भारतीय रेलवे को करोड़ों बहाने पड़े गुटखा के दाग मिटाने और बेटिकट यात्रियों को पकड़ने पर!

लानत है हम सब पर!

रेलवे बिना टिकट यात्रा

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खूब ज्ञान दीजिये और पानी पी-पीकर मोदी सरकार को कोसिए, कारण यह कि पीएम ने तो आपको बुलेट ट्रेन पर नहीं बैठाया! खैर, मोदी सरकार तो बुलेट ट्रेन का सपना साकार करने में जी जान से जुटी हुई है। परंतु, आप उस बच्चे की तरह है जो गोद में आने की जिद तो करता है, पर गोद में बैठते ही हरकतें शुरु कर देते हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि आप उस बच्चे की तरह अबोध नहीं है! अगर ऐसा है तो ज़रा सोचिए, क्या आप बुलेट ट्रेन में बैठने लायक है? क्षमा करिएगा वाक्य थोड़ा कर्कश है, पर स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि आपके अंतरात्मा को झकझोरना जरुरी है! सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना नि:संदेह पत्रकारिता का विषय है परंतु, एक नागरिक को अपने उत्तरदायित्व का आत्मबोध कराना पत्रकारिता का सबसे पुनीत कार्य।

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बिना टिकट यात्रा

दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क को साल 2017-18 में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की उम्मीद थी। लेकिन एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि भारतीय रेलवे को पिछले चार वर्षों के दौरान बिना टिकट यात्रा के कारण लगभग 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। वो तो भला हो कोरोना का, जिसने इस घाटे में बढ़ोत्तरी नहीं होने दी।

प्रशासन भी थोड़ी बहुत प्रशंसा का पात्र है, क्योंकि मध्य प्रदेश के चन्द्रशेखर गौर के हालिया आरटीआई जवाब में रेलवे बोर्ड ने कहा है कि महामारी के दौरान भी इस साल 27 लाख लोगों ने बिना टिकट यात्रा की है, जिनसे करीब 145 करोड़ रुपये दंड वसूले गए हैं। परंतु, पिछले चार वर्षों में लगभग 45 मिलियन लोग या यूं कहें कि अर्जेंटीना की आबादी से अधिक भारतीय नागरिक बिना टिकट या अनुचित टिकट के साथ यात्रा करते हुए पकड़े गए, जिनसे 1,915 करोड़ रुपये दंड वसूले गए। आप तो इस बात से भलि-भांति परिचित होंगे कि इससे भी ज्यादा लोग बिना पकड़ में आए ही यात्रा कर लेते हैं और पकड़े जााने पर टीटी को रिश्वत देकर छूट जाते हैं। लेकिन इन सब के बीच नुकसान होता है तो सिर्फ और सिर्फ रेलवे का।

इस महान कार्य में उत्तर रेलवे अर्थात बिहार और यूपी चार्ट में सबसे ऊपर रहें, इन राज्यों के 19 लाख महान यात्रियों ने बिना टिकट या अनुचित टिकट के साथ अपनी यात्रा पूर्ण की।

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गुटका थूकिए और मोदी सरकार को कोसिए!

विपक्षी पार्टियां और कुत्सित विचारधारा वाले लोग पीएम मोदी की तुलना तानाशाह से करते हैं, वो सही कहते हैं पीएम तो एकदम निरंकुश तानशाह हैं! उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा हमारे अधिकारों का दमन नहीं तो क्या है? अब हम अपने दोस्तों के साथ ट्रेन में बैठे और मुंह से पुचुक-पुचुक की करतल ध्वनि निकालते हुए गुटका ना थूक सकें, आखिर ये कैसा अन्याय है! ट्रेन में थूकना भी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिस तरह बिना टिकट यात्रा करते हुए मोदीजी को कोसना! वो अलग बात है कि रेलवे को हर साल 12 हज़ार करोड़ रुपये हमारी इस गंदगी को साफ करने में लगते है, पर हमे क्या?

जब उपभोग करने और सुविधा की बात आती है, तब रेलवे हमारे लिए देश की सार्वजनिक संपत्ति है और जब उत्तरदायित्व और कर्तव्य निर्वहन की बात होती है, इन मामलों से हम ऐसे मुंह मोड़ लोते हैं जैसे रेलवे हमारा नहीं पड़ोसी का है। यह हमारी विकृत मानसिकता नहीं, तो और क्या है? खैर, रेलवे प्रशासन आपके इस कारनामें से पूरी तरह से परिचित है, इसीलिए हर रेलवे स्टेशन पर पीकदान देने की सुविधा बना रही है। 5-10 रुपये में आपको पोर्टेबल पीकदान मिल जाएगा, लेकिन प्रश्न ये है कि बिना टिकट सफर करने वाली जनता 10 रुपये का पीकदान खरीदेगी?

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किन्तु, चिंता की कोई बात नहीं है! कुछ सालों में सत्ता में केजरीवाल आ जाएंगे और सब कुछ फ्री कर देंगे! पर, ये जान लीजिये कि ये सब आपके पैसे से ही आता है। खैर, मूर्खता का भी अपना ही आनंद है। जब जान जोखिम में थी, हम तब भी बाज नहीं आ रहे थे तो आम दिनों में तो हम क्या ही करते होंगे? हम बताते हैं, हम बिना “टिकट” यात्रा करते है और इसे गर्व समझते है, जैसे रेलवे सार्वजनिक संपत्ति न होकर हमारे घर की संपत्ति हो। फिर ट्रेन में आराम से बैठकर गुटका चबाते है और बैठे-बैठे ही थूक देते है। मुंह खाली हो जाता तो वापस मोदी सरकार को कोसना शुरू कर देते हैं कि आखिरकार उन्होंने बुलेट ट्रेन क्यों नहीं चलाई? साथ ही अपने निजी वाहनों की तरह ट्रेन को भी कहीं भी जंजीर खींच कर रोकने की सैंकड़ों खबरें हर साल सामने आती रहती हैं। हमारी इन हरकतों की वजह से रेलवे और राजस्व का जो नुकसान होता है, उसका अंदाज़ा हमें नही है क्योंकि गुटका थूकने के बाद मुंह के साथ-साथ दिमाग भी खाली हो चुका होता है!

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