‘दिवाली एक हिन्दू नहीं बौद्ध पर्व है!’ द प्रिंट ने दिवाली के अस्तित्व पर ही उठा दिए सवाल!

हमने मात्र संकेत दिए और अभियान आरंभ भी हो गया!

दीप दान उत्सव

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दीप दान उत्सव – कैंसिल कल्चर एक अंग्रेजी शब्द है। इस शब्द का मतलब होता है, हर चीज को नकारने की संस्कृति! आपने तमाम मौके पर इसे नोटिस किया होगा, हर जगह पर यह तर्क दिया जाता है कि ऐसा तो हो ही नहीं सकता है, यह नामुमकिन है! यह सब नकारने की संस्कृति का ही हिस्सा हैं। वामपंथियों द्वारा इस तरीके को सबसे ज्यादा अपनाया जाता है। अब जब इंडिक यानी भारतीय सलीके के सत्य और तथ्य सबके सामने आ रहे हैं, तब यह संस्कृति का इस्तेमाल भारतीय वामपंथियों द्वारा तेजी से किया जा रहा है।

हाल ही में हिंदुओं का बड़ा त्योहार दिवाली खत्म हुआ है। लोगों ने हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मनाया है और निरंतर बढ़ती भारतीय संस्कृति के गर्व को मजबूत बनाया है। बाजार में इसकी तेजी देखने को मिली है, लोगों की सहभागिता भी इस बार अच्छी खासी थी, क्योंकि पिछले वर्ष लॉकडाउन के चलते ये पर्व उतने जुनून और सुकून से नहीं मनाया जा सका था। अब वामपंथी तो ठहरे वामपंथी, वो कहां मानने वाले थे, उन्होंने अपनी कुंठा को इस बार भी व्यक्त किया है!

द प्रिंट नामक समूह ने दिवाली को हिंदुओ का त्योहार ना बताते हुए इसे बौद्ध धर्म से संबंधित बता दिया है। TFI की ओर से काफी पहले से ही इनके एजेंडा और प्रोपेगेंडा को लेकर बातें बताई जाती रही है कि कैसे वामपंथियों द्वारा हिंदुओ को उनके त्योहारों से अलग करने की कोशिश की जाती है। अब उसी का प्रमाण भी देखने को मिल रहा है।

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द प्रिंट की घटिया मानसिकता!

यह लेख जेएनयू की शोध छात्रा कल्याणी ने लिखा है, जो कि @fiercelyBahujan के नाम से ट्विटर पर एक्टिव हैं। उनके अनुसार, “दीप दान उत्सव हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन नव-बौद्धों द्वारा मनाया जाता है। यह पूरे भारत में ‘दिवाली’ या ‘रोशनी का त्योहार’ के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इसका इतिहास विवादित है, जो मिथक और विनियोग के बीच फंसा हुआ है। रोशनी के त्योहार के आसपास की प्रथाएं अखिल भारतीय लग सकती हैं, लेकिन कई ऐतिहासिक बिंदु हैं, जहां से दिवाली मूलनिवासियों का त्योहार प्रतीत होता है।“

उन्होंने आगे लिखा, “नव-बौद्धों का दावा है कि इस दिन राजा अशोक द्वारा 84,000 स्तूपों को पूरा किया गया था। हिंदू मिथक के अनुसार, यह दिन भगवान राम की जीत और उनके अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह त्योहार खरीफ सीजन के पूरा होने के प्रतीक कृषि समाज से भी जुड़ा हुआ है। वैश्वीकरण के उदय और त्योहारों के बाजारीकरण ने त्योहारों को पूरी तरह से नए अर्थ दे दिए हैं।“

इतिहास को कुत्सित करने का प्रयास

इस कुतर्को की श्रृंखला में आगे एक और चीज बताई गई है कि दीप दान उत्सव नव-दलित बौद्धों द्वारा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने के राजा अशोक के प्रयास की स्वीकृति है। बौद्ध इतिहास कहता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, उनके अवशेष आठ राज्यों में वितरित किए गए, जिसमें मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, अल्लकप्पा के बुली, रामग्राम के कोलिया, वेद के ब्राह्मण, पावा के मल्लाह और कुशीनगर शामिल है।

