किसान आंदोलन के नाम पर सिंघु बॉर्डर पर बैठे हुए उपद्रवी तत्वों द्वारा बीते दिन शुक्रवार को एक दलित मजदूर की हत्या कर दी गई। लखबीर सिंह नाम के 35 वर्षीय व्यक्ति पर निहंग द्वारा श्री गुरुग्रंथ साहिब के अपमान का आरोप लगाया गया था। जिसके बाद निहंगों ने उसके हाथ काट दिए और तड़पा-तड़पा कर मार डाला। हत्या के पहले अधमरी अवस्था में लखबीर को धरना स्थल पर बने मुख्य मंच के निकट एक पुलिस बैरिकेड पर लटका दिया गया था।
घटना कि सूचना सार्वजनिक होते ही संयुक्त किसान मोर्चा ने स्वयं को घटना और निहंगों से अलग कर लिया। हत्या के अगले दिन तक एक निहंग सरबजीत सिंह ने हत्या की जिम्मेदारी ली और पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन बड़ा सवाल है कि धटनास्थल पर निहंगों की आवश्यकता ही क्या थी? धार्मिक अधिकार के नाम पर निहंगों को इस प्रकार शस्त्र रखने की इजाजत क्यों? हालिया समय में निहंगों द्वारा जिस तेजी से अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है, क्या सरकार को उनके शस्त्र रखने के अधिकार पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए।
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इससे पहले पुलिस पर भी हमला कर चुके हैं निहंग
निहंग, खालसा सेना के सबसे प्रमुख अंग माने जाते थे। निहंग को सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के अंगरक्षक के रूप में मान्यता प्राप्त थी। गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्र फतेह सिंह जी पहली बार जब नीली पगड़ी और नीले वस्त्र में गुरु साहब के समक्ष आए तो उन्होंने उनके वस्त्र को निहंग सेना के लिए ड्रेसकोड बना दिया। निहंग आज भी पारंपरिक शस्त्र लेकर घूमते हैं और गुरुद्वारों की सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं पर होता है लेकिन हाल फिलहाल में निहंगों द्वारा हिंसा की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
पिछले वर्ष लॉकडाउन के समय पटियाला में एक निहंग सिख ने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर द्वारा कर्फ्यू पास मांगे जाने पर उसका हाथ काट दिया था। पटियाला के जिस गांव की यह घटना है वहां के निवासी बताते हैं कि 20 वर्ष पूर्व बाबा बलविंदर सिंह ने कुछ निहंगों के बल पर गाँव के तालाब पर कब्जा कर लिया और जबरन गुरुद्वारा बना दिया। बलविंदर का कहना था कि वर्षों पहले कोई सिख गुरु दिल्ली जाने के दौरान रास्ते में इसी गांव में रुके और यहां खिचड़ी बनाई थी, इसलिए वह उस गांव में गुरुद्वारा बनाकर नेक काम कर रहा है। बलविंदर पर इस घटना के पूर्व 2010 में चोरी और 2013 में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हो चुका था किंतु पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। बताया जाता है कि बलविंदर से आस-पास के 12 गांवो के लोग डरते थे।
इसी प्रकार इस वर्ष मार्च महीने में तरन तारन में दो निहंग पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। इन दोनों पर नांदेड़ गुरुद्वारे से जुड़े एक सिख बुजुर्ग की हत्या का आरोप था। पुलिस जब इन दोनों की गिरफ्तारी के लिए तरन तारन पहुंची तो इन दोनों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए। जिसके बाद जवाबी कार्रवाई में दोनों निहंग मारे गए थे। अप्रैल महीने में हिमाचल प्रदेश में एक निहंग ने एक बाइक सवार पर केवल इसलिए हमला कर दिया क्योंकि उसने निहंग को लिफ्ट देने से मना कर दिया था।
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हत्यारे को मिलनी चाहिए कड़ी से कड़ी सजा
बताते चले कि निहंगों द्वारा खुलेआम नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता है। उनपर गांजे के सेवन के आरोप काफी पहले से लगते रहे हैं। यह न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि सिख धर्म में भी नशा पूरी तरह से वर्जित है। ऐसे में वह देश के कानून के साथ-साथ अपने धर्मग्रंथ की मूल वाणी को भी दूषित कर रहे हैं। उनके उग्र व्यवहार के कारण किसान आंदोलन के शुरू में ही कई किसान नेताओं ने उन्हें आंदोलन से अलग रहने की सलाह दी थी लेकिन निहंगों ने उनकी एक नहीं सुनी और अब ऐसी क्रूर घटना को अंजाम दे दिया है।
यह सत्य है कि निहंगों का सिख इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। निहंगों ने 1857 में राम जन्मभूमि में बाबरी मस्जिद में घुसकर हवन कर दिया था। निहंगों ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार में सेना की मदद की थी लेकिन पिछले कुछ सालों में निहंगों का व्यवहार काफी उग्र होता जा रहा है। ऐसे में समय आ गया है कि सरकार को लखबीर के हत्यारे निहंग को कड़ी से कड़ी सजा देकर ये मिशाल पेश करनी चाहिए कि देश के कानून की नजर में सब बराबर हैं, फिर वो दलित मजदूर हो या सिक्ख पंथ का कथित पवित्र योद्धा।