“इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पर ए बेखबर,
शहर में तेरी जीत से ज्यादा मेरे हार के चर्चे हैं”
भारत क्रिकेट का बेताज बादशाह है। पाकिस्तान के साथ किसी भी संदर्भ में उसकी तुलना भारत के लिए स्वयं में लज्जाजनक है। वहीं, दूसरी ओर किसी संदर्भ में भारत के समतुल्य खड़े होने की क्षमता ही पाकिस्तान के प्रगति की पराकाष्ठा है। आईसीसी के सभी टूर्नामेंटों में ट्रॉफी हासिल कर चुके भारत को पाकिस्तान ने विश्व कप में पहली बार पराजित किया। पूरे विश्व कप में अब तक भारत और पाकिस्तान 14 बार आमने सामने आ चुके हैं, जिसमें t20 विश्व कप की 6 प्रतियोगिताएं शामिल है। क्रिकेट जगत में भारत की उपलब्धि का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि पाकिस्तानियों ने इसे इस्लाम, जिहाद, मुसलमान और कुरान की जीत बताई है। किसी ने क्या खूब कहा है कि आपकी श्रेष्ठता तब सिद्ध होती है, जब आपके साथ खेलना ही विरोधी का सौभाग्य हो और जीतना जीवन उद्देश्य। अनंत पीड़ा की परिधि में घिरे पतित पाकिस्तान के लिए यह शाश्वत सुख के समान है, उनके जीवन की अभिलाषा पूर्ण हुई। अनिश्चितताओं के इस खेल में ही पाकिस्तान को भारत पर जीत की थोड़ी बहुत आशा थी जो अंततः पूर्ण हुई।
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संतुलन साधने में हुई गड़बड़ी
पाकिस्तान अपनी औकात जानता है। भारत के समक्ष उसकी क्या स्थिति है इसका समग्र भान पाकिस्तान को है, शायद इसी वजह से पाकिस्तान अपनी जीत का श्रेय अपने खिलाड़ियों को न देकर इस्लाम, कुरान, अल्लाह और नबी को दे रहा है। हमने विश्व कप के वार्म अप मैच में कमजोर अफ्रीकी टीम के समक्ष पाकिस्तान के प्रदर्शन को देखा। 186 रन बनाने के बावजूद जिस कदर से पाकिस्तानी गेंदबाजों की धुलाई हुई, उससे उनकी टीम प्रबंधन और तैयारी की कलई पूर्णतः खुल चुकी है। अत्यधिक प्रचुरता, संपन्नता और संसाधन भी कभी-कभी भ्रम पैदा करते हैं और संतुलन को बिगाड़ पराजय का कारण बनते हैं। भारतीय टीम के साथ भी यही हुआ।
खिलाड़ियों के प्रदर्शन उनकी उत्कृष्टता और उच्च मानदंडों के मुकाबले में भारत के समक्ष विश्व की कोई टीम नहीं टिकती। अगर जस्टिन लैंगर के शब्दों में कहें तो 135 करोड़ की आबादी में क्रिकेट खेलने के लिए राष्ट्रीय टीम में चुने गए 11 लोगों को किसी भी मायने में कम आंकना मूर्खतापूर्ण है। इतनी अधिक प्रतिद्वंदिता और संघर्षों के बाद नेशनल टीम में चुना जाना खिलाड़ियों के उत्कृष्टता का ही प्रमाण है। उत्कृष्टता की किसी प्रचुरता ने भ्रम पैदा किया और भारतीय क्रिकेट टीम के संतुलन को बिगाड़ दिया। संतुलन साधने की इस नाकामी को हम नेतृत्व की नाकामी से भी जोड़ सकते हैं। प्रश्न उठता है कि संतुलन साधने में गड़बड़ी आखिर हुई कहां?
