महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब समेत कई राज्यों पर कोल इंडिया का 20,000 करोड़ रुपये बकाया है

देश में कोयले की कमी नहीं है, बल्कि इन राज्यों ने बकाया नहीं दिया है।

मुख्यधारा की मीडिया वाली बातों पर मत जाइए। देश में कोई कोयला संकट नहीं है। देश में कोयला संकट होना और पावर प्लांट में कोयल ना होना, यह दोनों अलग चीजें हैं। देश में इस समय कोयला पावर प्लांट के पास नहीं है लेकिन देश में कोयला उत्पादन रिकार्ड पैमाने पर हुआ है और इस बार तो कोयला उत्पादन में 12% कई वृद्धि हुई है। चौंकने की आवश्यकता नहीं है, हमें मुख्यधारा की मीडिया द्वारा झूठ परोसा गया है और हम राजनीति प्रेरित खबर को खा रहे हैं।

असल में पावर प्लांट द्वारा कोयला उत्पादकों को पैसा नहीं दिया गया है, इस वजह से यह संकट उत्पन्न हुआ है और इसका कोयला उत्पादन से कोई लेना देना हई नहीं है। इस नैरेटिव के खेल से बाहर निकलकर समझने की कोशिश करते हैं।

कोयला उत्पादन

पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच छह महीने में 28.2 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ था और इस साल इसी दौरान यह आंकड़ा 31.5 करोड़ टन का है, यानी 12% की वृद्धि हुई है। कोविड काल में भी कोयला उत्पादन या डिस्पैच पर ज्यादा असर नहीं पड़ा था क्योंकि PSUs चल रहे थे।

आम तौर पर मॉनसून में उत्पादन कम हो जाता है लेकिन हम पहले से ही 31.5 करोड़ टन उत्पादन कर चुके हैं, जो पिछले साल की तुलना में 12% अधिक है। 2019-20 में कोयले का उत्पादन 730 मिलियन था। 2020-21 में, कोविड के समय में केवल 2% की गिरावट आई थी। इस साल हम 720 मिलियन टन उत्पादन को छूने जा रहे हैं।

फिर ये कोयला संकट कैसे हुआ? असल में यहां से दूसरा खेल समझना जरूरी है। भारत में कोयला उत्पादकों से कोयला खरीदा जाता है, फिर राज्य संचालित पावर प्लांट में इसका इस्तेमाल किया जाता है और बिजली का वितरण होता है। वास्तव में राज्यों द्वारा कोयला वितरक और उत्पादक को पैसा दिया ही नहीं गया है।

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पावर प्लांट में कोयले की कमी

देश में कोयले के स्टॉक की कथित कमी के कारण बिजली संकट की खबरों के बीच, सरकारी सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि राज्यों को कोल इंडिया को लगभग 20,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना है जो अभी तक पुराने कोयलों के लिए नहीं किया गया है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, कोयला मंत्रालय जनवरी से ही कर्ज का भुगतान कर कोल इंडिया से स्टॉक लेने के लिए राज्यों को लिख रहा है, लेकिन राज्यों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

ऐसे में यह कह देना कि कोयला ही नहीं है, यह मूर्खता है। राज्य कोल इंडिया से स्टॉक नहीं उठा रहे हैं क्योंकि पहले का पैसा देना है। रही कसर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों ने मुख्य कोयला संयंत्र बंद करके पूरा कर दिया है।

अब आपको एक चीज और समझनी होगी। कोल इंडिया द्वारा एक निश्चित मात्रा में कोयला बेचा जाता है जो E नीलामी से आवंटित किया जाता है। कुछ कोयले की आपूर्ति ईंधन आपूर्ति समझौतों या FSA के तहत की जाती है। ई-नीलामी में कोयले का मूल्य FSA से अधिक होता है।

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तटीय राज्यों में स्थित बिजली उत्पादक पूर्ण FSA नहीं चाहते हैं क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कीमतों पर खेल खेलते थे । आयातित कोयले में कम राख और ज्यादा गर्मी होती है। आयातित कोयले में 500 ग्राम कोयला एक किलोकैलोरी बिजली पैदा करता है और भारतीय कोयले में एक यूनिट बिजली पैदा करने के लिए 700 ग्राम कोयला की जरूरत होती है।  अब वैश्विक स्तर पर कोयले की कीमतों के चलते कोयला आयात कम है और अब राज्य सरकारें भारतीय कोयला सस्ते दाम पर चाहती हैं। इसके अलावा राज्य द्वारा संचालित बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा कोल इंडिया को भुगतान नहीं किया गया है।

सरकारी सूत्रों ने आगे कहा कि कोल इंडिया एक सीमा तक ही स्टॉक कर सकती है क्योंकि ओवर स्टॉकिंग से कोयले में आग लग सकती है। झारखंड, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अपनी कोयला खदानें हैं लेकिन खनन बहुत कम है, या हुआ ही नहीं है। जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कीमतें कम थीं तो राज्य और बिजली कंपनियां कोयले के आयात पर निर्भर थीं। अब जब इसकी कीमतें अधिक हुई हैं तो वे घरेलू कोयले पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं।

सूत्रों के अनुसार, सरकार अगले पांच दिनों में प्रतिदिन कोयला उत्पादन को 19.4 मिलियन टन से बढ़ाकर 2 मिलियन टन करने की योजना बना रही है। सरकार ने कहा कि भारी बकाया के बावजूद किसी भी राज्य को कोयले की आपूर्ति कभी नहीं रोकी गई है।

परंतु राज्य सरकारें बकाया चुका कर कोयले की कमी की समस्या को दूर सकते हैं। विपक्ष द्वारा इसमु द्दे पर सरकार को घेरने की बेकार कोशिश की जा रही है। अब आवश्यक है कि सच सबके सामने आए और लोग यह जाने कि यह संकट राज्यों के चलते है जबकि कोयले की देश में कोई कमी नहीं है।

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