महबूबा मुफ्ती को अगर हम कुछ मायनों में ट्यूबलाइट कहें तो गलत नहीं होगा! सत्ता से बाहर हुए उन्हें 3 वर्ष हो गए हैं और जिन कारणों से राज्य की जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर निकाल फेंका, उसके भी 3 वर्ष पूरे हो गए हैं, और तो और जिस व्यक्ति ने प्रमुखता से उनकी शासनकाल में हुई भ्रष्ट गतिविधियों को लेकर सवाल उठाए, उनके द्वारा लगाए गए आरोप भी 3 वर्ष पुराने हो चुके हैं। परंतु, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हाल ही में अपनी चिरनिद्रा से जगकर बाहर आई हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को लीगल नोटिस भेजा हैं, क्योंकि उन्होंने तीन वर्ष पूर्व रोशनी एक्ट के अंतर्गत हो रही वित्तीय अनियमितताओं को लेकर मुफ्ती सरकार पर सवाल उठाए थे।
क्या है पूरा मामला?
अभी हाल ही में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर बीते दिन शुक्रवार को एक कानूनी नोटिस भेजा। समाचार एजेंसी ANI ने शुक्रवार को यह जानकारी दी और ये भी बताया कि मुफ्ती ने 10 करोड़ रुपये मुआवज़े की मांग की है।
दरअसल, हाल ही में वायरल हुई एक वीडियो क्लिप में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने यह दावा किया था कि अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती को रोशनी एक्ट के तहत अनुचित लाभ मिला। यह वीडियो क्लिप साल 2018-19 के बीच की बताई जा रही है, जब रोशनी एक्ट का घोटाला पहली बार सामने आया था। ज्ञात हो कि सत्यपाल मलिक के नेतृत्व में अनुच्छेद 370 निरस्त हुआ और उन्हीं के नेतृत्व में महबूबा मुफ्ती की सरकार को भंग किया गया था।
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धर्म के आधार पर लोगों को दी जा रही थी जमीन
परंतु ये रोशनी एक्ट था क्या, और उसमें ऐसा क्या विवादित था जिसके कारण महबूबा मुफ्ती की सरकार गिर गई? ज़मीन जिहाद से जुड़े अपने शो में जी न्यूज के प्रसिद्ध पत्रकार सुधीर चौधरी ने बताया था कि ““रोशनी एक्ट एक बहुत बड़ा घोटाला था, जिसमें अवैध कब्जा करने वालों को बेशकीमती ज़मीनें कौड़ियों के भाव बेच दी गयी थी। फिलहाल ये मामला जम्मू-कश्मीर के हाई कोर्ट में लंबित है परंतु ये एक बहुत बड़ी साजिश थी। आरोपों की माने तो हिन्दू बहुल जम्मू में अवैध कब्जे वाली सरकारी ज़मीन का मालिक केवल एक ‘धर्म विशेष’ के लोगों को बनाया गया था।”
परंतु प्रश्न तो अब भी वही है, यह घोटाला हुआ कैसे? TFI द्वारा इसी विषय पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “इस अधिनियम के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में सरकारी ज़मीन पर जो भी अवैध कब्जा करता, उसे ही उस क्षेत्र का वास्तविक स्वामी भी बना दिया जाता था। इस तरह से राज्य में इस्लामी कट्टरपंथियों की पहुंच जम्मू क्षेत्र तक बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर वर्षों तक धांधलेबाजी की जाती रही। इससे न सिर्फ राज्य के राजकोष को नुकसान पहुंचा, अपितु धर्म के आधार पर लोगों को अवैध रूप से पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकारों द्वारा ज़मीन आवंटित की जाती रही। जब कठुआ मामला विवादों के घेरे में आया, तो उसी वक्त जम्मू के गुर्जर और बकरवाल समुदाय ने भी इस एक्ट के विरोध में अपनी आवाज़ उठानी शुरू कर दी, क्योंकि पीडीपी सरकार ने रोशनी एक्ट के जरिए रोहिंग्या घुसपैठियों को अवैध रूप से बसाना शुरू कर दिया था। अंतत: 2018 में राष्ट्रपति शासन लगने के उपरांत इस कपटी अधिनियम को निरस्त कर दिया गया”।
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महबूबा मुफ्ती के पैंतरे अब किसी काम के नहीं
अब महबूबा मुफ्ती भले ही 3 वर्ष बाद सत्यपाल मलिक के आरोपों को लेकर उन पर मानहानि का मुकदमा कर रही हैं, परंतु उनके पैंतरे सफल नहीं होने वाले हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही केंद्र सरकार एक-एक कर अलगाववादियों के पूरे ‘साम्राज्य’ को तहस-नहस कर चुकी है। जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का कद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, जिसे देखकर पीडीपी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की धड़कनें तेज हो रही है और इन पार्टियों की ओर से नए-नए पैंतरे आजमाए जा रहे हैं। ऐसे में अगर महबूबा मुफ्ती अपने इन कारनामों से बाज नही आईं तो उनकी और उनकी पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ना तय है।