भारतीय खिलाड़ियों के घुटने टेकने के प्रकरण से साफ है, हमारे क्रिकेटर्स दिमाग से थोड़े कच्चे हैं

Taking The knee

PC: Sportskeeda

दिवाली पर ज्ञान दो, PR चलाओ, विज्ञापनों से पैसा कमाओ और लिबरलों को खुश करो, क्रिकेट तो चलता रहेगा; ये हम नहीं कह रहे, बल्कि भारतीय टीम की सोच कुछ ऐसी ही हो चुकी है। सचिन, सहवाग, गांगुली, द्रविड़ और गंभीर जैसे खिलाड़ियों का ध्यान केवल जीत पर केन्द्रित रहता था, और सफलता भारत के कदम चूमती थी, पर ये आज के खिलाड़ियों में देखने को नहीं मिलती। पाकिस्तान के खिलाफ भारत की हार के बाद क्रिकेट के उस मान की धज्जियां उड़ गईं, जो कि भारतीय क्रिकेट के पुरखों ने बड़ी मेहनत से बनाए थे। इसकी एक वजह राष्ट्रवाद था, जिसके चलते चोटिल होने और पिता को खोने के बावजूद क्रिकेटर अपने देश के प्रति कर्तव्य निभाने के लिए पिच पर डटे रहते थे, और लक्ष्य केवल जीत होता था। इसके विपरीत अब ऐसा प्रतीत होता है कि विराट के नेतृत्व में टीम का खून और जोश ठंडा पड़ गया है। इन खिलाड़ियों को Taking The Knee की नौटंकियां तो याद रहती हैं, लेकिन इन्होंने राष्ट्रवाद की बलि चढ़ा दी है।

Taking The Knee  की नौटंकी

 अमेरिका में अश्वेतों के विरुद्ध जो हीन भावना है, उसको लेकर पिछले वर्ष आंदोलन हुआ था, जिसके बाद Black Lives Matter नामक कैंपेन खूब चला था, जिसका असर अब भारतीय टीम में भी दिख रहा है। वो आंदोलन जिसका भारत से कोई लेना देना नहीं है, उसको समर्थन देने के लिए मैच से पहले भारतीय टीम के खिलाड़ियों ने Taking The Knee वाली नौटंकी की। सवाल तो ये भी उठ सकता है कि बांग्लादेश में मारे गए हिंदुओं के न्याय के लिए टीम ने कोई समर्थन क्यों नहीं दिया। ये निश्चित तौर पर एक पीआर कैंपेन का हिस्सा था, लेकिन ये दिखाता है कि भारतीय टीम का ध्यान अब क्रिकेट से कहीं अधिक Activism पर है। इसने एक बात साबित कर दी है कि अब भारतीय क्रिकेट टीम घुटनों पर आने की स्थिति में है, क्योंकि विराट की वानर सेना के प्लेयर्स अच्छा क्रिकेट खेलने के आलावा सारी नौटंकी कर लेते हैं।

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नहीं पड़ता कोई फर्क

 इन सारी नौटंकी के बाद विराट सेना ने मैच खेला तो बुरी तरह हारे, बल्लेबाजी से लेकर प्रत्येक मोर्चों पर पाकिस्तान के सामने भारतीय टीम फिसड्डी साबित हुई। पाकिस्तानी टीम ने दबाव में जहां बेहतरीन क्रिकेट खेला, तो वही भारतीय टीम अपने अति आत्मविश्वास और घमंड के चलते चारों खाने चित हो गई। स्थिति यह थी  कि भारतीय टीम पाकिस्तानी बल्लेबाजों का विकेट तक नहीं ले पाई। नतीजा ये कि जो पाकिस्तान विश्व कप के मैचों में भारत के सामने कभी नहीं जीता था, उसने भारत को कभी ना भूलने वाली हार का मुंह दिखाया। इन सबके बावजूद विराट कोहली की नौटंकियां खत्म नहीं हुईं, जो दिखाता है कि क्रिकेट को अब विराट की वानर सेना ने मात्र एक पैसा कमाने का खेल समझ लिया है।

पत्रकारों पर ही भड़क गए 

 भारतीय क्रिकेट टीम की इस ऐतिहासिक शर्मनाक हार पर सोशल मीडिया यूजर्स में विराट कोहली समेत पूरी टीम को निशाने पर लिया, लोगों का कहना था कि जिस तरह से पहले Taking The Knee की नौटंकी की गई, वो इस बात का संकेत थी, भारतीय टीम पाकिस्तानियों के आगे घुटने टेक चुकी थी; लोगों का कहना था कि अब भारतीय टीम राष्ट्रवाद को लेकर उत्साहित नहीं रहती है। इसी का नतीजा है कि पहले की तरह खिलाड़ी हार पर उदास नहीं दिखते, बल्कि विराट विरोधी पाकिस्तानी कप्तान को गले लगाते दिखे हैं।  टीम की हार को लेकर जब पत्रकारों द्वारा विराट से सवाल पूछे गए तो उन्होंने पत्रकारों को हटाना शुरू कर दिया। उनका कहना था, इस मामले को बेवजह बढ़ाया जा रहा है और विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

 

नौटंकी का अड्डा बन गई है टीम 

सोशल मीडिया पर हो रही आलोचनाओं को लेकर कुछ वामपंथी यह तर्क दे रहे हैं कि खेल को खेल भावना से ही देखना चाहिए, लेकिन किसी भी भारतीय क्रिकेट के प्रशंसक को आक्रोश होगा, जब उनकी टीम पाकिस्तान जैसी अनुभवहीन टीम से बुरी तरह हार जाए। जो भारत पाकिस्तान से विश्व कप के किसी मैच में कभी हारा ही न हो, और कथित तौर पर सबसे मजबूत वर्तमान भारतीय टीम के होते हुए 10 विकेट की शर्मनाक हार का सामना करे, तो उस पर विरोध की ज्वाला का भड़कना स्वाभाविक है।

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विराट कोहली सोशल मीडिया पर दिवाली मनाने का ज्ञान देते हैं। कॉफी विद करण के शो में जाकर उनके सहयोगी हार्दिक पांड्या अश्लील बातें करते हैं, खिलाड़ी विज्ञापनों के माध्यम से वामपंथी एजेंडा प्रमोट करते हैं लेकिन जब बात अपने असल काम यानी 22 गज की पिच पर खेलने की आती है, तो फिसड्डी साबित होते हैं।

ऐसे में Taking The knee की इस नौटंकी ने ये साबित कर दिया है, खिलाड़ियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैच में वह जीत रहे हैं या हार। उनका रवैया दिखाता है कि राष्ट्रवाद से उनका कोई सरोकार ही नहीं रह गया है और इनके लिए महत्व केवल पैसा कमाने का है, क्योंकि जीत का उत्साह और राष्ट्रवाद का जोश तो इन खिलाड़ियों में पूर्णतः ठंडा पड़ चुका है।

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