तेल सोना है या शायद सोने से भी बड़ा है। तेल किसी भी देश के अर्थव्यवस्था इंजन को गतिशील रखता है। अगर ऊर्जा का यह प्रवाह रुक गया तो पूरा देश क्या पूरा विश्व रुक जाएगा। इतिहास ने तेल के लिए खूब खून बहाये है। ज़रा सोचिए क्या हो अगर कुछ देश इसके वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर नियंत्रण कर एकाधिकार स्थापित कर लें? स्वाभाविक रूप से तब आपके राष्ट्र के निजी हित प्रभावित होंगे। भारत के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। OPEC (ओपेक) देशों द्वारा मनमाने तरीके से तेल कीमतों में वृद्धि ने भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया है। इस कारण विदेशी मुद्रा भंडार तो कम हो ही रहा है साथ साथ तेल की कीमतों में वृद्धि से महंगाई भी बढ़ रही है। परंतु, भारत ने अब इनके वर्चस्व को तोड़ने का निर्णय ले लिया है। आइये जानते हैं कैसे? सबसे पहले ओपेक क्या है ये समझते हैं।
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ओपेक vs. भारत
भारत में कच्चे तेल की मांग 2015-16 में 203 मीट्रिक टन से बढ़कर 2016-17 में 214 मीट्रिक टन हो गई और इस तरह मांग में 1.6 प्रतिशत की वैश्विक औसत वृद्धि की तुलना में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई। अप्रैल-अगस्त 2017 के दौरान भारत के शीर्ष आयातक इराक, सऊदी अरब, ईरान, वेनेजुएला, नाइजीरिया और यूएई जैसे OPEC देश थे। वर्तमान में भारत का 86 प्रतिशत कच्चा तेल, 75 प्रतिशत गैस और 95 प्रतिशत एलपीजी OPEC से आयात किया जाता है। भारत चीन और अमेरिका के बाद ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा ग्राहक है।
इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बढ़ती कीमतों के कारण भारत ऑटो ईंधन दरों में वृद्धि देख रहा है। रविवार को पेट्रोल 6.82 रुपये प्रति लीटर और डीजल 7.24 रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया। यह 48 दिनों के अंदर 27वां उछाल था जिससे भारत के सब्र का बांध टूट गया।
भारत ओपेक का सबसे बड़ा, निरंतर और विश्वासपात्र ग्राहक होने के नाते तेल आयातों पर छूट चाहता है जबकि ओपेक उत्पादक राष्ट्रों से उसे “Asia Premium” नामक कर मिला। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कई बार इस कर को हटाकर “Asia Dividend” नामक छूट का आग्रह किया परंतु, ओपेक देशों ने इस आग्रह को ठेंगा दिखा दिया।
इसके अलावा ओपेक और उसके सहयोगियों ने पिछले साल 12 अप्रैल को तेल उत्पादन में अभूतपूर्व 9.7 मिलियन बैरल प्रति दिन की कटौती की घोषणा की परंतु, इसकी आपूर्ति बहाली के लिए कुछ नहीं किया जिससे इनपर निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था बदहाली में चली गयी।
क्या है ओपेक ?
पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन अर्थात ओपेक एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन ( आईजीओ ) है, जिसे 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा बनाया गया था। इसका उद्देश्य विश्व बाजार में तेल की कीमत निर्धारित करने और तेल की आपूर्ति का प्रबंधन करना है ताकि तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से बचा जा सके जो उत्पादक और क्रेता दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर सकते हैं। 2019 तक ओपेक के कुल 14 सदस्य देश हैं। ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, Equatorial Guinea, कांगो गणराज्य, Angola, इक्वाडोर और वेनेजुएला ओपेक के सदस्य हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी है तेल उत्पादक देश तो है परंतु, ओपेक समूह का हिसा नहीं है।
गैर-OPEC आपूर्तिकर्ता दुनिया के उत्पादन का लगभग 60% उत्पादन करते हैं, जबकि सऊदी अरब के नेतृत्व वाला ओपेक वैश्विक कच्चे तेल का लगभग 40% उत्पादन करता है।
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) द्वारा अनुचित उत्पादन प्रतिबंधों ने भारत को देश में पेट्रोल और डीजल की बढ़ती दरों के बीच अमेरिका और रूस जैसे गैर-OPEC देशों से दीर्घकालिक आपूर्ति पर बातचीत करने के लिए मजबूर कर दिया है। आपको ज्ञात हो कि दिसंबर 2015 में, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) ने तेल निर्यात पर 40 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया जिससे भारत के लिए आयात के रास्ते खुल गए हैं। कुछ अन्य OPEC सदस्य, जिनमें अफ्रीकी महाद्वीप का एक सदस्य देश भी शामिल है वो निजी स्तर पर दीर्घकालिक अनुबंधों के लिए इच्छुक हैं। अतः, भारत ने अब ओपेक देशों की मनमानी तेल कीमतों के खिलाफ बिगुल फूँक दिया है।
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अगर इस मामले से जुड़े अधिकारी के वक्तव्यों में भारत की पीड़ा का उल्लेख करें तो उत्पादकों को उपभोक्ताओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए। उनके संकट के समय हमने उनका साथ दिया था अब उनकी बारी है। यदि वे भरोसा नहीं करते हैं, तो हम ओपेक देशों से अपने आयात को कम करने के लिए विवश होंगे और अन्य अवसरों की तलाश करेंगे जैसे कि त्वरित खरीदारी और गैर-OPEC उत्पादक की ओर रूयक करेंगे। एकाधिकार अधिकारों का गला घोट देता है जैसे OPEC के एकाधिकार ने भारत के तीसरे सबसे बड़े ग्राहक होने के बावजूद उसे अपने अधिकारों से वंचित कर दिया है। परंतु, OPEC देशों को यह समझना चाहिए कि ये आज का भारत है जो सक्षम, समर्थ और शक्तिशाली है। हम अपने राष्ट्र हितों की रक्षा करना जानते हैं। गैर-ओपेक देशों से तेल का क्रय इस निरंकुश समूह के मुंह पर तमाचा है जिसके वर्चस्व पर भारत ने सबसे बड़ा प्रहार किया है।