कश्मीर में श्रमिक की हत्या को उचित ठहराने के लिए वामपंथी मीडिया बोल रही है आतंकियों की भाषा

'वो बाहरी था इसलिए मारा गया', कश्मीर में श्रमिक की नृशंस हत्या को ऐसे उचित ठहरा रही है वामपंथी मीडिया!

कश्मीर हत्या

जब से तालिबान ने पाकिस्तान की सहायता से पुनः अफगानिस्तान में आधिपत्य जमाया है, पाकिस्तान के हौसले बुलंद हो चुके हैं। इसका एक असर कश्मीर घाटी में भी दिख रहा है, जहां पर फिर से 1990 की भांति चुन-चुनकर गैर कश्मीरियों, विशेषकर हिंदुओं को निशाना बनाकर मारा जा रहा है। अभी हाल ही में फिर से आतंकियों ने कश्मीर घाटी में एक श्रमिक की गोली मारकर हत्या कर दी, लेकिन उसके लिए जिस प्रकार की भाषा वामपंथी मीडिया ने प्रयोग की है, उसे देखकर तो यह प्रतीत होता है कि वे पूरी तरह से आतंकियों की बोली बोल रहे हैं।

हाल ही में कश्मीर घाटी में बिहार के एक अन्य गोलगप्पा विक्रेता अरविन्द कुमार साहू की आतंकियों ने गोलियों से भूनते हुए हत्या कर दी, लेकिन NDTV ने उन्हें Non-native कह कर संबोधित किया। NDTV जैसे वामपंथी संगठनों के लिए श्रीनगर में जो गोलगप्पा विक्रेता मारा गया, वो एक गैर-स्थानीय तथा गैर-कश्मीरी था। यदि नाम नहीं लिख सकते थे, तो क्या हिन्दू लिखने में कुछ चला जाता? ये NDTV है, इनसे शिष्टाचार की आशा करना माने चीन से लोकतंत्र बहाल करने की आशा करने के समान है।

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NDTV के एजेंडे के अनुरूप नहीं कि फेरीवाला एक हिंदू था। उसे सीधे तौर पर एक बाहरी व्यक्ति करार दिया गया था। सोचिए अगर पीड़ित मुस्लिम होता तो चैनल द्वारा कितना दुष्प्रचार फलाया जाता। NDTV जैसे वामपंथी चैनल के लिए कश्मीरी पंडित भी मूल निवासी नहीं होंगे, जिन्हें इस्लामिस्टों और आतंकवादियों ने उस क्षेत्र से पलायन करने पर मजबूर किया था। शायद NDTV के अनुसार इस क्षेत्र का ‘मूल निवासी’ कहलाने का हक सिर्फ मुसलमानों को है।

अगर हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन के बयान का आँकलन किया जाए, तो एक प्रकार से कहीं न कहीं NDTV जैसे वामपंथी मीडिया पोर्टल आतंकियों की ही जुबान बोल रहे हैं।

हाल ही में 17 अक्टूबर को यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट जम्मू एंड कश्मीर नामक संगठन द्वारा जारी इस पत्र में कहा गया, अस्सलाम वालेकुम, आज से पहले हमारे आजादी के सिपाहियों ने तीन गैर-स्थानीय हिंदुत्ववादी लोगों को साउथ कश्मीर के कुलगाम के वानपोह इलाके में मारा था। हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों ने बिहार में 200 मुस्लिमों को पिछले एक साल में मारा। जैसा कि पहले ही चेतावनी दी जा चुकी है कि तुम लोग हमारी जमीन को छोड़ो वरना इन चीजों के लिए तैयार रहो। ये बदला लेने के लिए की गई स्ट्राइक्स थीं; उन अत्याचारों के विरुद्ध जो भारतीय सेना मासूम नागरिकों पर करती है।’

NDTV के इस कुत्सित कवरेज को लेकर लोगों ने जमकर आलोचना भी की। समीत ठक्कर नामक यूजर ने पोस्ट किया, “गैर लोकल, नॉन नेटिव, बाहरी इत्यादि। यह लोग फिर से अपने उपनामों के साथ शुरू हो गए हैं, विशेषकर अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद। क्या हमें जगाने के लिए फिर से एक और पलायन की आवश्यकता पड़ेगी? ऐसे लोगों के विरुद्ध सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को जल्द से जल्द एक्शन लेना चाहिए।”

एक अन्य यूजर ने पोस्ट किया, “बाहरी? ये क्या नौटंकी है? वो बिहार से था, कश्मीर में मारा गया। जहां तक मैंने पढ़ा है, दोनों भारत का हिस्सा है। क्या हम अब ‘Settler Colonialism’ के वैश्विक वामपंथी विष को अब अपने यहाँ पनपने देंगे?”

उनसे पहले 5 अक्टूबर को बिहार के भागलपुर के रहने वाले वीरेंद्र पासवान की इस्लामिक आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। सच कहें तो कश्मीर में मारे गए हिन्दू नागरिकों और अन्य गैर मुस्लिम कामगारों के प्रति वामपंथी मीडिया की कवरेज को देखते हुए इतना तो स्पष्ट है कि यह लोग अपने ‘आकाओं’ को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे आतंकवाद को ही उचित क्यों न ठहराना पड़े। जब तक सरकार इस्लामी आतंकवादियों को चलाने वाली विचारधारा के खिलाफ खुलकर कार्रवाई नहीं जाती; इस क्षेत्र में सही अर्थों में शांति लाना मुश्किल होगा। इस बीच, सरकार को NDTV जैसे समाचार चैनलों से भी सख्ती से निपटने की जरूरत है। ये कुछ और नहीं बल्कि ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के पर्दे के पीछे छुपे बेशर्म हैं जिनका मकसद ही कट्टरपंथ का संरक्षण है!

 

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