कवर्धा में भगवा फाड़ने पर बढ़ी थी तनातनी, लेकिन मीडिया ने सच दिखाना ज़रूरी नहीं समझा!

भगवा ज़मीन पर फेंक, दुसरे धर्म का झंडा लहरा दिया और सब मूक रहे...

पिछले एक हफ्ते से पूर्व नियोजित लखीमपुर की हिंसा को राजनीतिक मुद्दा बना कर विपक्ष द्वारा एजेंडा चलाया जा रहा है, राष्ट्रीय नेताओं के अलावा कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी लखीमपुर की गिद्ध प्रवृत्ति वाली यात्रा पर चले गए l लेकिन उनके अपने राज्य के कवर्धा जिले में दो समुदायों के बीच हिंसा का तांडव होता रहा, और उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। कवर्धा के एक चौराहे पर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्ग के बीच केवल अपने अपने धार्मिक झंडे को लगाने को लेकर विवाद हो गया, जो इतना अधिक हिंसक हो गया कि इंटरनेट सेवा बंद करने के साथ ही कवर्धा में कर्फ्यू तक लगाना पड़ गया। इस पूरे प्रकरण के पीछे पुलिस का ढुलमुल रवैया आलोचनात्मक रहा है।

झंडा लगाने का विवाद

छत्तीसगढ़ का कवर्धा अर्थात कबीरधाम इलाका एक शांत क्षेत्र माना जाता है लेकिन 3 अक्टूबर को कवर्धा के लोहारा नाका चौक पर दोनों समुदाय के लोग अपना-अपना धार्मिक झंडा लगाने के मुद्दे पर भिड़ गए। इस मामले में बात इतनी बढ़ी की एक पक्ष के लोगों ने दूसरे पक्ष के युवकों को बुरी तरह से पीट दिया, और बाद में यह मामला दो समुदायों के बीच झड़प के एक हिंसक दंगे में बदल गया। ऐसे में एक दूसरे पर इन लोगों ने जमकर पत्थरबाजी कर दीl हालात बिगड़ते देख प्रशासन ने जिले में धारा 144 लागू कर दिया। 5 अक्टूबर को कवर्धा बंद रहा। इस दौरान भी पथराव और जमकर तोड़फोड़ हुई, लेकिन ये मामला राष्ट्रीय मीडिया की नजरों में नहीं आया, क्योंकि सभी प्रियंका गांधी के झाडू लगाने की कवरेज में व्यस्त थे।

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पुलिस का ढुलमुल रवैया

नई दुनिया की रिपोर्ट बताती है कि ये मामला 1 से 2 अक्टूबर को ही काफी बढ़ गया था, और झंडा हटाने को लेकर हिंदू पक्ष ने शिकायत भी दर्ज कराई थी, किन्तु पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और समझौता करा दिया। तीन अक्टूबर को दोपहर करीब 11 बजे दोनों पक्षों ने एक दूसरे के झंडे को निकाल दिया। इसके बाद माहौल तनावपूर्ण हुआ, फिर भी पुलिस ने 12 बजे तक कोई कार्रवाई नहीं की, जिसका नतीजा ये हुआ कि स्थिति बिगड़ती चली गई और दोपहर दो बजे तक बड़ी संख्या में लोग थाने पहुंच गए, ऐसे में ये विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि पुलिस के लिए एक समय स्थिति को कंट्रोल करना असंभव हो गया था, जिसका नतीजा ये हुआ कि इलाके में कर्फ्यू घोषित कर दिया गया।

इसको लेकर भाजपा ने भी आक्रामक रुख अपनाया है  जिला प्रशासन जहां इस मामले में विश्व हिन्दू परिषद समेत भगवा पार्टी पर दंगे भड़काने का आरोप लगा रहा है, तो दूसरी  भाजपा नेता पुलिस की ढुलमुल कार्रवाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं।इतना ही इस पूरे प्रकरण के बीच  भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल भी कवर्धा गया था, जिसमें विधानसभा में विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक समेत पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, विधायक नारायण चंदेल और सांसद संतोष पाण्डेय शामिल थे।

रमन सिंह के बेटे पर भी केस

एक तरफ इस मामले में पुलिस विश्व हिन्दू परिषद पर हमला बोल रही है, तो दूसरी ओर राज्य के पूर्व सीएम रमन सिंह के बेटे के खिलाफ केस दर्ज किया गया है, जिसके बाद रमन सिंह भड़के हुए हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार रमन सिंह ने कहा, जिस तरह से प्रशासन का उपयोग राजनीतिक दृष्टि से किया जा रहा है ये स्थिति को खराब कर रहे हैं। 70 बच्चों को गिरफ्तार किया गया है। ये ठीक नहीं है। जब तक कवर्धा हिंसा मामले में ज्यूडिशियल इनक्वायरी नहीं होगी तब तक निराकरण नहीं होगा।

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अपने पिता की तरह ही रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह ने भी प्रशासन पर राजनीति दृष्टिकोण से केस दर्ज करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, कवर्धा एक शांति के टापू के रूप में जाना जाता है। इसे कौन अशांत बना रहा है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, वे लोग सबके सामने हैं। कांग्रेस सरकार के दबाव में एकतरफा कार्रवाई की जा रही है। क्षेत्र के ऐसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भी कार्यवाही की जा रही है, जो वातावरण को बेहतर बनाने में जुटे हुए है। जो बेहद ही शर्मनाक और निंदनीय है।

फिलहाल की बात करें तो कवर्धा में  हालात अब धीरे-धीरे सामान्य जनजीवन की ओर बढ़ रहे हैं। इसके विपरीत सवाल वहीं पर आकर ठहर जाता है कि प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश के लखीमपुर भ्रमण को कवर करने वाला मुख्यधारा का मीडिया कवर्धा को कवरेज में महत्व क्यों नहीं दे रहा था। संभवतः यही कारण है कि पार्टी फ्रैंडली व्यवहार के चलते अपने राज्य के दंगों को रोकने के बजाए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का फोकस राजनीतिक प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश पर था, जहां आज कांग्रेस न तीन में हैं न तेरह में।

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