IRCTC दिखाता है कैसे विनिवेश PSU के लिए वरदान साबित हो सकता है

विनिवेश सरकारी उपक्रमों के लिए संजीवनी है....

आईआरसीटीसी का विनिवेश

आईआरसीटीसी का विनिवेश: विक्रय और विनिवेश में आकाश-पाताल का अंतर है। तेल और टमाटर की कीमतों से मुद्रास्फीति समझनेवाली भारतीय जनता को इन दोनों शब्दावलियों से भ्रमित करना कोई “यान प्रक्षेपण विज्ञान” नहीं है। ऊपर से हम सिनेमा भी बहुत देखते हैं इसलिए हमेशा शासन को खलनायक और खुद को “फैजल” की भूमिका में देखते है। पढ़ने, समझने और राय बनाने में हमारी रुचि कम और नारे लगाने तथा मसीहा बनने में अधिक है।

हाल के ही दिनों में सरकारी उपक्रमों को लेकर पीएम मोदी की कड़ी आलोचना हुई। कहा गया कि एक-एक करके मोदी सरकार सभी सरकारी उपक्रमों को निजीकरण के नाम पर बेच रही है। क्षमा करिएगा, इस वाक्य में अगर अंबानी-अडानी और टाटा को जोड़ देते तो आपके अंदर का “फ़ैजालवा” निखर कर बाहर आता। हालांकि, आपको तनिक भी घबराने की आवश्यकता नहीं क्योंकि जब तक हमारी पत्रकारिता जीवित है, कम से कम हम अपने पाठकों में तो सत्य, तर्क और राष्ट्रवाद का संचार करते रहेंगे। हम आपको बताएंगे कि विक्रय और विनिवेश में क्या अंतर है?

विनिवेश किस प्रकार से रुग्ण सरकारी उपक्रमों के लिए संजीवनी है? कैसे इसका लाभ देश को मिलना शुरू हो गया है? इसे हम आईआरसीटीसी पर विनिवेश के पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव से समझने की कोशिश करेंगे। आखिर 70,000 करोड़ की ऋणी होने के बावजूद एयर इंडिया को 18,000 करोड़ में टाटा जैसी राष्ट्रवादी उद्यम के प्रबंधन का अधिकार देना मास्टरस्ट्रोक नहीं तो क्या है? रही बात सरकारी स्वामित्व की तो अगर जरूरत पड़ी तो मोदी सरकार इन उपक्रमों का वैसे ही सरकारीकरण कर देगी जैसे इंदिरा और नेहरू ने किया था।

आईआरसीटीसी का विनिवेश

आपको बता दें कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश के लिए कड़े समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करने के बाद, सरकार ने सोमवार को तीन रेलवे उपक्रमों – IRCTC, IRFC और IRKON के प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) में 25% तक विनिवेश करने के लिए कदम उठाए हैं। निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग ने 2017-18 में IPO के प्रबंधन के लिए मर्चेंट बैंकरों से आवेदन आमंत्रित किए हैं। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि केंद्र सरकार इन IPO में कितनी हिस्सेदारी बेचेगी। विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि मूल्यांकन के आधार पर प्रत्येक उपक्रमों में सरकार 25% तक विनिवेश कर सकती है। बैंकरों को 16 मार्च तक अपनी रुचि की अभिव्यक्ति जमा करनी होगी। वर्तमान में भारत सरकार IRKON में 99.729%, IRCTC में 100% और IRFC में 100% की मालिक है।

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आईआरसीटीसी 14 अक्टूबर 2019 को एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध हुआ और इसका निर्गम मूल्य रुपए 320 प्रति शेयर था। तब से, स्टॉक 18 गुना या 1,737% से अधिक बढ़ चुका है। इस साल अब तक इसमें 308.1% की बढ़त हुई है और इस महीने अब तक यह 58% आगे बढ़ चुका है। कोरोना की दूसरी लहर से चुनौतियों के बावजूद आईआरसीटीसी ने जून तिमाही में मजबूत मुनाफा दिया। रेलवे के खानपान खंड में अप्रत्याशित राजस्व सुधार हुआ। यहां तक कि रेल-नीर खंड चार तिमाहियों के बाद सकारात्मक रूप से लाभकारी हो गया और इंटरनेट टिकट खंड भी मजबूत मार्जिन दे रहा है। आईआरसीटीसी का एक शेयर Tesla के बराबर पहुंच चुका है।