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पांड्या के सिलेक्शन पर उठे सवाल
वास्तविक समस्या तब उत्पन्न हुई जब हमने शार्दुल ठाकुर के स्थान पर हार्दिक पांड्या को प्रश्रय दिया। हार्दिक पांड्या एक उच्च कोटि के ऑलराउंडर हैं इसमें कोई संदेह नहीं। वह उत्कृष्ट क्षेत्र रक्षक, बेहतरीन बल्लेबाज और एक मानद गेंदबाज है। परंतु, विश्वकप जैसे मंच पर आपका फॉर्म मायने रखता है और साथ ही फिटनेस भी एक महत्वपूर्ण मानक है। हमने इंडियन प्रीमियर लीग में हार्दिक पांड्या का खराब फॉर्म देखा। मुंबई इंडियंस की तरफ से खेलते हुए उन्होंने कोई भी अभूतपूर्व योगदान नहीं दिया।
मुंबई की ओर से खेलते हुए उनके प्रदर्शन में गिरावट निरंतर बनी रही और उन्होंने गेंदबाजी तो बिल्कुल भी नहीं की, क्योंकि उन्हें वर्ल्ड कप के लिए बचा कर रखा गया था। दूसरी तरफ अगर हम शार्दुल ठाकुर की ओर देखें तो उन्होंने चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया था। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी उनका प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है, लेकिन चैंपियंस ट्रॉफी में हार्दिक पांड्या द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए करामाती प्रदर्शन के बल पर टीम में उनका चयन करना कोहली की खराब कप्तानी को दर्शाता है। पाकिस्तान के खिलाफ हारने का एक कारण यह भी रहा कि भारत अपने तेज गेंदबाजों के खराब प्रदर्शन से गुजर रहा है।
ठाकुर को किया गया नजरअंदाज
दूसरी ओर अगर आप आईपीएल के हालिया संस्करण को ही उठा करके देखें, तो गेंदबाजी के क्षेत्र में शार्दुल का प्रदर्शन काफी बेहतरीन था। शार्दुल ठाकुर हालिया आईपीएल संस्करण में सबसे ज्यादा विकेट लेने के मामले में चौथे नंबर पर रहे। चलिए मानते हैं हर्षल पटेल और आवेश खान अंतरराष्ट्रीय टीम में चयनित ना हो पाने के कारण पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेल सके, लेकिन शार्दुल ठाकुर का विकल्प तो कोहली के पास मौजूद था और साथ ही साथ उनके शानदार फॉर्म का लेखा-जोखा भी। इसके बावजूद हार्दिक का चयन आश्चर्य में डालता है।
मैच के दौरान अंतिम कुछ ओवरों में बल्लेबाजी करने आए हार्दिक पांड्या ने बिल्कुल धीमी गति से रन बनाए तथा टीम को फिनिशिंग टच देने में भी नाकाम रहे। अगर यही शार्दुल ठाकुर होते तो शायद परिस्थिति कुछ और होती। पाकिस्तान के खिलाफ मैच में जिस प्रकार की पिच देखने को मिली, उस पर अपनी मध्यम गति के गेंदबाजी और उसमें विविधताओं के कारण शार्दुल ठाकुर तुरुप का इक्का साबित हो सकते थे। एक तरफ जहां भारत के सभी तेज गेंदबाज काफी ज्यादा रन लुटा रहे हैं, उस समय शार्दुल ठाकुर की मध्यम गति के गेंदबाजी रन प्रवाह पर बांध का काम कर सकती थी।
परंतु उनका चयन ना हो पाना कोहली की अदूरदर्शिता को दर्शाता है। ऊपर से इतने बेहतरीन आईपीएल प्रदर्शन और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बार-बार उत्कृष्टता को दोहराने के बावजूद शार्दुल का चयन ना हो पाना कोहली की नाकामी और टीम में व्याप्त लचर संतुलन को साफ-साफ परिलक्षित करता है।
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खैर जो हुआ सो हुआ हार जीत खेल का एक अभिन्न अंग है। अभी आगे पूरी प्रतियोगिता पड़ी हुई है। भारत के खिलाफ जीत हासिल करना पाकिस्तान के लिए वर्ल्ड कप जीतने के समान है। छोटा आदमी गुंडई करता है तो उसे करने दो आप निराश मत हो, हताश मत हो! वापिस अपनी भुजाओं में बल बल भरो और इस हार पर मरहम स्वरूप विश्व विजेता का ताज भारत के सर पर रख दो।