अब PSUs को रेलवे के टेंडर्स पाने के लिए निजी कंपनियों से लेनी पड़ेगी टक्कर

ये रेलवे में कई बदलाव लायेगा!

रेलवे टेंडर

PC: Jagran

आप सभी को स्मरण होगा जब दिल्ली के रामलीला मैदान से एक आदमी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चिल्ला रहा था। वो चिल्लाता गया और आपको मूर्ख बनाता गया। इस मुद्दे और कुछ लोगों की मूर्खता पर सवार हो वह दिल्ली का मुख्यमंत्री बन बैठा। अब वह महंगे प्रचार, बेतुके वादों और झूठे श्रेय के माध्यम से मुख्यमंत्री बन जाता है। मुद्दा गुम हो गया और बाबाजी गांव चले गए। जनता छली जाती है। परंतु, निराश होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि 70 साल के एक नौजवान आदमी को प्रधानमंत्री चुन जनता ने हानि की क्षतिपूर्ति कर दी थी।

टेंडर प्रक्रिया में सुधार

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर सबसे करारा प्रहार कर रही है और वो भी अपनी नीतियों और कार्यों से। हाल ही में रेलवे बोर्ड ने एक आदेश जारी कर रेलवे के कार्यों टेंडरों और परियोजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ-साथ निजी उपक्रमों को भी भाग लेने की सहमति दे दी है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी शामिल हैं जो राष्ट्रीय परिवहन के अंतर्गत आते हैं।

क्या है पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग?

पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, उन कंपनियों को कहा जाता है जिनमें 50% से अधिक हिस्सेदारी सरकार की होती है। यह हिस्सेदारी केंद्र सरकार या राज्य सरकार या दोनों सरकारों की सयुंक्त रूप से हो सकती है जैसे ONGC,  NTPC,  BSNL  इत्यादि।

पूर्ववर्ती समय की टेंडर प्रक्रिया

पहले, एक समय पर रेलवे द्वारा जारी किसी भी कार्य के लिए टेंडर परियोजना और प्रोजेक्टों में सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ही भाग ले सकते थे। इस कारण प्रतिस्पर्धा का दायरा काफी सीमित था। निजी उपक्रम पर प्रतिद्वंदिता प्रतिबंध के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच से ही किसी का चुनाव कर लिया जाता था। उसके पश्चात सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रेलवे द्वारा प्रदान किए गए इन टेंडरों को बाजार के निजी उपक्रमों के बीच वितरित कर देते थे, अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सिर्फ एक कमीशन एजेंट के रूप में काम करते थे जो निजी उपक्रमों को रेलवे के टेंडर मुहैया कराते थे।  प्रतिस्पर्धा के अभाव और सरकारी दलाली के कारण लागत में वृद्धि, कार्य में विलंब होना, गुणवत्ता में गिरावट, प्रशासनिक अक्षमता, भ्रष्टाचार में वृद्धि और विकल्प अभाव जैसी समस्याओं का सामना रेलवे को करना पड़ता था।

मोदी सरकार द्वारा रेलवे टेंडरों में सुधार

अब मोदी सरकार ने इन टेंडर को सार्वजनिक कर एक साथ इन सारी समस्याओं पर करारा प्रहार किया है। मोदी मंत्रिमंडल के नवनियुक्त रेलवे मंत्री अश्विनी कुमार हमेशा से ऐसी नीतियों के आलोचक रहे हैं। अतः, कार्यभार संभालते ही उन्होंने रेलवे की परियोजनाओं और टेंडरों से सरकारी उपक्रमों के वर्चस्व को समाप्त करने की नीति को आगे बढ़ाया।

जिसे आखिरकार रेलवे बोर्ड ने मान लिया और आदेश जारी करते हुए रेलवे के सभी परियोजनाओं और टेंडरों में निजी सहभागिता को भी सहमति दे दी। सबसे हैरानी की बात तो यह है कि यह आदेश 19 दिसंबर 2019 से ही लागू माना जाएगा अर्थात इस दिनांक के पश्चात रेलवे द्वारा जारी समस्त टेंडरों और परियोजनाओं, जिनमें सिर्फ सरकारी उपक्रमों की सहभागिता रही है, उसे तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया जाएगा। उनके लिए पुनः टेंडर जारी किए जाएंगे और इस बार इसमें निजी उपक्रम भी भाग ले सकेंगे।

प्रयास के दूरगामी परिणाम

रेलवे के पुनरुद्धार की दिशा में सरकार का यह कदम एक क्रांतिकारी पहल है जिससे सकारात्मक प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होगी और सभी ठेकेदार बेहद कम परियोजना राशि में गुणवत्तापूर्ण कार्य करेंगे। भ्रष्टाचार भी कम होगा। इतना ही नहीं सरकार के इस फैसले से रेलवे के परियोजनाओं में गुणवत्ता सुधार भी होगा सारे काम समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से पूर्ण होंगे, ठेकेदार और उद्यम उत्तरदाई होंगे, खर्च और लागत भी कम होगा, प्रशासनिक क्षमताओं में सुधार होगा। निजी उद्यमों को प्रोत्साहन मिलेगा‌ रोजगार मिलेगा और सरकारी उपक्रमों की कार्यशैली भी सुधरेगी। इससे एक नई व्यवस्था का सृजन होगा जो सकारात्मक और सहयोग पूर्ण रवैये के साथ भारतीय रेलवे को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। मोदी सरकार का यह कदम भारतीय रेलवे को सक्षम, सुगम और सुदृढ़ कर देगा।

 

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