गिरिए! गिरना स्वाभाविक है। परन्तु, इतना मत गिरिए कि रसातल में पहुंच जाए। ज़मीन पर गिरा इंसान उठ सकता है, जबकि ज़मीन में पड़ा इंसान सिर्फ मुर्दा होता है। राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत हमने कई नेताओं की नैतिकता को गिरते हुए देखा, परंतु नैतिकता के मृत होने का प्रथम उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में देखने को मिला है!
सीमा सुरक्षाबल के क्षेत्राधिकार में वृद्धि
दरअसल, भारत के सीमाओं की सुरक्षा हेतु केंद्र सरकार ने सीमा सुरक्षा बल ( BSF) के गिरफ्तारी, खोज और जब्ती के अधिकार को बढ़ाकर 50 किलोमीटर अंदर तक कर दिया, जो पहले मात्र 15 km था। परंतु, ममता की मृत नैतिकता ने उन्हें इस कानून का विरोध करने पर मजबूर कर दिया! खबर है कि तृणमूल सरकार 17 नवंबर को इस कानून के खिलाफ विरोध में प्रस्ताव पारित करने जा रही है। एक ओर जहां केंद्र सरकार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अवैध घुसपैठ पर लगाम लगाने की कोशिश रही है, तो दूसरी ओर ममता बनर्जी इसे बढ़वा देने में व्यस्त है। केंद्र सरकार इसके रोकथाम के लिए कानून बना रही, तो दूसरी ओर ममता विरोध प्रस्ताव पारित कर रही है। उनके लिए शायद ऐसा हो गया है कि जैसे विदेशी रोहिंग्या उनके अपने हों और मोदी सरकार विदेशी!
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ममता का मान मनौवल्ल
यहां तक कि मोदी सरकार ने ममता को मनाने के लिए गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव अजय कुमार भल्ला को कोलकाता भेजा, परंतु इसे संघवाद पर हमला बताया गया और उन्हें लौटा दिया गया। अब उन्हें कौन समझाए कि संविधान के अनुच्छेद-1 के अनुसार भारत ही संघ है और भारत से ही बंगाल। उल्टा बंगाल के तृणमूल सरकार द्वारा भारत के कानून और उसके संयुक्त सचिव का अपमान साक्षात संविधान पर हमला है। हालांकि, भाजपा के विधायकों ने इसका विरोध करने का निर्णय लिया है।
आखिर क्यों विरोध कर रही हैं ममता?
ममता के विरोध के पीछे दो मुख्य कारण हो सकते हैं। प्रथम, मुस्लिम तुष्टिकरण और दूसरा गायों कि तस्करी। कथित तौर पर ममता की जीत के मुख्य कारण मुसलमान रहे हैं। बंगाल में मुसलमानों की संख्या जितनी ज्यादा बढ़ेगी, उनको उतना ही राजनीतिक लाभ मिलेगा, इसीलिए वो रोहिंग्याओं के अवैध घुसपैठ और बढ़वा देना चाहती है! ममता बनर्जी मुस्लिम मत पाने के लिए राष्ट्रहित की तिलांजलि देने को भी तैयार है।
दूसरा, भारत बांग्लादेश सीमा गायों की तस्करी के लिए कुख्यात है, इसे तृणमूल सरकार का समर्थन प्राप्त है! हिंसक समस्याओं से निबटने के लिए 631 किलोमीटर लंबी सीमा पर तारबंदी आवश्यक थी, लेकिन ममता ने ज़मीन देने से मना कर दिया। और अब, जब मोदी सरकार ने सीमा सुरक्षा बल को अधिकार देकर घुसपैठ और तस्करी पर लगाम लगाने की कोशिश की तो ममता बिलबिलाने लगी हैं! ममता को लगता है कि मोदी सरकार के इस मास्टरस्ट्रोक से मुस्लिम मत और तस्करी के दौलत दोनों चले जाएंगे। यह कानून शुक्रवार को फिर सुर्खियों में आया, जब कूचबिहार में सीमा पर बीएसएफ के जवानों ने दो बांग्लादेशी घुसपैठियों को गोली मार दी, जब दोनों ने कथित तौर पर भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश की थी।
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निष्कर्ष
गौरतलब है कि ममता बनर्जी को इसी बात का भय है, क्योंकि सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार में वृद्धि घर में बैठे घुसपैठियों और गद्दारों के लिए कालस्वरूप है। परन्तु, ममता द्वारा इसके विरोध ने “चोर के दाढ़ी में तिनका” वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है। मुस्लिम तुष्टिकरण की उनकी इस राजनीति ने बंगाल में रोहिंग्या संकट को बढ़ा दिया है। वो रोहिंग्या को सत्ता की सीधी रेखा के रूप में देख रही हैं, न कि राष्ट्र संकट के रूप में। इन सभी चीजों से स्पष्ट होता है कि ममता को न तो संघ से मतलब है और न ही संघवाद से, उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी प्यारी है!