पेश हैं देश के ‘सबसे घटिया’ गृह मंत्रियों की सूची

इन लोगों ने गृह मंत्रालय की गरिमा को किया था कलंकित!

गृह मंत्री भारत

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इस देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष शीघ्र ही होने वाले हैं। जहां एक तरफ सरदार वल्लभभाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री, शंकर राव चव्हाण, ज्ञानी ज़ैल सिंह और राजनाथ सिंह जैसे प्रख्यात और ओजस्वी नेताओं ने गृह मंत्रालय की शोभा बढ़ाई और देश की अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखा, तो वहीं कुछ गृह मंत्री ऐसे भी थे, जिनके लिए उनका निजी एजेंडा या चाटुकारिता राष्ट्रधर्म से ऊंचा था। ऐसे ही लोगों की लालसाओं के कारण भारत को बार बार कलंकित होना पड़ा है और एक एक करके इन व्यक्तियों का विश्लेषण बेहद आवश्यक है। घटते से बढ़ते क्रम में देखते हैं, किसने किस स्तर तक गृह मंत्रालय की गरिमा को कलंकित किया है –

5) यशवंतरावबलवंतराव चव्हाण –

दोहरे मापदंड या दोगलापन की जीती जागती प्रतिमूर्ति यदि कोई थे, तो वे यही थे। यथार्थवाद के चश्मे से अगर देखें, तो एक आदर्शवादी भारतीय राजनीतिज्ञ के सभी गुण इस महोदय में विद्यमान हैं। ये दोगले थे, बात बात पर अपना पक्ष बदलते थे, कभी किसी एक स्थान पर नहीं टिकते थे, इनके विचार कभी स्थिर नहीं रहते थे। ये महोदय 1966-1970 तक और फिर 1979-1980 तक भारत के गृह मंत्री रहे। रोचक बात तो यह थी कि एक समय वे इंदिरा गांधी के नेतृत्व में गृह मंत्री रहे और दूसरे समय उन्ही के धुर विरोधी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय और उपप्रधानमन्त्री का पद दोनों ही संभाला। यू टर्न लेने में यदि यशवंत राव चव्हाण को कोई वर्तमान में अगर टक्कर दे सकता है, तो वे दो ही लोग है – अरविन्द केजरीवाल और कन्हैया कुमार।

4) मुफ्ती मोहम्मद सैयद –

यशवंत राव चव्हाण ने यदि देश को अपने यू टर्न से कलंकित किया, तो एक ऐसे भी व्यक्ति थे, जिसने अपने करतबों से इस देश के इतिहास के सबसे स्याह अध्यायों में से एक की नींव भी रखी, और वे थे मुफ्ती मोहम्मद सैयद। 1989 में जब राष्ट्रीय मोर्चा की गठबंधन सरकार स्थापित हुई, तो जनता दल के अंतर्गत यह देश के प्रथम और एकमात्र मुस्लिम गृहमंत्री बने। लेकिन इनके गृहमंत्री बनने के कुछ ही दिनों के बाद कश्मीर में वो हुआ जिसने आने वाले दिनों में एक भीषण नरसंहार की नींव रखी। उन दिनों भाजपा नेता टीका लाल टपलू की हत्या के पश्चात घाटी में पहले ही तनाव व्याप्त था, और इसी बीच गृह मंत्री बनने के कुछ ही दिन के पश्चात मुफ्ती मोहम्मद सैयद की बेटी, डॉक्टर रुबैया सैयद का जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकियों ने अपहरण कर लिया।

तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने लाख विरोध के बावजूद इनके अनुरोध पर आतंकियों की मांगों को मानते हुए पाँच आतंकियों को रिहा किया, और इसके कुछ ही दिनों के बाद 19 जनवरी 1990 से कश्मीरी हिंदुओं के विरुद्ध भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय प्रारंभ हुआ, जहां देश में अपने ही नागरिक शरणार्थियों की भांति रहने को विवश हो गए, और इसके दोषी केवल एक व्यक्ति थे – मुफ्ती मोहम्मद सैयद।

3) सुशील कुमार शिंदे –

यदि सुशील कुमार शिंदे ने अजमल आमिर कसाब और अफ़जल गुरु को न लटकवाया होता, तो वे इस सूची में प्रथम स्थान पर होते। परंतु एक कॉन्स्टेबल से अपने करियर की शुरुआत करने वाले कांग्रेस के इस नेता ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं, और वही उतार चढ़ाव उन्होंने देश को भी दिखाए हैं। अगर अजमल कसाब और अफ़जल गुरु को हटा दें, तो इस व्यक्ति ने बतौर गृह मंत्री भारत को दो गहरे ज़ख्म दिए हैं – निर्भया कांड के बाद असली विरोध प्रदर्शन पर हिंसक लाठीचार्ज, और आंध्र प्रदेश का जबरदस्ती विभाजन।

