विज्ञान में भी जाति: SC-ST वर्ग को “विशेष रूप” से दी जाएगी रिसर्च सुविधा, बनेंगे “आरक्षित” STI

ये है आपकी समानता ?

एस०टी०आई०

भारत सरकार द्वारा SC-ST वर्ग के लिए विशेष आरक्षित साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन हब बनाने की योजना घोषित की गई है। पिछले दो वर्षों में एससी वर्ग के लिए 13 और एसटी वर्ग के लिए 7 साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन हब बनाए जा चुके हैं और अब भारत सरकार की योजनाएं ऐसे ही 75 आरक्षित एस०टी०आई० बनाने की है। डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के उच्च अधिकारियों के साथ मीटिंग में केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने इसकी घोषणा की है।

सरकार का कहना है कि SC-ST कम्युनिटी के लोगों को अपनी कम्युनिटी की आवश्यकताओं के अनुसार नए आविष्कार कर सकेंगे। सरकार का मानना है कि इस एस०टी०आई० हब के जरिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट ‛सतत विकास’ के लिए आवश्यक आविष्कार किए जा सकते हैं। एस०टी०आई० के जरिये नए आविष्कारों और तकनीकी उन्नति के प्रयोग से शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आदि समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

हालांकि, यह विचार ही बड़ा अटपटा है कि वैज्ञानिक प्रगति के क्षेत्र में आरक्षण लागू किया जाए। यह विमर्श का विषय है कि आरक्षण ने ST-SC वर्ग के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास में कितना योगदान दिया है। यह भी एक अलग विमर्श का विषय है कि आरक्षण की योजना ने जातिगत भेदभाव को समाप्त किया है अथवा जातिगत संघर्ष को बढ़ाया है। अभी तो आरक्षण की योजना पर पुनर्विचार की बात से ही सभी राजनीतिक दल बौखला जाते हैं, और इसी में केंद्र सरकार द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की बात को आगे बढ़ाया जा रहा है।

अब सवाल यह उठता है कि यदि केंद्र सरकार वास्तव में सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की चिंता कर रही है तो ऐसे एस०टी०आई० हब में गरीब ब्राह्मणों, क्षत्रियों और ओबीसी आदि अन्य गैर एसटी-एससी वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश क्यों नहीं मिलना चाहिए?

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सरकार का कहना है कि ‛क्योंकि एसटी-एससी वर्ग के लोग अपने समुदाय की आवश्यकताओं को भली प्रकार से समझते हैं और इसलिए वे उनकी समस्याओं के तकनीकी समाधान के लिए स्वयं प्रयास करें तो अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं।’ ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या पिछड़ापन जाति प्रमाण पत्र देख कर आता है। यदि एसटी-एससी की मलिन बस्तियों में स्वच्छ जल की किल्लत है तो क्या अन्य जातियों के ऐसे वर्गों, जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, उनके घरों में यह समस्या नहीं है? क्या एक ब्राह्मण के घर हमेशा साफ पानी ही आता है? सामाजिक पिछड़ेपन का वैज्ञानिक प्रगति के साथ क्या लेना देना हो सकता है?

दूसरा सवाल यह भी है कि सरकार की योजना को इस रूप में क्यों नहीं देखा जाना चाहिए कि वह उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढ़ें वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त की जा रही तकनीकी उपलब्धियों का प्रयोग मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए ना करके उन्हीं बस्तियों में रहने वाले लोगों से यह अपेक्षा रख रही है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करेंगे?

अगर केंद्र सरकार वास्तव में किसी महत्वपूर्ण परिणाम तक पहुंचना चाहती है तो उसे IIT के विद्यार्थियों को ऐसी मलिन बस्तियों का टूर कराना चाहिए जिससे वह वहाँ की समस्याओं को समझ सकें। आरक्षित साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन हब की योजना केवल और केवल वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है जिससे कोई वास्तविक परिवर्तन होंगे ऐसा नहीं लगता है। इस प्रकार की ओछी राजनीति सपा, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे राजनितिक दल करें तो ठीक भी है किंतु केंद्र में स्थापित भारतीय जनता पार्टी से यह अपेक्षा नहीं रखी जाती है।

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