यदि आपने प्रभावशाली क्वाड समूह के बारे में सुना है, जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं जापान जैसे देश शामिल हैं, तो आपको पता होगा कि इसका काम भारत पैसिफिक क्षेत्र से चीन के वर्चस्व को सदैव के लिए समाप्त करना है। लेकिन चीन ही एकमात्र शत्रु नहीं है, क्योंकि और भी मुद्दे है जिनका त्वरित समाधान अवश्यंभावी है।
उदाहरण के लिए पाकिस्तान भले ही विनाश के क्षितिज पर हो, परंतु वह अभी भी भारत के लिए किसी सरदर्द से कम नहीं। कम से कम कश्मीर घाटी में जिस प्रकार से भारतीय नागरिकों की हत्याओं की घटनाएं फिर से बढ़ने लगी हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है। उसके ऊपर से उसे समर्थन देने के लिए तुर्की जैसा देश एरदोगन के नेतृत्व में कुछ भी करने को तैयार है। ऐसे में भारत, UAE, अमेरिका एवं इज़रायल अपना एक अलग ‘क्वाड’ समान दल तैयार कर रहे हैं, जिसमें भारत, इज़रायल और UAE प्रमुख रूप से पाकिस्तान और तुर्की की कमर तोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार दिखाई दे रहे हैं।
वो कैसे? अभी हाल ही में इज़रायल, UAE, अमेरिका और भारत के बीच एक वर्चुअल सम्बोधन हुआ था, जिसे एक नए ‘क्वाड’ के सृजन के रूप में देखा जा सकता है। इस मीटिंग में चारों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि एक अंतर्राष्ट्रीय फोरम की स्थापना होनी चाहिए ताकि चारों देशों के बीच आर्थिक सहायता ‘सुनिश्चित की जा सके’। इसी परिप्रेक्ष्य में इन चारों देशों की जल्द ही दुबई में प्रत्यक्ष मीटिंग भी होगी। सहकारिता के क्षेत्र के लिए इन चारों देशों ने समुद्री सुरक्षा, वैश्विक स्वास्थ्य, परिवहन और टेक्नॉलोजी में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स इत्यादि को चिन्हित किया है। कागजों पर तो ये एक आर्थिक संबंध प्रतीत होता है, परंतु वास्तविकता कुछ और ही है।
इज़रायल के लिए अधिक मान्यता
सर्वप्रथम इज़रायल की बात करते हैं। कुछ ही वर्षों पहले इज़रायल को वर्षों से लंबित वैश्विक मान्यता के मोर्चे पर एक अहम विजय प्राप्त हुई, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अब्राहम एकॉर्ड पर इज़रायल और कई प्रमुख अरब देशों, जैसे बहरीन, UAE इत्यादि के हस्ताक्षर हुए। इससे न केवल इज़रायल का इस क्षेत्र में प्रभुत्व बढ़ा, अपितु संसार को पता चला कि शांति वास्तव में कैसे लाई जा सकती है?
लेकिन इस्लामिक जगत में इज़रायल को सम्पूर्ण रूप से मान्यता नहीं मिली है। जहां UAE जैसे देशों ने पूर्ण रूप से मान्यता देने में कोई हिचक नहीं दिखाई है, तो वहीं अरब जगत से इतर अन्य कई देशों ने अभी भी इज़रायल को मान्यता नहीं दी है। उसके ऊपर से तुर्की कबाब में हड्डी की भांति कट्टरपंथी इस्लाम की विचारधारा को न केवल बढ़ावा दे रहा है, अपितु इज़रायल के साथ-साथ अरब जगत के शीर्ष देशों के लिए भी सरदर्द बना हुआ है।
तुर्की को लगेगा करारा झटका –
अब जब बात तुर्की की शुरू हुई ही है तो फिर उसकी पूरी जनमपत्री खोलनी पड़ेगी। तुर्की के वर्तमान तानाशाह रेसिप तय्यप एरदोगन ने कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने की सनक में अपने देश और अपने आसपास के क्षेत्र की वास्तव में मुश्किलें बाधा दी है। UAE और इज़रायल छोड़िए, वह भारत के लिए भी किसी सरदर्द से कम नहीं है।
