महात्मा गांधी ने कहा था, “पृथ्वी के संसाधन मानव की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, परंतु उसके लोभ के लिए नहीं।“ यही लोभ प्रकृति को क्षति पहुंचाता है और जब प्रकृति अपने सब्र का बांध तोड़ती है, तब विनाश आता है। ठीक वैसा ही जैसा पिछले कुछ वर्षों से केरल अनुभव कर रहा है। केरल के कई हिस्सों में भारी बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन में कम से कम 26 लोगों की जान चली गई और कई अन्य लापता हैं। केरल की विजयन सरकार इस विनाश की ‘भागी’ है और जनता ‘भोगी’। आइये, हम आपको समझाते हैं आखिर कैसे?
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अब तक कई लोगों की हो चुकी है मौत
केरल में शनिवार से हो रही भारी बारिश के कारण कई हिस्सों में भूस्खलन देखने को मिला। इस भूस्खलन में दो पहाड़ी जिले कोट्टायम और इडुक्की सबसे ज्यादा प्रभावित हुए जहां सात से अधिक लोगों की जान चली गई जबकि कई लापता हैं।
#WATCH | Kerala: A house got washed away by strong water currents of a river in Kottayam's Mundakayam yesterday following heavy rainfall. pic.twitter.com/YYBFd9HQSp
— ANI (@ANI) October 18, 2021
इस पर भारत के शीर्ष पारिस्थितिकी वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, “ये आपदाएं उच्च आर्थिक गतिविधियों जैसे चट्टान उत्खनन, नई इमारतों और सड़कों के निर्माण तथा आर्थिक क्षेत्रों में प्राकृतिक वन के विनाश के कारण हुई है। हमने 2011 की रिपोर्ट में इसका विशेष रूप से उल्लेख किया था। 2018 में भूस्खलन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में हुआ था, जिन्हें हमने पहले ही चिन्हित कर दिया था और इस वर्ष के भूस्खलन भी अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में होने की संभावना है।”
अगस्त 2016 में आई बाढ़ के दौरान 10 जिलों से लगभग 341 बड़े भूस्खलन की सूचना मिली थी, जबकि गाडगिल द्वारा चिन्हित अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र इडुक्की में 143 भूस्खलन हुए थे। 2018 की बाढ़ ने करीब 500 लोगों की जान ले ली थी।
प्रकृति विशेषज्ञ 2011 से ही दे रहे हैं चेतावनी
बता दें कि 31 अगस्त, 2011 को माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में अंधाधुंध और अव्यवस्थित सरकारी परियोजनाओं तथा अवैध निर्माण के कारण पश्चिमी घाट पर हो रहे प्राकृतिक ह्रास के बारे में सरकार को अवगत कराया गया था। इस रिपोर्ट को विजयन सरकार ने तनिक भी गंभीरता से नहीं लिया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पश्चिमी घाट का मतलब भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलने वाली पहाड़ों की एक श्रृंखला से है जो कि अद्वितीय जैवभौतिकीय (Biophysical) और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के साथ अत्यधिक महत्व रखने के कारण विश्व विरासत है। यह घाट केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों को पार करते हुए समुद्र तट से लगभग 30-50 किमी अंतर्देशीय क्षेत्र (Inland Region) में हैं।
2021 में कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली एक अन्य समिति द्वारा मनाही के बाद भी राज्य के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र निर्माण गतिविधियों का एक केंद्र बने रहे। किसानों, चर्च और राजनीतिक दलों के व्यापक विरोध के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। हालांकि, इस बार विजयन सरकार के कान पर जूँ तो रेंगी लेकिन उनकी अनदेखी ने मामले को हल्का कर दिया। इसी कारण पर्यावरणविद और प्रकृति विशेषज्ञ इसे “Invited Disaster” का नाम दे रहे हैं।
अंतर सिर्फ इतना है कि विजयन सरकार ने अपनी अक्षमता, अदूरदर्शिता और लोभ के वशीभूत हो कर इस विनाश को आमंत्रित किया है जिसका कोप जनता भोग रही है।
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विजयन सरकार की लापरवाही की सजा भुगत रही है जनता
भारी बारिश के बाद भूस्खलन के कारण अब तक कोट्टायम (केरल) में 12 और इडुक्की में तीन मृत पाए गए हैं। कथित तौर पर लापता कुल 13 में से पांच बच्चे हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि राज्य भर में लगभग 105 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं और प्रभावित क्षेत्रों में बचाव के प्रयास जारी हैं। राज्य के अनुरोध के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल, सेना, नौसेना और वायु सेना की 11 टीमों को बचाव कार्यों के लिए राज्य में तैनात किया गया है। विजयन ने कहा कि पठानमथिट्टा (Pathanamathitta), कोट्टायम और तिरुवनंतपुरम जिलों में मैडमॉन (Madmon), कल्लुपारा, थुम्पमन, पुलकायार, मानिक्कल, वेल्लाइकडावु और अरुविपुरम बांधों में जल स्तर बढ़ रहा है। हालांकि, रविवार को बाद में बारिश की तीव्रता कम होने से लोगों को राहत मिली है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र केरल को हर संभव सहायता प्रदान करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विजयन से बात कर उन्हें हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया।
अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या केरल सरकार का उत्तरदायित्व सिर्फ मदद लेना है? बिलकुल नहीं! एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे उत्कृष्ट उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों की पूर्ति के साथ-साथ कल्याणकारी राज्य की स्थापना है, जबकि केरल विघटनकारी और प्रलयंकारी राज्य बनने की ओर अग्रसर दिखाई दे रहा है। चाहे कोविड हो, या पर्यावरण संरक्षण, या फिर आतंक मर्दन, विजयन सरकार हर क्षेत्र में नाकाम रही है। केरल को देवभूमि कहा जाता है, लेकिन विजयन सरकार की नीतियां इसे कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
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