कठुआ, चिताएं और शमी: राणा अय्यूब ने नोबेल जीतने की योजना बना रखी थी, लेकिन प्लान फ्लॉप हुआ

राणा की हरकतें बताती हैं वो नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा में आना चाहती है!

वामपंथी राणा अय्यूब

देश के प्रत्येक मुद्दे पर झूठा एजेंडा चलाने में कुछ वामपंथी पत्रकारों ने महारत प्राप्त कर रखी है। भले ही मामला झूठ की बुनियाद पर गढ़ा गया हो लेकिन उसे सच बताकर भुनाने में वामपंथी ज्यादा वक्त नहीं लेते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम की पाकिस्तान के विरुद्ध T20 विश्व कप में पहली हार के बाद कुछ लोगों ने बेवजह प्रायोजित तरीके से गेंदबाज मोहम्मद शमी की आलोचना की, यद्यपि ये बाद में पता चला कि ये पाकिस्तान द्वारा ही प्रायोजित था, और इसका सच भी अब सामने आने लगा है, लेकिन इस पूरे प्रकरण का बेवजह अंतरराष्ट्रीयकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका कथित पत्रकार और घोषित एजेंडाधारी राणा अय्यूब ने ही निभाई।

राणा ने ऐसा दिखाने की कोशिश की, मानों सच में भारतीय मोहम्मद शमी से नफरत करने लगे हैं, जबकि सत्य इसके विपरीत है। ऐसे में राणा अय्यूब की हरकतें बताती हैं कि प्रत्येक मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण कर वो नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा में आना चाहती है, लेकिन उनके काम आग लगाने वाले ही है। नोबेल न जीत पाने का गुस्सा राणा अय्यूब के मन में कुछ इस हद तक है कि उन्हें ये प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नार्वे पर बनाया हुआ दबाव प्रतीत होता है।

मोहम्मद शमी का दिखावटी बचाव

T20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम की पहली बार हार हुई, यद्यपि उसमें विराट कोहली के नेतृत्व की आलोचना हो रही है। इसके विपरीत मोहम्मद शमी की एक प्रायोजित आलोचना भी की जा रही है, जिससे ये दिखाने की कोशिश की जाए कि उन पर मुसलमान होने के कारण शक किया जा रहा है, हालांकि, इसका यथार्थ से कोई सरोकार ही नहीं है। ऐसे में दुष्प्रचार की बात जहां होती है, वहां राणा अय्यूब न हो, ये हो सकता है ? नहीं न… तो राणा ने भी मोहम्मद शमी के मुद्दे पर विक्टिम कार्ड खेलने से तनिक भी परहेज नहीं किया। उन्होंने शमी की आलोचना पर कुछ न बोलने वाले विराट कोहली को ही निशाने पर ले लिया।

राणा अय्यूब ने ट्वीट कर लिखा, “शमी के खिलाफ इस्लामोफोबिक बात करके उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। ये उनकी देशभक्ति और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर प्रश्न के साथ ही नफरत का संकेत देता है। अगर भारतीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य समर्थित नफरत घुटने टेकने लायक नहीं है, तो मुझे नहीं पता BCCI और विराट कोहली क्या कर रहे हैं।”

 

भारतीय टीम को बताया दोगला

राणा अय्यूब ने इस मुद्दे पर एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने ये बताया कि कैसे कोहली मोहम्मद शमी के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले, और Taking The Knee की भारतीय टीम ने नौटंकी की। राणा अय्यूब ने ये दिखाने की कोशिश की कि, कैसे भारत-पाकिस्तान के मैच को हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से देखा जाता है। उनका कहना है कि उनके घरवालों ने उन्हें सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह तक दी, क्योंकि पाकिस्तान के प्रति भारत में एक विशेष तरह का जहर भरा गया है।  राण अय्यूब ने ये बताया कि कैसे भारत के हारने के बाद सोशल मीडिया पर भारतीय टीम की आलोचना होने लगी।

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राणा अय्यूब ने बताया कि कैसे पाकिस्तान से हार मोहम्मद शमी पर भरी पड़ी और उन्हें भला-बुरा कहा गया।  उन्होंने कहा कि भारत के पूर्व खिलाड़ी विरेन्द्र सहवाग और गौतम गंभीर तक ने भारतीय टीम की आलोचना की, और कोहली के दिवाली में पटाखे न जलाने वाले विज्ञापन का मजाक उड़ाकर लोगों को लोगों को पटाखे जलाने के लिए प्रेरित किया। राणा अय्यूब ने इस मुद्दे पर एक तरफ भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और बोर्ड को निशाने पर लिया तो दूसरी ओर उन्होंने इस मुद्दे पर भारत के लोगों में पाकिस्तान के प्रति आक्रोश को भी दिखाया। राणा अय्यूब कुल मिलाकर इसे सबको उजागर कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस नफरत को खत्म करने का ढोंग कर रही थी।