2012 में 16 दिसंबर की रात जो हुआ, उसे शब्दों में बताना असंभव है, परंतु जो विद्रोह हुआ, उसके प्रति केंद्र सरकार ने जो रवैया दिखाया, उससे स्पष्ट दिखता है कि इनका रवैया देश की व्यवस्था के प्रति कैसा था। वैसे भी, जिनके नेतृत्व में देश पर बिजली संकट आया हो, उनसे और क्या आशा कर सकते हैं? लेकिन इसी सुशील कुमार शिंदे ने अपनी राजनीतिक लालसा के लिए वर्षों से एक आंध्र प्रदेश को दो भागों में खंडित कर दिया – तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, जिसकी न किसी को आवश्यकता थी, और न कोई औचित्य।

2) शिवराज पाटिल –

वैसे सूची में इन जनाब को प्रथम स्थान मिलना चाहिए, पर इनके बारे में फिर कभी। ये पीवी नरसिम्हा राव के सरकार में लोकसभा के अध्यक्ष थे। 2004 में ये चुनाव हार गए थे, इसके बावजूद इन्हे मनमोहन सिंह की भांति गृह मंत्रालय का पदभार दिया गया था। ऐसा प्रथम बार हो रहा था, जब न तो देश का प्रधानमंत्री, और न ही भारत का गृह मंत्री जनता द्वारा चुना गया था।

इन्हे भारत के ‘नीरो’ की उपाधि यूं ही नहीं  दी गई। जैसे रोम के जलने पर ‘नीरो’ झुनझुना बजाता था, वैसे ही शिवराज पाटिल अपने कार्यशैली से अधिक अपने वस्त्रों पर ध्यान देने के लिए कुख्यात थे। इन्ही के नेतृत्व में देश पर एक के बाद एक आतंकी हमले हुए, और इन्ही के नेतृत्व में दिल्ली के बॉम्ब ब्लास्ट के पश्चात बाटला हाउस का एनकाउन्टर विवाद उपजा, जिसमें जब वामपंथियों ने दिल्ली पुलिस के चरित्र पर सवाल उठाया, तो इन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

लेकिन हद तो तब हो गई, जब आतंकियों ने 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमले को अंजाम दिया। शिवराज पाटिल को हमले पर कम, और पार्टी पे अधिक ध्यान था, जिसके कारण एनएसजी को भी सही समय पर मुंबई जाने की आज्ञा नहीं मिल पाई, और स्थिति और जटिल हो गई। फलस्वरूप शिवराज पाटिल को इस्तीफा देने पर बाध्य होना पड़ा।

1) पलानीअप्पन चिदंबरम –

कभी सोचा है जवाहरलाल नेहरू, मोहनदास करमचंद गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना और पलानीअप्पन चिदंबरम में क्या समानता है? ये चारों प्रख्यात अधिवक्ता हैं, लेकिन इन चारों के कारण भारत की छवि बहुत कलंकित हुई, और इन्होंने इस देश की अस्मिता को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि जवाहर लाल नेहरू के बाद इस देश पर सबसे बड़ा कोई कलंक है, यदि किसी व्यक्ति को देखकर मन में सम्मान नहीं, बल्कि अपशब्द ही अपशब्द निकले, तो वह है गृह मंत्री पलानीअप्पन चिदंबरम, इस देश के सबसे निकृष्ट गृहमंत्री।

बाजीराव मस्तानी में एक बड़ा ही कचोटता संवाद है, “पराये से क्या शिकायत करना, घाव तो अपनों के ज्यादा चुभते हैं!”
जो घाव पी चिदंबरम ने इस देश को दिया, उसके लिए कोई भी शब्द, किसी भी प्रकार की निंदा अपर्याप्त होगी। कट्टरपंथी मुसलमानों को देश के आक्रोश से बचाने के लिए ‘हिन्दू आतंकवाद’ के झूठ को रचने वाले यही थे। जिस प्रकार से इन्होंने कुछ आतंकियों की रक्षा करने के लिए एक पूरी संस्कृति को कलंकित करने का प्रयास किया, उसका कोई हिसाब नहीं है।

जिस लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने समझौता ब्लास्टस के पीछे का सच उजागर करने का प्रयास किया, उसे ‘हिन्दू आतंकवाद’ का प्रतीक बनाकर वर्षों तक जेल में सड़ाया, उसे भीषण यातनाएँ दी, उसके परिवार के जीवन को नारकीय बना दिया। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ जो हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना लगभग असंभव होगा। हम कभी मुहम्मद घोरी से पराजित नहीं हुए, हम तो अपनों के विश्वासघात और उनके असहयोग के समक्ष घुटने टेकने को विवश हो गए। लेकिन आज यही पी चिदंबरम अपने आप को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कोर्ट के चक्कर काटने को विवश है। 2019 में जिस प्रकार से ये पकड़े गए थे, वो इनके कर्मों का ही हिसाब था।

ये तो मात्र प्रारंभ है, परंतु देश में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपने अपने स्तर पर इस देश को काफी कलंकित किया है। पी चिदंबरम तो इसका अंश मात्र है, ऐसे न जाने कितने विश्वासघाती, जिनको आपके समक्ष लाना हमारा परम धर्म है, अन्यथा हमारे देश की प्रगति असंभव है!

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