क्यों एयरलाइन व्यवसाय वास्तव में कभी लाभ नहीं कमाते हैं?

(PC: Bloomberg Quint)

एयरलाइन व्यापार को एक ऐसा व्यापार माना जाता है जिसमें नुकसान होने की संभावना बहुत अधिक होती है। ऐसा क्यों होता है इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया का सकता है। यदि इस प्रश्न का कोई संतोषजनक जवाब होता तो पिछले कुछ दशकों में कई एयरलाइन कंपनियां दिवालिया नहीं हुई होतीं।

हालांकि, हम कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित कर सकते हैं जिनके कारण ऐसा होता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विमानन उद्योग धीरे-धीरे विस्तार करने लगा। 1980 के दशक तक दुनियाभर में अधिकांश एयरलाइन सरकारी स्वामित्व में रहे थे। अमेरिका जैसे कुछ देशों में प्राइवेट एयरलाइन का भी चलन था, किंतु अधिकांश देशों में सरकार ही इस व्यापार में सक्रिय थी। उड्डयन व्यापार में सक्रिय अधिकांश सरकारी कंपनियां घाटे में चलती रहीं या तो नाम मात्र का लाभ ही कमा पाती हैं।

धीरे-धीरे जब निजी एयरलाइंस का चलन बढ़ने लगा तो सरकारी एयरलाइंस को होने वाले नुकसान में भी बढ़ोतरी होने लगी। हालांकि, प्राइवेट प्लेयर्स के इस व्यापार में उतरने के बाद टिकट के दाम कम होने लगे। धीरे-धीरे और भी प्राइवेट प्लेयर्स बढ़ते गए और प्रतिस्पर्धा में पुराने प्राइवेट प्लेयर्स को भी नुकसान होने लगा, क्योंकि हर नई कंपनी नई तकनीक लेकर आती थी और इस कारण उनका स्तर भी पुराने प्लेयर्स से अच्छा होता था। तकनीकी उच्चता के कारण नई आने वाली प्राइवेट एयरलाइन ने पुराने सभी खिलाड़ियों को पछाड़ दिया जिससे पुरानी कंपनीयां दिवालिया होने लगी।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि विमानन सेक्टर में लगातार नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। यह बात उचित है कि हर नई कंपनी नए आविष्कार लेकर बाजार में आती है, लेकिन विमान बनाने वाली कंपनियों की ओर से कोई विशेष तकनीकी विकास नहीं हो रहा है जिसके कारण यात्रा का दाम कम हो जाए और कंपनी का प्रॉफिट बढ़ने लगे। उदाहरण के लिए जब टेलीकॉम सेक्टर में उदारीकरण किया गया और कई कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हुई तो प्रति फोनकॉल के दाम कम होने लगे, लेकिन विमान बनाने वाली कंपनियों में कोई विशेष प्रतिस्पर्धा नहीं है। केवल दो कंपनी, USA की बोइंग और EU की एयरबस ही विमान बनाती है।

एक ओर तो ये दोनों कंपनियां कोई विशेष तकनीकी विकास नहीं दे रही हैं, जिससे प्रति यात्रा लागत कम हो सके, दूसरी ओर नई कंपनियां विमान के डिप्लॉयमेंट, पार्सल के आवागमन और अन्य सुविधाओं में लागत कम करके अपना लाभ बढ़ाती हैं। इसे प्रोसेस इनोवेशन कहते हैं। कंपनियां प्रोसेस इनोवेशन में अपनी लागत कम करके लाभ बढ़ाती हैं। एक ओर नई कंपनियां अपनी प्रोसेस इनोवेशन की लागत कम करने लगती हैं, तो अन्य कंपनियां भी ऐसा करने पर मजबूर हो जाती हैं। एक ओर कंपनियों के अन्य खर्चे कम नहीं होते दूसरी ओर वह अपनी सेवाओं का दाम कम करने का प्रयास करती। ऐसे में प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के प्रयास में भी कंपनियां साल दर साल नुकसान उठाने लगती है।

कंपनियां प्रतिस्पर्धा के कारण अपनी लागत और लाभ के बीच इतना कम अंतर रखती हैं पर तेल के दामों, टैक्स, इंटरेस्ट रेट आदि किसी बाहरी कारक में थोड़ा सा स्थान कंपनियों के लिए भारी नुकसान का कारण बन सकता है। इसके बाद कोई भी प्राकृतिक आपदा या मानव कृत आपदा के कारण भी विमानन कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है। यदि कंपनी का एक प्लेन किसी कारणवश क्रैश हो जाए तो कंपनी की कार्यक्षमता संदेहास्पद हो जाती है, इसका सीधा असर कंपनी के व्यापार पर पड़ता है।

कंपनी किसी अप्रत्याशित घटना के कारण यदि नुकसान झेलती है तो सरकार को उसे बचाने के लिए भी आना पड़ता है। विमानन बाजार में निजी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत जोखिम पूर्ण और कठिन है यही कारण है कि आज दुनिया भर में सरकार द्वारा संचालित विवरण कंपनियां काम कर रही है जो नुकसान झेल कर भी लोगों को अपनी सेवाएं देती हैं। पश्चिम एशिया, यूरोप से लेकर अमेरिका तक ऐसी कंपनियां मौजूद है जो सरकारी स्वामित्व में है।

दुनिया भर के एयर लाइन सेक्टर में होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि विमान बनाने के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जाए। भारत और चीन इस क्षेत्र में नए विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं। जब विमान बनाने के मामले में टेलीकॉम सेक्टर जैसी प्रतिस्पर्धा पैदा होगी तब एयरलाइन कंपनियों को भी लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त सरकार फ्यूल टैक्स कम करके तथा अन्य पूंजीगत निवेश कम करके विमानन कंपनियों की सहायता कर सकते हैं।

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