इंफोसिस का ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा है, फिर भी सरकार उसे प्रोजेक्टस क्यों दे रही?

सरकार इंफोसिस

किसी भी व्यवसायिक कम्पनी के लिए यह आवश्यक होता है कि वह जिस क्षेत्र के लिए या प्रोजेक्ट पर काम कर रही है उसे सफलता के लिए करे। हर कंपनी की अपनी जिम्मेदारियां हैं जिससे आम जनता के लिए चीजें सुलभ हो। हर क्षेत्र में लोगों को सेवाएं प्रदान करने की होड़ मची हुई है यही डिजिटल टेक्नोलॉजी पर भी लागू होता है। आज सोशल नेटवर्किंग साइट के दौर में, जब कम्पनियां अच्छी सेवाएं प्रदान नहीं करती हैं तो लोग ट्विटर या अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी समस्या बताते हैं। भारत सरकार के सरकारी वेबसाइटों पर भी यही बात लागू होती है। सरकारी सेवाओं के खिलाफ सबसे अधिक समस्याएं वेबसाइट के ना काम करने की आती हैं। लोग आए दिन बताते हैं कि कैसे GST, इनकम टैक्स समेत काम अन्य वेबसाइट्स काम नहीं कर रही हैं। अब अगर आप गौर करें तो इस समस्या के पीछे सरकार नहीं, वो ठेकेदार जिम्मेदार हैं जो वेबसाइट्स को चलाने और दुरुस्त रखने का ठेका लेते हैं। इंफोसिस उन्हीं तमाम ठेकेदारों में से एक है। उनके काम करने से जनता खुश नहीं है और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह समस्या कई वर्षों से है फिर भी सरकार बार-बार इंफोसिस को प्रोजेक्ट थमा देती है।

इंफोसिस द्वारा बनाये गए GST पोर्टल हो या IT पोर्टल या GSTn जैसे पोर्टल ही क्यों न हो सभी में आ रही दिक्कतें आम जनता के लिए सिरदर्द बनी हुई है। उदाहरण के लिए इस ट्वीट को देखें जिसमें 4 अक्टूबर को एक ट्वीटर यूजर ने स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “प्रिय GSTIN, क्या आप Nee GSTIN नंबर के आवेदन के लिए जीएसटी पोर्टल पर डीएससी को पंजीकृत करते समय इस प्रकार की त्रुटि को हल कर सकते हैं!”

इसके बाद यह समस्या खबरों में आ गई। यह स्क्रीनशॉट GSTn नेटवर्क (जीएसटीएन), ई-वे बिल में त्रुटियों को प्रदर्शित कर रहा था। यह समस्या तब आ रही है जब कोई व्यक्ति जीएसटी अधिनियम के एक विशिष्ट प्रावधान से 2 दिन पहले IRN उत्पन्न करा चुका है। उल्लेखनीय है कि GSTN द्वारा पोर्टल पर दिखाए गए त्रुटि के लिए कोई जीएसटी कानून, या किसी भी प्रावधान द्वारा समर्थन प्राप्त नहीं है।

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करदाताओं में से एक ने जीएसटीएन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के प्रति असंतोष और पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा, “GSTN 2 दिन पहले IRN उत्पन्न होने पर ई-वे बिल तैयार करने की अनुमति नहीं दे रहा है। मेरी जानकारी में जीएसटी कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन जीएसटीएन इस तरह के प्रतिबंध के साथ आ रहा है। मुझे लगता है कि जीएसटीएन द्वारा यह प्रतिबंध कानून के अधिकार के बिना है या जल्द ही हम जीएसटी नियम में संशोधन देख सकते हैं।” 

अप्रत्यक्ष रूप से लोगों ने कहा कि पोर्टल पर यह समस्या अचानक और बिना अधिकार के हुआ है। हालांकि, यह समस्या नई नहीं है। जून में भी नव-विकसित आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल की खराबी को लेकर सरकार के साथ इंफोसिस का विवाद हुआ था।

उस वक्त इंफोसिस के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नंदन नीलेकणि को आयकर पोर्टल में कमियों का जवाब देने के लिए बुलाया गया था, उसी तरह सरकार ने जीएसटी नेटवर्क से जुड़ी परियोजनाओं में लगातार समस्याओं के लिए कंपनी को कटघरे में खड़ा किया था। ये समस्याएं यहीं तक सीमित नहीं है।

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MCA21 पोर्टल के समस्याओं के लिए तत्कालीन सीईओ विशाल सिक्का को कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की परियोजना में गड़बड़ियों के लिए स्पष्टीकरण देना पड़ा था। आयकर पोर्टल के विकास और प्रबंधन के लिए अनुबंध प्राप्त करने से पहले, बेंगलुरु स्थित इंफोसिस को सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा कई प्रमुख आईटी परियोजनाओं के लिए नियुक्त किया गया था। इसमें कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के MCA21 v2 को लागू करने के लिए $ 50 मिलियन का अनुबंध शामिल है। GSTN को विकसित करने के लिए 1,380 करोड़ रुपये का अनुबंध किया गया था। इतनी खामियों के बावजूद सरकार ने कभी कोई सख्त एक्शन इंफोसिस के खिलाफ नहीं लिया। 

इंफोसिस बदले में अपनी गलतियों का ठीकरा सरकार पर फोड़ते आया है। 2015 में नारायण मूर्ति ने कहा था, “मैं इंफोसिस के बारे में जानता हूँ, इंफोसिस ने एक भी ऐसी परियोजना नहीं की है जिसमें उसने पैसा नहीं गंवाया है और यह अन्य कंपनियों के लिए भी सच्चाई है। सरकार के साथ व्यापारिक सम्बंध बनाने की यही वास्तविकता है।” 

उस समय इंफोसिस के पूर्व चेयरमैन ने जिन मुद्दों को उठाया, उनमें देरी से भुगतान और परियोजना की जरूरतों में बदलाव शामिल थे। एक तरह से सरकार इन खामियों को ढो रही है।

वर्तमान सरकार ने भी इंफोसिस को बहुत ढील दी रखी है। जुलाई में GST पोर्टल खराब होने पर तमाम लोगों ने कहा कि सरकार को जीएसटी पोर्टल के अनुचित और सबसे खराब कार्यान्वयन के लिए इंफोसिस पर जुर्माना (जो करदाताओं पर लगाया जाता है) लगाया जाना चाहिए और करदाताओं को इसकी प्रतिपूर्ति या वापसी करनी चाहिए। साथ ही 1 जून से इनकम टैक्स साइट नॉन ऑपरेटिव है।

ये समझना कठिन है कि इंफोसिस के खिलाफ वित्त मंत्रालय सख्त कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है।  सरकार  अन्य कंपनियों या स्टार्ट अप को भी अवसर दे सकती है और शायद कोई अन्य कंपनी सरकार और जनता की उम्मीदों पर खरी उतरे।

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