नियम बदलने से कश्मीर नहीं बदलेगा, बदलेगा तो बस तेवर बदलने से

2 दिन में 4 कश्मीरी पंडितों की हत्या, ऐसे बदलेगा कश्मीर?

कश्मीर अगस्त 2019 से असंतोष का केंद्र रहा है। भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य की विशेष संवैधानिक स्थिति को बदल दिया अर्थात अनुच्छेद 370 को निरस्त कर इसे सीधे संघीय प्रशासन के तहत दो “केंद्र शासित प्रदेशों” में विभाजित कर दिया।

इसके साथ ही भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ-साथ कश्मीर में अलगाववादी दलों के साथ कश्मीर-समझौते हेतु बातचीत के सभी विकल्पों को बंद कर दिया है। नई दिल्ली की रणनीति भारत समर्थक राजनीति के लिए जगह बनाते हुए कश्मीर पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने की है। लेकिन इस दृष्टिकोण ने कश्मीर में बढ़ते पाकिस्तानी हस्तक्षेप और आतंकवादी गतिविधियों के द्वार खोलते हुए असंतोष को तेज कर दिया है।

पाकिस्तान ने वर्तमान द्विपक्षीय संघर्ष को कूटनीतिक, अंतरराष्ट्रीय और छद्मयुद्ध अर्थात आतंकी स्तर को बढ़ाते हुए कश्मीर के भीतर हिंसा को बढ़ा दिया है। हाल के दिनों में इस सप्ताह श्रीनगर में हुए आतंकी हमलों की ताजा लहर में कई नागरिक मारे गए हैं। पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) समर्थित प्रतिरोध बल (टीआरएफ) ने हमलों में एक कश्मीरी पंडित फार्मासिस्ट, एक सिख प्रिंसिपल, एक शिक्षक और दो अन्य लोगों को मार गिराया, जिन्हें ‘लक्षित हत्या’ कहा गया। इन हमलों की देश में कड़ी निंदा हुई है। सरकार ने लक्षित हत्याओं के खिलाफ भी चेतावनी देते हुए कहा कि घाटी में “कुछ लोग शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं।” विदेश मंत्रालय ने भी सीमा पार आतंकवाद को लेकर चिंता जताई है और वह अपने सहयोगियों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है। जम्मू और कश्मीर की पुलिस के अनुसार इस साल आतंकी हमलों में 28 आम नागरिकों की जान गयी है।

मोदी सरकार नें अभूतपूर्व साहस और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, संघीय राज्य का दर्जा दिया, सैनिकों को खुली छूट दी और राष्ट्रविरोधी पक्षों से बातचीत का विकल्प बंद किया। इन सभी उपायों से आतंकवादियों की रीढ़ की हड्डी टूट गयी। किसी भी प्रकार के आतंकी हमलों को अंजाम देने में वो नाकाम हो गए। अतः हालियाँ लक्षित हत्याओं अर्थात “targeted killing” को उनके नए उपायों के तौर पर देख जा रहा है। सरकार के समक्ष अब सबसे बड़ी समस्या ये है की इस प्रकार के हमलों से कैसे निपटा जाये? क्योंकि सरकार सभी नागरिकों को सुरक्षा मुहैया तो करा नहीं सकती और जम्मू-कश्मीर के पथभ्रष्ट युवाओं का हृदय परिवर्तन करना असंभव सा कार्य प्रतीत होता है। अतः आतंक के इस कारण का निवारण सरकार का तेवर ही है।

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शासन शक्ति और सामर्थ्य से चलता है। राष्ट्रहितों की अनदेखी का दूरगामी परिणाम निश्चित है। सरकार को ये समझना होगा की कश्मीर में कोई कश्मीरियत, असंतोष या स्वतन्त्रता की लड़ाई नहीं चल रही बल्कि ये एक प्रकार से धर्मानुशंसित अनवरत युद्धरत आह्वान है जिसका उद्देश्य इस्लामिक राज्य की स्थापना है क्योकि अगर बात कश्मीरियत की होती तो कश्मीरी पंडित और सिख सबसे प्रथम कश्मीरी है।
हालिया दिनों में उनकी हत्या दर्शाती है कि कश्मीर में इस्लामी शासन को स्थापित करने का कार्य तीव्रता के साथ प्रगति पर है। अतः, ऐसे नरभक्षियों के हृदयपरिवर्तन की अभिलाषा और इसके हेतु अनुनय-विनय को त्याग सरकार को सख्त तेवर दिखाने चाहिए ताकि कम से कम देश की अखंडता सुनिश्चित रहें।

KPS गिल मॉडल

लातों के भूत बातों से नहीं बल्कि भय से मानते है। KPS Gill ने इसी कहावत को चरितार्थ किया। स्वर्ण मंदिर, ऑपरेशन ब्लूस्टार, भिंडेरवाला, इन्दिरा हत्या और सिख विरोधी दंगे और पंजाब में बढ़ती पाकिस्तान समर्थित खालिस्तानी गतिविधियों के बीच केपीएस गिल की नियुक्ति पंजाब पुलिस में DGP के पद पर हुई। उन्होने आतंकवादियों के साथ “zero tolerance” की नीति अपनाई। पंजाब में आतंकवाद तब चरम पर पहुँच गया जब एक ही महीने के भीतर 343 अल्पसंख्यक हिंदुओं की हत्या कर दी गयी। गिल ने कमान संभालते हुए ईट का जवाब पत्थर से दिया। ऑपरेशन ब्लैकथंडर के तहत 43 आतंकियों को मार गिराया गया और 67 ने स्वयं आत्मसमर्पण कर दिया। गिल ने पुलिस की सक्रियता बढ़ाई। रात को बैरिकडिंग के जगह पुलिस पेट्रोलिंग की शुरुआत की जिसे आतंकवादियों ने चुनौती के रूप में देखा। कोई भी व्यक्ति या फिर वस्तु जो आतंकवादियों से जुड़ी हुई थी गिल ने सभी को ध्वस्त कर दिया। हालांकि, इसकी आलोचना भी हुई परंतु, आतंकवादियों पर इसका मानसिक दबाव पड़ा और उन्ही की भाषा में जवाब ने उन्हे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

सरकार को भी अंतराष्ट्रीय दबाव की परवाह ना करते हुए उन्हे करारा जवाब देना चाहिए। कानून औषधि की तरह कार्य करता है लेकिन कश्मीर को अभी त्वरित शल्य चिकित्सा की जरूरत है नहीं तो यह कर्क रोग भारत रूपी पूरे शरीर को खा जाएगा।

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