रुद्र तांडवम – ईसाई माफिया को एक्सपोज करने वाली इस फिल्म ने वामपंथियों की नींद उड़ा कर रख दी है

इस फिल्म में ईसाई माफिया और तमिलनाडु PCR एक्ट के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया है!

रुद्र तांडवम का पोस्टर

इन दिनों तमिलनाडु में एक फिल्म काफी चर्चा में है – रुद्र तांडवम। मोहन जी क्षत्रियन द्वारा निर्देशित इस फिल्म में ईसाई माफिया और तमिलनाडु PCR एक्ट के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया है। इसमें ऋषि रिचर्ड और गौतम वासुदेव मेनन प्रमुख भूमिकाओं में है, और ये फिल्म प्रदर्शित होने के साथ ही वामपंथियों और ईसाई माफिया के रातों के नींद उड़ा रही है। असल में ‘रुद्र तांडवम’ का मूल विषय है तमिलनाडु PCR एक्ट यानि नागरिक सुरक्षा अधिकार अधिनियम का दुरुपयोग, जिसके अंतर्गत उच्च जातियों के विरुद्ध कई दशकों से पक्षपाती निर्णय लिए गए हैं।

यह अपने आप में एससी/ एसटी एक्ट का राजकीय वर्जन है, जिसका फायदा ईसाई धर्मांतरण माफिया ने काफी उठाया है, पर इसके दुरुपयोग पर कोई भी प्रकाश नहीं डालता। ‘रुद्र तांडवम’ ने न केवल इस विषय पर प्रकाश डाला है, अपितु ईसाई धर्मांतरण माफिया को कठघरे में खड़ा भी किया है। यही नहीं, ‘रुद्र तांडवम’ ने ईसाई माफिया द्वारा प्रायोजित ड्रग माफ़िया पर भी उंगली उठाई है।

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की ओर से एक विशेष धर्म को गलत तरीके से पेश करने के लिए डीजीपी के कार्यालय में ‘रुद्र तांडवम’ पर प्रतिबंध लगाने की शिकायत याचिका दायर की गई है। हालांकि दक्षिण की फिल्में हिंदू धर्म को सकारात्मक रोशनी देती हैं, लेकिन उनमें से कोई भी धर्मांतरण के खतरे पर सवाल उठाने की कोशिश नहीं करता है।

शायद इसीलिए वामपंथियों की नींद उड़ी हुई है, जो उनके पक्षपाती रिव्यू में स्पष्ट दिख सकता है। उदाहरण के लिए आप द हिन्दू के समीक्षा के इस शीर्षक को ही देख लीजिए।

इस शीर्षक से ही आप समझ सकते हैं कि इस समीक्षा में निष्पक्षता कितनी होगी। जब लेखक ने स्पष्ट कह दिया है कि ये एक खतरनाक फिल्म है, जो ‘जातिगत हिंसा’ से ‘जाति’ को हटाना चाहता है, तो उसका निशाना फिल्म नहीं, कुछ और है। असल में वह ‘रुद्र तांडवम’ के निर्देशक पर निशाना साध रहा है, जिसने उसके ‘आकाओं’ पर उंगली उठाने का साहस किया है। कुछ लोगों ने तो इसी खोखले आधार पर ‘रुद्र तांडवम’ को प्रतिबंधित करने की मांग भी की है

इसी भांति द न्यूज मिनट ने ट्रेलर पर ही विष उगलते हुए लिखा कि यह मोहन की ओर से ‘एक और फिल्म है जो उसेक हिंसक जातिवादी प्रोपगैंडा को और मजबूत बनाता है। ये प्रेम, पौरुष, सामाजिक न्याय के बारे में गलत धारणा स्थापित करती है और जाति विरोधी प्रकृति पर भी प्रहार करती है।”

इससे पूर्व भी मोहन जी क्षत्रियन ने ‘द्रौपदी’ जैसी फिल्म बनाई थी, जिसने इसी पेरियारवाद और ईसाई धर्मांतरण के गठजोड़ पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधा था। परंतु वामपंथियों के इन प्रयासों से जनता के मूड पर कोई असर नहीं पड़ा। IMDB पर ‘रुद्र तांडवम’ 10 में से 7 की सकारात्मक रेटिंग मिली है, और तमिलनाडु में लोग ‘रुद्र तांडवम’ फिल्म को देखने के लिए भर भर कर सिनेमाघरों में प्रवेश कर रहे हैं।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अरियालुर, तिरुचिरापल्ली इत्यादि में भारी संख्या में ‘रुद्र तांडवम’ फिल्म को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटी थी। हालांकि न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी ओर से ये दिखाने का भरपूर प्रयास किया कि यह वास्तविक जनता नहीं थी, और ‘भाजपा के इशारों’ पर आई थी [क्योंकि मोहन जी क्षत्रियन भाजपा समर्थक भी हैं], परंतु वे इस बात को भी पूरी तरह नहीं नकार पाए कि इस फिल्म को देखने के लिए भारी संख्या में लोग जुटे थे।

लेकिन इस सम्पूर्ण प्रकरण से एक बात और भी स्पष्ट होती है। तमिल फिल्म उद्योग में जिस प्रकार से पहले ‘प्रगति’ और ‘बौद्धिक विकास’ के नाम पर सनातन संस्कृति को अपमानित करने और ईसाई धर्मांतरण एवं इस्लाम को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता था, कहीं न कहीं अब उस पर भी लगाम लग रह है। आपको शायद ये बात प्रत्यक्ष रूप से न दिखे, लेकिन कई सफल तमिल फिल्म जैसे ‘राटचासन’, ‘कैथी’ इत्यादि में नकारात्मक किरदारों के रूप में ईसाइयों को दिखाया भी जा रहा है, और उन्हें वास्तविक स्वरूप से जनता को परिचित भी कराया जा रहा है। अब इस श्रेणी में ‘रुद्र तांडवम’ जैसी फिल्म उतनी ही क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती है, जैसे बॉलीवुड में ‘द ताशकंद फाइल्स’ हुई थी, और जनता की प्रतिक्रिया से लगता है कि ऐसा हो भी रहा है।

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