COVAXIN को हराना चाहते थे लिबरल और पश्चिमी मीडिया, लेकिन COVAXIN जीत गई

कोवैक्सीन ने दुष्प्रचार अभियानों को पार कर वैश्विक स्तर पर मनवाया अपना लोहा!

कोवैक्सीन दुष्प्रचार

पश्चिमी देशों की बड़ी फार्मा कंपनियों ने अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए लगातार प्रयास किया कि भारतीय वैक्सीन को वैश्विक स्तर पर मान्यता नहीं मिल सके। इसके लिए पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाया गया, फिर कई बड़ी पत्रिकाओं, जो मेडिकल क्षेत्र से संबंधित हैं, में भारतीय वैक्सीन के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान शुरू किया गया। लेकिन भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन इन सभी परिक्षाओं और दुष्प्रचार अभियानों को पार करके आज वैश्विक स्तर पर अपनी कार्यक्षमता को स्वीकार करवा रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्मित भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन को आपातकालीन प्रयोग की अनुमति देने के बाद मेडिकल जर्नल लैंसेन्ट ने भी अपनी रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की है कि कोवैक्सीन सिम्पटमैटिक कोरोना के विरुद्ध 77.8% प्रभावी है। लैंसेन्ट ने तृतीय चरण के ट्रायल की जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसने यह भी बताया गया है कि भारत बॉयोटेक की वैक्सीन कोरोना के सभी वैरीअंट के खिलाफ 70.8% प्रभावी थी प्रतिरोधक क्षमता का प्रदर्शन कर रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कोवैक्सीन सिम्पटमैटिक कोरोना के विरुद्ध 93.4%, ए-सिम्पटमैटिक कोरोना के विरुद्ध 63.4% और डेल्टा वैरिएंट के विरुद्ध 65.2% की प्रतिरोधक क्षमता प्रदर्शित कर रही है।

भारत बॉयोटेक के CMD डॉ० कृष्णा एला ने कहा कि “लैंसेन्ट, जो वैश्विक मेडिकल क्षेत्र में बड़ा नाम है, में कोवैक्सीन के तृतीय चरण के ट्रायल का हुआ पीर रिव्यू डेटा के मामले में हमारी पारदर्शिता और विश्व के बड़े मेडिकल जर्नल के पीर रिव्यू में अपने स्तर को बनाए रखने की हमारी प्रतिबद्धता पर मुहर है। यह उपलब्धि मेरी टीम के सहयोगियों, हमारे साझेदारों, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल रिसर्च, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी और ट्रायल में हमपर विश्वास बनाए रखने वाले सहभागियों के दृढ़निष्ठा को प्रतिबिंबित करती है, जिनके कारण यह सम्भव हुआ है।”

रिपोर्ट में बताया गया है कि कोवैक्सीन सिम्पटमैटिक कोरोना के विरुद्ध 93.4%, ए-सिम्पटमैटिक कोरोना के विरुद्ध 63.4% और डेल्टा वैरिएंट के विरुद्ध 65.2% की प्रतिरोधक क्षमता प्रदर्शित कर रही है।

लेकिन कोवैक्सीन के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान में केवल पश्चिमी देशों की बड़ी फार्मा कंपनियां ही नहीं भारत में कार्यरत वामपंथी मीडिया समूह और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने भी कई प्रकार के भ्रम फैलाए। इस कारण भी वैश्विक मीडिया और मेडिकल सेक्टर के बड़े नाम भारतीय वैक्सीन के नाम पर असमंजस की स्थिति में रहे। इस संदर्भ में कृष्णा इला ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की थी और बताया था कि मीडिया के दुष्प्रचार के कारण भारत बॉयोटेक को अपनी कोवैक्सीन को वैश्विक स्वीकृति दिलाने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ी।

टाइम्स ऑफ इंडिया की सीनियर एडिटर भारती जैन ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा था, “Covaxin के लिए WHO की स्वीकृति में देरी पर भारत बॉयोटेक के कृष्णा ईला ने बताया कि मीडिया के नकारात्मक प्रचार ने WHO को एक अजीब स्थिति में डाल दिया।…” NDTV के पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने भी इसी प्रकार कोवैक्सीन को लेकर भ्रम फैलाया था और कोविड वर्किंग ग्रुप के चीफ डॉ. एन के अरोड़ा के बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया था। श्रीनिवासन ने अफवाह फैला दी थी कि कोवैक्सीन का पहला बैच प्रभावी नहीं था।

बाद में श्रीनिवासन को क्षमा मांगनी पड़ी लेकिन तब तक वैक्सीन की विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ चुका था। भारत बॉयोटेक तो फिर भी सरकारी संस्था है, जैसा दुष्प्रचार अभियान कोविशिल्ड और सीरम इंस्टिट्यूट के विरुद्ध चलाया गया वह तो अलग स्तर पर था। यहाँ तक कि सरकार को सीरम इंस्टिट्यूट के मालिक अदार पूनावाला को सुरक्षा तक मुहैया करवानी पड़ गई थी। लेकिन भारत में बैठे शकुनि मानसिकता के लोगों के लाख प्रयास के बाद भी दोनों वैक्सीन ने दुनिया में अपनी क्षमता सिद्ध की है।

भारत बॉयोटेक की उपलब्धि तेजी से विस्तृत हो रहे और नई ऊंचाइयों को छू रहे भारतीय मेडिकल सेक्टर के लिए एक नया कीर्तिमान है। कोवैक्सीन की सफलता के कारण ही आज लैंसेन्ट जैसी पत्रिकाओं में भी इसकी तारीफ हो रही है जबकि शुरुआत में यही मेडिकल जर्नल कोवैक्सीन को लेकर तमाम शंकाएं व्यक्त करती थी। कोवैक्सीन को हाल ही में ब्रिटेन और अमेरिका ने भी मान्यता दी है। कोवैक्सीन फाइजर, जॉनसन एंड जॉनसन जैसी अन्य वैक्सीन की तुलना में सस्ती भी है, ऐसे में अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिका सहित पूरे एशिया और पूर्वी यूरोपीय देशों को कोवैक्सीन के रूप में एक बेहतर विकल्प मिल सकता है।​

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