NPA का कचरा साफ करने के बाद पीएम मोदी का बैंकरों को संदेश, “बेझिझक ऋण दें”

बैंक ऋण दें, वसूली सरकार देख लेगी!

PM Modi

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बैंक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, बिना बैंकों के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था प्रगति नहीं कर सकती। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में मेहुल चौकसी, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगोड़ों पर शिकंजे कस कर बैंकों का भरोसा जीतने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते गुरुवार को एक कार्यक्रम में बैंकरों से छोटे व्यवसायों को ऋण देने में अधिक सक्रिय होने का आह्वान किया। विकास के अगले चरण में छलांग लगाने के लिए बैंको को अपने उधारकर्ताओं के संचालन, व्यवहार्यता और पैमाने में सुधार करना होगा। मोदी ने बैंकों से इन सभी पैमानों में मदद करने के लिए भी कहा।

पिछले छह-सात वर्षों में मोदी सरकार ने देश के बैंकिंग प्रणालियों में सुधार कर बैंकों की चुनौतियों को हल किया है। मोदी सरकार के सुधारों के बदौलत देश की बैंकिंग प्रणाली अब पांच साल के सबसे न्यूनतम एनपीए (खराब ऋण) के साथ बहुत मजबूत हुई है। उन्होंने कहा कि साल 2014 से पहले ऋण के रूप में दिए गए लाखों करोड़ रुपये में से 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की गई है।

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‘सहज ऋण प्रवाह और आर्थिक विकास के लिए तालमेल’ पर आयोजित एक परिचर्चा पर बैंकरों और उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “सरकार ने जिस पारदर्शी और प्रतिबद्ध तरीके से काम किया है, वह बैंकों द्वारा वापस प्राप्त धन में भी परिलक्षित होता है। हमारे देश में जब कोई बैंक से कर्ज लेकर भाग जाता है, तो उसकी काफी चर्चा होती है। लेकिन जब एक मजबूत सरकार इसे वापस ले लेती है, तो कोई भी इस पर चर्चा नहीं करता है।”

इसके साथ-साथ पीएम मोदी ने कहा कि फरार लोन डिफॉल्टरों को देश में वापस लाने के प्रयास अभी भी जारी हैं। नीतियों, कानूनों के साथ-साथ राजनयिक चैनलों को एक बहुत ही स्पष्ट संदेश देने के लिए तैनात किया गया है कि “यही एकमात्र तरीका है, वापस आओ।”

उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा, “2014 से पहले कुछ लोगों ने यह सोचना शुरू कर दिया था कि बैंक उनके हैं। यह सोचने का एक तरीका बन गया था कि बैंक हमारे अपने हैं, जो कुछ बैंकों के अंदर है वह भी हमारा है। बैंक में रहे या मेरे पास, क्या फर्क पड़ता है। जो चाहा, मांगा गया और जो मांगा, दिया गया। उस समय यह नहीं पता था कि 2014 में देश एक अलग फैसले पर पहुंचेगा।”

बैंक सुधारएक बड़ा मील का पत्थर

पीएम मोदी ने कहा, “आज बैंकों की ताकत इतनी बढ़ गई है कि वे देश की अर्थव्यवस्था को सक्रिय करने के लिए तैयार हैं और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। मैं इस चरण को भारत के बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक बड़ा मील का पत्थर मानता हूं। लेकिन आपने देखा होगा कि मील का पत्थर हमारी भविष्य की यात्रा का भी एक संकेतक है। मैं इसे भारतीय बैंकों के नए भविष्य के लिए एक शुरुआती बिंदु के रूप में भी देखता हूं।”

बैंकरों के लिए संपदा और रोजगार उत्सर्जित करने वाले व्यवसायियों का समर्थन करने का यह सही समय है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बैंकों को अपनी बैलेंस शीट को बड़ा करते हुए देश की बैलेंस शीट को बढ़ाने पर काम करना चाहिए। पीएम ने प्रत्येक बैंक शाखा से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि उनके पास 15 अगस्त, 2022 तक कम से कम 100 ग्राहक डिजिटल रूप से 100% लेनदेन कर रहे हों और वो अपने डोमेन में 10 युवाओं या छोटे व्यवसायों की मदद करने जैसे लक्ष्य पूर्ण करें।

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बैंकों को प्रधानमंत्री ने दिलाया भरोसा

आज हमारे बैंकों को बड़ा सोचने और नवीन दृष्टिकोणों का उपयोग करने की आवश्यकता है। सार्वजनिक हो या फिर निजी क्षेत्र का बैंक हम जितना अधिक नागरिकों में निवेश करेंगे, देश के लोगों के लिए उतना ही अच्छा होगा। हमने ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने कि राह में जो ऐतिहासिक सुधार किए हैं, उन्होंने देश के लिए नए अवसर खोले हैं। हमारी आकांक्षाओं को पूरा करने और निवेश करने के लिए अब इससे बेहतर समय कुछ नहीं हो सकता है। परन्तु, अब बैंकों को सिर्फ भगोड़ों और कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलताओं से सबसे बड़ा डर है।

उधार देने के बाद की जांच और गिरफ्तारी के बारे में बैंकरों के डर को दूर करने के लिए उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय हित में, अच्छे विश्वास में किया गया कोई भी ईमानदार काम- मेरे शब्दों को लिख कर रखें और इस वीडियो क्लिप को अपने पास सहेज लें- मैं आपके साथ हूं। गलतियां भी होती हैं, लेकिन अगर ऐसी कोई कठिनाई आती है, तो मैं यहां एक दीवार बनने और आपकी रक्षा करने के लिए खड़ा हूँ। लेकिन देश को आगे ले जाने के लिए हमें कुछ करना होगा। इतनी मजबूत नींव और आसमान छूने के इतने बड़े अवसर के साथ, अगर हम सोचने में अपना समय बर्बाद करते हैं, तो मुझे विश्वास है कि आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।”

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इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं

आज जब भारतीय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बहुत अधिक निवेश हो रहा है, तब समय आ गया है कि बैंकों को इन फर्मों को सभी क्षेत्रों में मदद करनी चाहिए। अगर हमारी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां पिछली सदी की परियोजनाओं पर पिछली सदी की प्राद्यौगिकी और तकनीक के साथ काम करती हैं, तो क्या वे 21वीं सदी के लिए हमारी आकांक्षाओं को पूरा कर सकती हैं? आज अगर उन्हें बड़े पैमाने पर काम करना है, बुलेट ट्रेन और एक्सप्रेस-वे बनाना है तो उसके लिए उन्हें बड़े उपकरण और पूंजी की जरूरत है और इसके लिए बैंकों को आगे आना होगा। बैंक क्यों नहीं चाहते कि हमारे देश की बुनियादी ढांचा कंपनियों में से एक दुनिया की शीर्ष पांच कंपनियों में शामिल हो? अपने स्कूल के दिनों की एक घटना को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि बैंक राष्ट्रीयकरण से पहले जागरूकता पैदा करने के लिए बहुत सारे आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करते थे, लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद यह रवैया बदल गया।

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