आईआरसीटीसी का Offer for Sale (ऑफर फॉर सेल) सरकार को 2.10 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें से रुपए 1.20 लाख करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से तथा अन्य रुपए 90,000 करोड़ वित्तीय संस्थानों से आएंगे। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के कारण निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग चालू वित्त वर्ष में अब तक किसी भी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में हिस्सेदारी नहीं बेच पाया है। हालांकि, अपने कॉरपोरेट डेट एक्सचेंज ट्रेडेड फंड “भारत बॉन्ड ईटीएफ-द्वितीय” के माध्यम से सरकार ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के “AAA” रेटेड बॉन्ड के लिए रुपए 11,000 करोड़ की subscription हासिल कर ली है।

विनिवेश- अर्थ, कारण और लाभ

विनिवेश का अर्थ है, सरकार द्वारा आमतौर पर केंद्रीय और राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, परियोजनाएं, या अन्य अचल संपत्ति की बिक्री या परिसमापन। सरकार राजकोष पर राजकोषीय बोझ को कम करने या विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने तथा धन जुटाने के लिए विनिवेश करती है, जैसे कि अन्य नियमित स्रोतों से राजस्व की कमी को पूरा करती है।

1990 के दशक की शुरुआत में ‘भुगतान संतुलन संकट’ ने सार्वजनिक उपक्रमों के बारे में आधिकारिक आख्यान को बदल दिया। ये उपक्रम “आधुनिक भारत के मंदिरों” से “रुग्ण व्यवसाय” में परिवर्तित हो गए थे। तब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए, पीवी नरसिम्हा राव सरकार (21 जून, 1991- 16 मई, 1996) ने लाइसेंस-कोटा राज के युग को समाप्त करके और निजीकरण को प्रोत्साहित कर आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी। अब मोदी सरकार ने इसको अपने गंतव्य तक पहुंचाया है।

यह बदलाव आर्थिक वास्तविकताओं से प्रेरित है। निजीकरण के उद्देश्य 2021 के बजट में अंतर्निहित हैं। सरकार की आय और व्यय के बीच का अंतर 7.96 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 18.48 लाख करोड़ रुपये हो गया और इसके 15.06 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। घाटे को पाटने के लिए सरकार को इस साल लगभग 12 लाख करोड़ रुपये का उधार लेना होगा यानी हर दिन लगभग 3,287 करोड़ रुपये।

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मोदी सरकार इन्हीं सब संकेतों को ध्यान में रखते हुए विनिवेश की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी मुद्रा संचार तथा निवेश, दोनों बढ़ेगा। लोगों को रोजगार मिलेगा और इन उपक्रमों का प्रबंधन सही ढंग से हो पाएगा। इनसे उत्पन्न होने वाली सम्पत्ति राजस्व में वृद्धि करेगी और देश की संपन्ननता में बढ़ोतरी होगी। रही बात क्रेता कम्पनियों की तो वो कोई ईस्ट इंडिया कंपनी को नहीं सौंपी जा रही। सरकार पारदर्शी तरीके से टेंडर निकालती है, अगर आपके जेब में दम और उस उपक्रम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का ब्लूप्रिंट है, तो आप भी खरीद सकते हैं। विक्रय में आपको स्वामित्व, कब्ज़ा और उसके निस्पादन का पूर्ण अधिकार मिल जाता है। हालांकि, विनिवेश में आपके पास सिर्फ प्रबंधन और कब्ज़ा का अधिकार रहेगा।

उदाहरण के लिए अगर आपने एक जमीन बेची तो क्रेता अपनी मर्ज़ी के अनुसार उसको बेच या उपयोग कर सकता है, लेकिन विनिवेश के मामले में ऐसा नहीं है। अगर रतन टाटा चाहे भी तो एयर इंडिया को किसी और को नहीं बेच सकते। किसी भी प्रकार की मनमानी की स्थिति में सरकार पुनः राष्ट्रीयकरण कर सकती है जैसा कि नेहरू और इंदिरा ने किया था। लोगों से यह उम्मीद है कि वे भी सरकार के इस समर्पित प्रयास में साथ देंगे।

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