उदाहरण के लिए तुर्की मुस्लिम ब्रदरहुड और हमास जैसे आतंकी संगठनों को बढ़ावा देता है। स्मरण रहे, ये दोनों ही संगठन UAE और इज़रायल की आँखों में शूल की भांति चुभते हैं। जहां मुस्लिम ब्रदरहुड UAE के लिए सबसे खतरनाक आतंकी संगठनों में से एक है, तो वहीं हमास से इज़रायल निरंतर युद्ध करने को विवश होता आया है l जैसे लश्कर का सबसे बड़ा प्रायोजक पाकिस्तान है, वैसे ही हमास के सबसे बड़े प्रायोजकों में से एक तुर्की है। इसके अलावा एरदोगन यहाँ तक दावा करते हैं कि येरूशलम में स्थित अल अक्सा मस्जिद को वह ‘यहूदियों’ के नियंत्रण से छुड़ाकर ही दम लेंगे, जो वास्तव में यहूदियों के पवित्र माउंट टेंपल परिसर को ध्वस्त कर बनवाई गई थी।
और पढ़ें : कश्मीर में दोबारा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए तुर्की ने किया पाकिस्तान के साथ गठबंधन
तो इसमें भारत को क्या चिंता? भारत के लिए तो और अधिक समस्या है, क्योंकि पाकिस्तान के कश्मीर के फटे ढोल को यदि पाकिस्तान के अलावा कोई सबसे अधिक पीटता आया है, तो वह तुर्की ही है। पिछले तीन वर्षों से एरदोगन UN से लेकर किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर निरंतर पाकिस्तानी प्रोपगैंडा का समर्थन करते आये हैं, और भारत को नीचा दिखाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। एरदोगन पाकिस्तान की इस हद तक सहायता करने को तैयार है कि उन्होंने कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध चलाए जा रहे छद्म युद्ध में सहायता हेतु अपने खुद के लड़ाके प्रशिक्षण के लिए भेजे थे।
ऐसे में UAE, इज़रायल और भारत के पास तुर्की से घृणा करने के अपने कारण है, और वे नए ‘क्वाड’ के अंतर्गत तुर्की को उसका स्थान दिखा सकते हैं और उसकी पहले से पतली अवस्था को और अधिक दयनीय बना सकते हैं। उदाहरण के लिए पूर्वी भूमध्य सागर गैस फोरम में साइप्रस, मिस्र, ग्रीस, इज़रायल, जॉर्डन एवं फिलस्तीन जैसे देश शामिल है, और अब UAE भी ऑब्जर्वर के रूप में जुड़ गया है। इसके पीछे का उद्देश्य स्पष्ट है, तुर्की को भूमध्य सागर पर वर्चस्व नहीं जमाने देना। पिछले वर्ष उसने ग्रीस के साथ गुंडागर्दी करने का प्रयास किया था, परंतु ये दांव अंत में उसी पर भारी पड़ा था।
और पढ़ें : ‘हमें तुर्की-पाकिस्तान गठबंधन का मुकाबला करना चाहिए’, ग्रीस ने सैन्य सहयोग के लिए भारत से किया आग्रह
पाकिस्तान का सर्वनाश
लेकिन इस समूह का सबसे अधिक लाभ मिलेगा भारत को, क्योंकि जब चोट तुर्की को लगेगी, तो भला पाकिस्तान कैसे नहीं बिलबिलाएगा? पाकिस्तान और तुर्की एक ही डाली के दो मुरझाये फूल समान है, और UAE एवं इज़रायल जैसे देशों से उसकी अपनी अलग समस्याएँ रही हैं, जिसके पीछे तीनों ही देश का हित इसके सर्वनाश में है। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष अमेरिका ने दावा किया कि सीरिया में तुर्की की ओर से लड़ने के लिए 100 से अधिक पाकिस्तानी लड़ाके आए थे। UAE सदैव ही तुर्की के वर्तमान शासन का धुर विरोधी रहा है, और ऐसे में ये कदम उसके लिए किसी घोर पाप से कम नहीं था।
इसके अलावा पाकिस्तान किस प्रकार से आतंकवाद को बढ़ावा देता आया है, और कैसे वह आतंकी संगठनों का समर्थन करता आया है, यह भी इन तीनों देशों से छुपा नहीं है। चाहे स्वार्थ से या वैश्विक कल्याण के हित से, परंतु भारत, इज़रायल और UAE की नई मित्रता तुर्की और पाकिस्तान पर रुद्र के गण के समान घातक सिद्ध होगी।