योगी आदित्यनाथ ने कैराना को एक और कश्मीर बनने से बचा लिया

इतने वर्षों में कैराना लगभग बन ही गया था कश्मीर, लेकिन अब वहां हिंदू वापस लौट रहे हैं!

कैराना

यह नया भारत है। यहां कानून को ताख पर रखने वाली आदत को बदलना होगा वरना लठ भी बरस सकते हैं। अब भीड़ के दम पर कुछ भी करना सम्भव नहीं है। पहले तुष्टिकरण को संज्ञान में लेकर ऐसी गतिविधियों को अनदेखा किया जाता था, लेकिन अब भारत में भीड़ के दम पर पुलिस के काम को प्रभावित करना मुश्किल है। उत्तरप्रदेश में कल कैराना में पुनः स्थापित हुए हिंदुओ से मिलकर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस्लामिक कट्टरपंथियों को पर्याप्त डोज दे दी है और सम्भवतः उनको भी यह बात समझ आ गई होगी कि अब आततायी व्यवहार उत्तरप्रदेश में नहीं चलने वाला है।

कैराना संकट-

कैराना और कांधला प्रवास, ( जिसे कैराना हिंदू पलायन के रूप में भी जाना जाता है) वर्ष 2014-16 की अवधि के दौरान उत्तर प्रदेश में कैराना और कांधला से हिंदू परिवारों के बड़े पैमाने पर प्रवास को संदर्भित करता है।

मीडिया सूत्रों ने कहा है कि यह पलायन “मुकीम काला” की जबरन वसूली की धमकी के कारण हुआ था, जिसे “गैंगस्टर” के रूप में वर्णित किया गया था। NHRC की रिपोर्ट और कई चश्मदीदों के सहारे यह भी कहा गया है कि कैराना शहर में मुसलमान (जो इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं) हिंदू महिलाओं के खिलाफ भद्दे / ताने मारते थे और इस वजह से हिन्दू अक्सर बाहर जाने से बचते थे।

आपको बताते चलें कि कैराना से पलायन को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था और उस समय भारतीय जनता पार्टी के राजनेता हुकुम सिंह ने 346 हिंदू परिवारों की सूची जारी की थी, जो कैराना से पलायन कर गए थे। 14 जून को उन्होंने एक और सूची जारी की, जिसमें इस बार कांधला के प्रवासी परिवारों के नाम शामिल किया था। इन दोनों सूची और उसके बाद की प्रतिक्रिया को व्यापक मीडिया कवरेज मिला और 2017 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इस मुद्दे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

2013 के मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के बाद बीजेपी ने हिंदू पलायन के मुद्दे को तेज कर दिया था। उस समय कैराना में लोगों को पलायन करने के लिए विवश होना पड़ा था। लोग घरों के बाहर, “बिकने के लिए तैयार घर” लिखकर कैराना छोड़ रहे थे, जबकि रामपुर से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद आजम खान और उनकी सरकार बस कार्रवाई का आश्वासन देकर तुष्टिकरण करने में व्यस्त थी।

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अब इतने वर्षों बाद वहां से विस्थापित हुए हिंदुओ को दुबारा बसाया जा रहा है। वो सारे हिन्दू जो भागने के लिए मजबूर किये गए थे और तुष्टिकरण करने वाली समाजवादी पार्टी से जिन्हें मदद नहीं मिली थी, उन्हें योगी सरकार की प्रशासनिक सेवा से वापस स्थापित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कैराना में कहा कि उत्तर प्रदेश में तालिबानी मानसिकता वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों और कैराना के “पलायन” का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “जिन अपराधियों ने कैराना के व्यापारियों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर किया था, वे खुद अब पलायन प्रक्रिया का पालन करने के लिए मजबूर हैं।”

आदित्यनाथ ने कहा, “मैंने जिला प्रशासन से उन परिवारों के बारे में रिपोर्ट मांगी है जो पिछली समाजवादी पार्टी के शासन में यहां मारे गए और उनके सदस्यों को नुकसान पहुंचाया गया था।” उन्होंने कहा कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि सरकार पीड़ित परिवारों को मुआवजा देगी ताकि वे अपने व्यवसाय और आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित कर सकें।

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एक वाक्या दिल को छू लेने वाला हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कैराना में उन हिंदू परिवारों से मुलाकात की है, जिन्होंने साल 2016 में विशेष समुदाय के डर से पलायन कर लिया था। अब ये परिवार वापस कैराना लौट आए हैं। मुख्यमंत्री योगी ने पीड़ित परिवार से बातचीत की। इस दौरान बगल में बैठी एक बच्ची से पूछा, ‘अब तो कोई डर नहीं है ना?’ इसपर बच्ची ‘ना’ कहती है।

आप सोच कर देखिए कि कट्टरपंथियों की हिम्मत अगर इतनी ज्यादा बढ़ जाये कि संविधान के संरक्षण में ही हिंदू पलायन करने को मजबूर हो जाए तो स्थिति क्या होगी! वो तो धन्य भाग्य कि योगी सरकार ने तुष्टिकरण को किनारे किया और हिंदुओं को न्याय मिला।

कश्मीर पलायन के बाद यह पलायन भारत के लिए शर्मसार करने वाला मामला था। अभी भी देश के कई हिस्सों में सरकार कट्टरपंथियों के दबाव में रहती है। हिंदुओ की न्याय के लिए उम्मीद वोट बैंक के नीचे खत्म हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे नेताओं के लिए उदहारण हैं। उन्हें सीखना चाहिए कि अन्याय को कैसे दूर किया जाता है और सत्य के समाज की नीवं कैसे रखी जाती है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को शामली और रामपुर में कैराना के दौरे के साथ विधानसभा चुनाव अंतर्गत पश्चिम यूपी क्षेत्र में अपने भगवा शुभंकर को सामने रखने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रणनीति को मजबूत किया है। यह कदम भले ही अभी राजनीतिक लग रहा हो पर यह एक लंबे समय केराजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रमाण है, जिसे सबको समझना चाहिए।

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