चीन के विपरीत भारत कैसे बड़े पैमाने पर कर्ज में डूबी कंपनियों को हैंडल कर रहा

"चीन के छल से दुनिया अवगत है"

SREI, Evergrande

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आर्थिक क्षेत्र में घटित दो वैश्विक घटनाओं ने पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। प्रथम, चीन का Evergrande संकट और द्वितीय भारत का SREI संकट। दोनों आर्थिक संकटों के निवारण में कुछ मूलभूत अंतर है। एक में सरकार की निष्क्रियता दिखती है, दूसरे में सरकार की तत्परता। चीन की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी Evergrande लेनदारों को कर्ज चुकाने में असमर्थ रही है जबकि भारत SREI संकट के निवारण में जुटा है।

Evergrande संकट और चीनी समाधान

इस घरेलू कंपनी को चीन ने अपने हाल पर छोड़ दिया है। बताते चलें कि सारे घरेलू और विदेशी आंकड़ों को मिलाकर इस कंपनी पर 300 बिलियन डॉलर का ऋण है। चीन की साम्यवादी सरकार ने ना कोई उपयोगी “बेल आउट” सहायता जारी किया और ना ही प्रबंधन और प्रशासनिक स्तर पर कोई उपयोगी प्रयास किए। Evergrande संकट को अगर “नियंत्रित आर्थिक विस्फोट” कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस संकट को हमें जिनपिंग द्वारा ऋण नियंत्रण अभियान के रूप में देखना चाहिए।

Evergrande कंपनी में एक अच्छा खासा अंतरराष्ट्रीय निवेश है। ये कंपनी चल नहीं पायी और अब चीन इसको जानबूझकर डूबो देना चाहता है ताकि निवेशकों के कर्ज़ चुकाने की ज़िम्मेदारी से अपना पीछा छुड़ा सके। इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि Evergrande की बर्बादी चीन के पूंजीवादी अर्थ तंत्र पर करारा प्रहार है जिसका प्रभाव विश्व का हर उदारवादी देश महसूस कर रहा है। यह उसके साम्यवादी सरकार की विफलता और धूर्तता है। एक संप्रभु राष्ट्र का ऐसा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार उस देश से निवेशकों का मोह भंग कर सकता है और अविश्वास भी पैदा करता है।

SREI संकट और भारतीय निवारण

अब दूसरा उदाहरण भारत का देखिये। जैसे ही भारत के केन्द्रीय बैंक को SREI ग्रुप के वित्तीय गड़बड़ियों और दिवालिया होने की संभावनाओं के बारे में ज्ञात हुआ, पूरा अर्थ तंत्र हरकत में आ गया। रिजर्व बैंक ने तत्काल प्रभाव से कंपनी का सम्पूर्ण वित्तीय और लीगल ऑडिट करने का निर्देश जारी किया। SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड (एसआईएफएल) ने घोषणा की है कि कंपनी और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी SREI इक्विपमेंट फाइनेंस लिमिटेड (एसईएफएल) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त एक ऑडिटर द्वारा आयोजित एक विशेष ऑडिट से गुजर रही है।

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हालांकि, मानव संसाधन की कमी और कोरोना महामारी के प्रभावों से जूझ रही इस कंपनी ने कभी भी बैंक के ऋण भुगतान में देरी नहीं की है। ज़िम्मेदारी, दूरदृष्टि, जवाबदेही और निवेशक हितों के रक्षण हेतु तत्परता इसी को तो कहते है। SREI समूह पर एक्सिस बैंक, UCO बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित लगभग 15 ऋणदाताओं का लगभग 18,000 करोड़ रुपये बकाया है। SREI ने कहा है कि उसकी कुल देनदारी लगभग 18,000 करोड़ बैंक ऋण हैं और अन्य लगभग 10,000 करोड़ बाहरी वाणिज्यिक उधार और बांड हैं। आरबीआई ने मामले की गंभीरता पर संज्ञान लेते हुए SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड और SREI इक्विपमेंट फाइनेंस लिमिटेड के निदेशक मंडल को हटाकर बैंक ऑफ बड़ौदा के पूर्व मुख्य महाप्रबंधक रजनीश शर्मा को प्रशासक नियुक्त कर चुका है।

इतना ही नहीं आरबीआई ने दिवाला और दिवालियापन नियम, 2019 के तहत दो गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के आर्थिक और वित्तीय समस्या के समाधान की प्रक्रिया शुरू करेगा। आरबीआई दिवाला समाधान पेशेवर की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) से भी अपील करेगा।

आरबीआई ने प्रशासक को सलाह देने के लिए तीन सदस्यीय सलाहकार समिति नियुक्त की है जिसमें इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी आर सुब्रमण्यकुमार, सुंदरम फाइनेंस के पूर्व प्रबंध निदेशक टी टी श्रीनिवासराघवन और टाटा संस के पूर्व मुख्य परिचालन अधिकारी फारुख एन सूबेदार शामिल हैं। सुब्रमण्य कुमार डीएचएफएल के प्रशासक थे।

निष्कर्ष

दोनों प्रकरण भारत की ज़िम्मेदारी और तत्परता को प्रदर्शित कर रहे हैं, वहीं Evergrande संकट चीन के छल, धूर्तता, विफलता और मूर्खता को दर्शाता है। भारत और चीन के इन निर्णयों के भविष्य में क्रमशः सकारात्मक और नकारात्मक दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। उसके “Ease of doing business” के रिपोर्ट में अपने अंक बढ़ाने हेतु किए गए छल से दुनिया अवगत है। वहीं, इस संदर्भ में भारत की अप्रत्याशित प्रगति अंतरराष्ट्रीय जगत का भारत के प्रति विश्वास को दर्शाता है।

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