ऐसा एक बार नहीं, कई बार हो चुका है, लेकिन राणा अय्यूब का कहना है कि जिस तरह की नौटंकी भारतीय टीम ने Taking the knee कैंपेन के लिए की, ठीक वैसा ही काम कश्मीर के लोगों, सीएए के विरोधियों और किसान आंदोलन के लिए क्यों नहीं किया? स्पष्ट है कि उन्होंने इस मामले का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इतना ही नहीं, राणा अय्यूब की नौटंकियां बताती है कि वो काफी पहले से नोबेल पुरस्कार की इच्छा रखती हैं, और इसीलिए वो लंबें वक्त से कैंपेन चला रही है।

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सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक

राणा की इन हरकतों पर TFI के सीनियर सदस्य अजीत ने लिखा, “उसे प्रत्येक मुद्दे पर बोलना है। नौकरी से बाहर किया गया, तो मोर्चे के लिए यूट्यूब चैनल बना लिया, और फिर भी लुटियंस मीडिया और विपक्ष की तुलना में भारत को अधिक नुकसान वहीँ पहुंचती हैं। कठुआ, सीएए दंगे, अंतिम संस्कार की चिताएं, शमीगेट, सभी अशांति का मूल हैं ये। इनके ISI लिंक की जांच होनी चाहिए।”

 

विश्लेषकों ने राणा अय्यूब की पिछले एक साल की नौटंकियों को लेकर उनके खूब मजे लिए है। अभिजीत अय्यर मित्रा ने कहा, “दिल्ली की एक “पत्रकार” नोबेल पुरस्कार नहीं जीतने पर गरीबी का सामना कर रही हैं। उन्हें बताया गया था कि वह एक “निश्चित शॉट” था और अब वो लोगों को फोन कर रही हैं कि मोदी ने नॉर्वे पर दबाव डाला जिसकी वजह से उसे ये अवार्ड नहीं मिल सका। उसने इस साल एक विस्तृत पीआर अभियान की योजना बनाई थी जिसमें Time मैगजीन की स्टोरीज भी शामिल थीं।”

अभिजीत ने लिखा, “दिल्ली की एक प्रमुख संपादक ने फरवरी में कहा था कि वास्तव में एक अभियान चल रहा है और ‘पत्रकारिता को फिर से उसी स्तर पर देखने में उन्हें 10-15 साल और लगेंगें।’ वहीं इस बात को उत्सुकता से सुन रहे एक प्रसिद्ध वामपंथी खोजी पत्रकार ने इसकी पुष्टि की थी।” उनका कहना था कि कुछ वामपंथी भी नहीं चाहते कि राणा अय्यूब को नोबेल पुरस्कार मिले। उन्होंने इस पत्रकार का विरोध नहीं किया जबकि वे जानते थे कि राणा अय्यूब के झूठ का जल्द ही पर्दाफाश हो जाएगा। इसलिए उन सभी ने इससे दूरी बना ली थी।

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राणा अय्यूब का साथ केवल एक ही मीडिया संस्थान ने दिया, उनके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैंपेन चलाए गए। राणा स्वयं टाइम मैगजीन में आर्टिकल्स लिखकर देश की छवि वैश्विक स्तर पर रखने का ढोंग करती रहीं। इसके विपरीत उन्हें कोई लाभ न हो सका, क्योंकि देश के अन्य वामपंथियों ने उनका साथ नहीं दिया। नतीजा ये कि मैडम के कैंपेन की हवा निकल गई।

राना अय्यूब ने पिछले 1 वर्ष में टाइम मैगजीन में अनेकों आर्टिकल लिखे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचनाओं से लेकर सीएए, एनआरसी, कोरोना काल में जलती लाशों के चित्र प्रकाशित किए। उन्होंने पत्रकारिता का एक मानक स्थापित करने की नौटंकी की, लेकिन अब जब कठुआ, सीएए कोरोना काल की लाशें, लिंचिंग की झूठी ख़बरें और शमी के बचाव समेत पाकिस्तान से प्रेम पूर्वक क्रिकेट खेलने के प्रयास का ढोंग करने पर भी कुछ नहीं मिला, तो भरोसा नहीं करना चाहिए कि जल्द ही इसका जिम्मेदार भी मोदी को ठहरा दिया जाए।

 

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