लेख के अनुसार, राहुल सांकृत्यायन बौद्ध चैत्यों, विहारों और स्तूपों के 84,000 स्थलों के निर्माण की चर्चा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि निर्माण पूरा होने के बाद, सम्राट अशोक ने इस दिन कार्तिक अमावस्या को दीप दान उत्सव के रूप में मनाया। यह दीपों की रोशनी और बौद्ध भिक्षुओं को दाना या अनाज देने के रूप में मनाया गया था।

इस कुतर्की प्रकाशित लेख के अनुसार, “दीप दान उत्सव, जो अब दिवाली के रूप में लोकप्रिय है, वास्तव में मूलनिवासियों का त्योहार था, जो बौद्ध थे। उनका कहना है कि ब्राह्मणवादी ताकतों ने त्योहार को विनियोजित किया, जिससे बौद्ध विचारधारा कम हो गई। उदाहरण के लिए 64,000 बौद्ध उपदेशों को 64,000 योनियों में बदल दिया गया था, जो कि दीप दान उत्सव का ब्राह्मणीकरण करने के कई तरीकों में से एक था।”

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सोशल मीडिया यूजर ने लगा दी क्लास

अब इस कुतर्क का जवाब तो देना था। जब हम सब पटाखे बजा रहे थे, तब ट्विटर पर भारतीय सभ्यता के पक्षधर @BharadwajSpeaks ने इस लेख की धज्जियां उड़ाते हुए जवाब दिया है और दिवाली के दिन उन्होंने वामपंथियों की जमकर बैंड बजाई है। उन्होंने इस कुतर्क पर तर्क दिया और ट्वीट करते हुए कहा, इस मूर्खतापूर्ण लेख में दावा किया गया है कि अशोक ने 64,000 शहरों में स्तूप बनवाए थे। शहरीकृत भारत में आज भी हमारे पास लगभग 4,000 शहर हैं। अशोक के समय में 64,000 नगरों का निर्माण कैसे हुआ? यह हास्यास्पद रूप से नकली और कपटपूर्ण है।”

https://twitter.com/BharadwajSpeaks/status/1456286584823697411?t=dHBFLyUQD68gg01z6O3Beg&s=19

उन्होंने आगे तर्क देते हुए कहा, अशोक के अनेक अभिलेख हैं। उसमें संस्कृत और पाली बौद्ध स्रोत हैं, जो हमें अशोक के जीवन के बारे में बताते हैं। इन लेखों में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि अशोक ने एक विशेष बौद्ध उत्सव का उद्घाटन किया, जिसे “दीप दान उत्सव” के रूप में जाना जाता है। इस नकली त्योहार का निर्माण 20वीं सदी में किया गया था।”

https://twitter.com/BharadwajSpeaks/status/1456287490814349322?t=VFRv-8AbOXGyGPR280-qIg&s=19

प्रिंट समूह और लेखक को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा, यह लेखक झूठा आरोप लगाने जैसे सर्वथा कपटपूर्ण व्यवहारों में लिप्त है। लेखक का दावा है कि बौद्ध विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने “दीप दान उत्सव” के बारे में बात की थी। मैं इसे उद्धृत करने के लिए लेखक को चुनौती देता हूं। यह झूठा आरोपण है। सांकृत्यायन कहीं भी इस नकली त्योहार के बारे में बात नहीं करते है।”

https://twitter.com/BharadwajSpeaks/status/1456290312024854532?t=c914Pb_LJfFme-VilAcXwQ&s=19

हालांकि, अभी तक द प्रिंट और उसकी लेखक की ओर से इस तर्क का उत्तर सामने नहीं आया है और आएगा भी नहीं, क्योंकि भारद्वाज ने विश्लेषण के साथ-साथ तार्किक आधार पर उनके प्रोपगेंडा को ध्वस्त किया है। आज के हिन्दू जागृत हैं! वह नैरेटिव का अर्थ समझते हैं और तार्किक आधार पर ध्वस्त करना भी जानते हैं। द प्रिंट समूह की एक और कोशिश विफल रही है और इस बार तो उन्हें थू-थू भी झेलनी पड़ी है। उम्मीद है कि अगले दिवाली पर वह भी त्योहार मनाएंगे, कुतर्को से होली खेलने का प्रयास करेंगे, वैसे भी भारत का मंच उनके लिए धीरे-धीरे उल्टा ही साबित हो रहा है!

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