‘पराली जलाना वायु प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत है, पटाखे नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने भी मजबूरी में स्वीकारा

दीपावली वायु प्रदूषण

आप चाहे जितना भी सत्य से मुंह मोड़ने का प्रयास करें, एक न एक दिन तो आपको उसे स्वीकारना ही पड़ता है। कुछ ऐसा ही सुप्रीम कोर्ट के साथ भी हो रहा है। चाहे ऐसे न वैसे, परंतु धीरे धीरे अब शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों को भी मानना पड़ रहा है कि दीपावली पर उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्त्रोत पराली का जलाना है, न कि पटाखे फोड़ना है।

मूल विषय

वो कैसे? दरअसल, अभी सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ दीपावली पर वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत को लेकर चर्चा कर रही थी, जिसका मूल विषय था 2019 में दायर की गई याचिका। इसमें पटाखों पर प्रतिबंध के संबंध में चर्चा की जानी थी। इसी दौरान एक दलील पर जस्टिस शाह बातों ही बातों में बोल पड़े, “ये पटाखों का विषय तो केवल अभी के लिए है। परंतु पराली जलाने के मुद्दे पर हमने अभी तक चर्चा नहीं की है, और ये बहुत आवश्यक है।”

रुदाली गैंग पर करारा तमाचा

कहीं न कहीं अब सुप्रीम कोर्ट को भी स्वीकारना पड़ रहा है कि दीपावली पर चार घंटे जलाए जाने वाले पटाखों से होने वाला वायु प्रदूषण उतना घातक नहीं, जितना हफ्तों तक बेधड़क जलाई जा रही पराली। जब हरियाणा सरकार ने इस विषय पर 2019 में उग्र होने का प्रयास किया था तब इस सरकार ने आंशिक सफलता तो पाई, परंतु 2020 में उत्पन्न फर्जी किसान आंदोलन ने इस आंशिक सफलता पर भी ग्रहण लगा दिया।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ का ये विश्लेषण न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि उन सनातन विरोधी वामपंथी ‘रुदाली’ गैंग के लिए करारा तमाचा है, जो हर वर्ष ‘Say No to Crackers’ की तख्ती गले में लटकाए पहुँच जाते हैं लोगों को उपदेश देने। सेलेब्रिटी तो सेलेब्रिटी, इन्होंने तो अपने पसंद का मुख्यमंत्री (केजरीवाल) तक एक राज्य में बिठा दिया, जो जबरदस्ती दीपावली पर पटाखों के छुड़ाए जाने पर प्रतिबंध लगवाता है।

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सही को सही और गलत को गलत

प्रसिद्ध उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने एक बात सही कही थी, “झूठ और मक्कारी के इस युग में सत्य बोलना ही सबसे क्रांतिकारी कार्यों में से एक है।” चाहे विवशता में ही सही, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मुद्दे पर संज्ञान में लेते हुए इतना तो स्वीकार किया है कि ये सही प्रवृत्ति नहीं है। अप्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट ने दबी जुबान में ही सही, परंतु ये भी स्वीकारा कि हम अपने निर्णय में किसी एक धर्म के प्रति ‘पक्षपाती’ निर्णय लेते हुए नहीं दिखाई दे सकते।

पराली के जलने से कितना नुकसान होता है, इस बारे में हमने अपने कई लेखों में पहले भी बताया है। TFI के एक ऐसे ही विश्लेषणात्मक पोस्ट के अनुसार, “वर्तमान रिपोर्ट्स [2019] के अनुसार, हरियाणा और पंजाब में पराली जलने की घटनाओं में काफी बढ़ोत्तरी हुई है, और अभी तक 120 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। पंजाब के किसानों की यह शिकायत है कि पंजाब सरकार ने उनके लिए कोई और चारा ही नहीं छोड़ा है, एक किसान के अनुसार, ‘पंजाब सरकार हमें इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं देती’। इससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे दोनों सरकारें पराली जलाने की घटनाओं को नियंत्रित करने में असफल रही हैं।

2015 में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने पर प्रतिबंध लगाया था। आईपीसी और एयर पोल्यूशन एक्ट के अंतर्गत ये एक दंडनीय अपराध है। आरोपियों के विरुद्ध एफ़आईआर तो दर्ज हो जाती है, परंतु पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार दोषियों पर किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया जाता, चूंकि अफसर दोषियों को पकड़ नहीं पाते, इसके कारण पराली के जलने की समस्या और जटिल हो जाती है।”

ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट को भी आखिरकार स्वीकारना पड़ रहा है कि वायु प्रदूषण में सारा दोष दीपावली के पटाखों का कभी था ही नहीं। इसके साथ ही ये सनातनियों के लिए एक सुनहरा अवसर भी है कि वे एकजुट होकर उन लोगों के विरुद्ध आवाज उठाएँ, जो जानबूझकर उनकी संस्कृति को कुचलने पर तुले हुए हैं, और सुप्रीम कोर्ट को क्रांतिकारी निर्णय लेने पर विवश करें।

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