किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है। एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ फटकार ही नहीं लगाई बल्कि किसान संगठन पर शहर का गला घोंटने का भी आरोप लगाया। किसी भी लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत हर व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह सरकार की कमियों और नीतियों में समस्या होने पर विरोध प्रदर्शन करें। भारत तो ऐसा देश है, जहाँ हर दिन किसी न किसी विषय को लेकर विरोध प्रदर्शन होता रहता है। बड़ा सवाल यह है कि किसी के विरोध की क्या सीमा होनी चाहिए? क्या विरोध के नाम पर आगजनी करना सही है? क्या विरोध के नाम पर दूसरों की सुलभता को ताख पर रख देना सही है? क्या विरोध के नाम पर राजमार्गों को, रेलमार्गों को बाधित करना सही है? क्या एक व्यक्ति के विरोध के चक्कर में ऊई एम्बुलेंस में मर जाए, ये सही है?
संविधान के जिस अनुच्छेद में आपको विरोध करने का अधिकार प्राप्त होता है, वहां यह भी लिखा हुआ है कि पब्लिक आर्डर यानी कि यह स्वतंत्रता लोकाचार के अधीन होगी। यह बातें कई लोगों को समझ नहीं आती है और वह किसान आंदोलन के नामपर राजमार्ग जाम करके महीनों से बैठे हुए हैं लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें फटकार लगाई गई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक किसान आंदोलन समूह को फटकार लगाई। इस समूह ने दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी थी। कोर्ट ने कहा कि अगर वह सड़कों और राजमार्गों को अवरुद्ध करके अपना विरोध जारी रखने की योजना बना रखे हैं तो अदालत से संपर्क करने का क्या मतलब है। न्यायमूर्ति AM खानविलकर ने याचिकाकर्ता किसान महापंचायत के वकील से कहा, “आपने शहर का गला घोंट दिया है और अब आप शहर के अंदर आना चाहते हैं? आप सुरक्षा और रक्षा कर्मियों के काम में बाधा डाल रहे हैं। यह मीडिया में था और ये सब बंद होना चाहिए। एक बार जब आप कानूनों को चुनौती देकर अदालत में आते हैं, तो विरोध करने का कोई मतलब नहीं है।”
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कोर्ट ने आंदोलन कर रहे लोगों पर भी फटकार लगाई और यह कहा कि क्या वह कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं? न्यायालय ने कहा, “सत्याग्रह करने की क्या बात है। आपने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, तो कोर्ट पर भरोसा रखें। एक बार जब आप अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं तो विरोध का क्या मतलब है? क्या आप न्याय व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं? सिस्टम में विश्वास रखें।”
न्यायपालिका ने यह भी कहा है कि विरोध का मतलब यह नहीं होता है कि आम जीवन को प्रभावित किया जाए और उनको तकलीफ में डाला जाए। न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा, “आप राजमार्गों को अवरुद्ध करते हैं और फिर कहते हैं कि विरोध शांतिपूर्ण हैं। नागरिकों को भी घूमने का अधिकार है। उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आप सुरक्षा को भी प्रभावित कर रहे हैं। आपने रक्षा कर्मियों को भी रोका है।”
दिल्ली NCR के पूरे इलाके में समस्याएं पैदा हो चुकी है। लोगों को यातायात व्यवस्था में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ रहा है, जिन्हें अस्पताल और रोजगार के लिए राजधानी आना पड़ता है। इस फटकार में बाद भी याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश अधिवक्ता अजय चौधरी ने कहा कि आंदोलन के दौरान सड़कों और राजमार्गों को अवरुद्ध करने की योजना नहीं थी। अजय चौधरी ने बताया कि यह पुलिस थी न कि किसान जो राजमार्गों को अवरुद्ध कर रखे हैं। कोर्ट ने इस पर कहा है कि वो एफिडेविट देकर बताएं कि अवरुद्ध उन्होंने नहीं किया है। अजय चौधरी की बातों से यह समझा जा सकता है कि वह यह जताना चाहते हैं कि किसानों का तो यह अधिकार है, कि वह शहर में जाकर पूरे राजधानी को प्रभावित करेंगे और उन्हें रोककर पुलिस राजमार्ग को बाधित कर रखी है।
खैर विरोध के नाम पर देश और राजधानी के लोगों को समस्या पंहुचा चुके किसान महापंचायत को माफी मांगनी चाहिए। लोकतंत्र के नाम पर राकेश टिकैत द्वारा फैलाये गए तामझाम के लिए माफी मांगनी चाहिए। आवश्यक यह भी है कि ऐसे लोग एफिडेविट देकर यह बताएं कि वह इस विरोध प्रदर्शन में नहीं है।