों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध व्यापक रोष है।
और पढ़ें : चीन की असफल विदेश नीति ही उसके पतन का कारण है
मंत्रोच्चारण से हो रहा पीएम मोदी का स्वागत
ऐसे में कोई भी सरकार ये नहीं चाहती कि चीनी राष्ट्रपति उनके देश में मेहमान बनकर आएं। यदि ऐसा हुआ तो वृहद स्तर पर विरोध प्रदर्शन होने की संभावना है। वहीं, पीएम मोदी को देखा जाए तो वो जहां भी जा रहे हैं, वहां उनका स्वागत ढ़ोल नगाड़ों और संस्कृत मंत्रों से होता दिख रहा है। अभी इटली में ही उनके स्वागत में मंत्रोच्चारण हो रहा था। कोरोना से लड़ने की बात हो या वैक्सीन मैत्री के तहत अन्य देशों की मदद, पीएम मोदी ने सभी का दिल जीता है। यही कारण है कि सभी देश पीएम मोदी के स्वागत में पलके बिछा रहे हैं।
बताते चलें कि जब कोरोना महामारी फैल गई और दुनिया ने प्रश्न करना शुरू किया, तब चीन ने अपनी छवि के कारण ही लगभग हर बड़े देश से शत्रुता मोल ली और अब अपनी छवि बचाने के लिए ही जिनपिंग अपने आलीशान राष्ट्रपति भवन में कैद होकर रह गए हैं। एक तरफ पीएम मोदी सामरिक से लेकर रणनीतिक स्तर पर जिनपिंग को मात देते दिख रहे हैं, तो वहीं शी जिनपिंग चीन में ही कैद हो कर चीन के भविष्य को ही अंधेरे में धकेल रहे हैं। जिनपिंग के इसी नीति के कारण अब भारत अनुमान से पहले ही विश्व की फैक्ट्री बनने की राह पर है।