‘जय भीम’ ने वन्नियार समुदाय को खलनायक में बदल दिया, जबकि असली अपराधी ‘एंथनी’ नामक व्यक्ति था

ब्राह्मण और हिंदी विरोधी फिल्म है 'जय भीम' !

जय भीम फिल्म

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फिल्मों के जरिए प्रोपेगेंडा पिछले कई दशक से लगातार चला आ रहा है। कुछ फिल्मों में ये अप्रत्यक्ष होता है और किसी में प्रत्यक्ष! यह प्रोपेगेंडा का दौर तब से चला आ रहा है जब जनता सुप्त अवस्था में थी और अब जब जनता जाग चुकी है एवं सोशल मीडिया पर देश का लगभग प्रत्येक व्यक्ति एक्टिव है, तब भी यह चल रहा है! हालांकि, अंतर यही है कि पहले लोगों को मतलब नहीं होता था, लेकिन अब जनता जागरुक हो चुकी है और ऐसी फिल्मों का विरोध भी होता है। हाल ही में एक फिल्म रिलीज हुई है ‘जय भीम’। नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि फिल्म कहीं न कहीं बहुसंख्यक विरोधी होगी। निर्देशक ने निराश भी नहीं किया और बिना किसी शब्दों के आवरण के ही जय भीम फिल्म में एक वर्ग को विलेन घोषित कर दिया गया है।

जय भीम फिल्म में ब्राह्मण और हिंदी से नफरत

अभिनेता सूर्या की नवीनतम फिल्म जय भीम, 2 नवंबर को ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में विभिन्न समुदायों के बीच दरार पैदा करने वाले कई दृश्य हैं। ऐसा लगता है कि तमिलनाडु में सत्तारूढ़ DMK को लुभाने के लिए यह फिल्म बनाई गयी है, क्योंकि इसमें वो सभी तत्व मौजूद हैं जो DMK को पसंद हैं, यानी ब्राह्मणों और हिंदी के खिलाफ नफरत! जय भीम फिल्म के एक दृश्य में प्रकाश राज, जो एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाता है, एक उत्तर-भारतीय को हिंदी में बोलने के लिए थप्पड़ मार देता है और उसे तमिल में बोलने के लिए कहता है।

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एक अन्य दृश्य में खलनायक को वन्नियार समुदाय से संबंधित दिखाया गया है। सब-इंस्पेक्टर जो फिल्म के खलनायकों में से एक है, उसे वन्नियार समुदाय का दिखाया गया और इरुलर समुदाय के दुश्मन के रूप में चित्रित किया गया है। एक अन्य दृश्य में, वन्नियार समुदाय की प्रतीक चिन्ह ‘आग’ की एक तस्वीर बैकग्राउंड में है, जिसमें पुलिस अधिकारी दिखाई देता है।

सच्चाई से परे है इस फिल्म की कहानी

हालांकि, सच्चाई इससे एकदम भिन्न है। वास्तव में जिस सब-इंस्पेक्टर ने इरुलर समुदाय के लोगों को फंसाया था और उनसे मार-पीट की थी, उसका नाम एंथनी सामी था और उसका वन्नियार से कोई संबंध नहीं है। दर्शकों ने जय भीम फिल्म के निर्माताओं पर सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म बनाने की आड़ में एक समुदाय के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने का का आरोप लगाया है। विवाद शुरू होने के तुरंत बाद वन्नियार समुदाय को खलनायक के रूप में जानबूझकर दिखाने के लिए निर्माताओं के खिलाफ आवाज उठने लगे है। इसके बाद फिल्म के निर्देशक ने फिल्म से कुछ दृश्यों को हटाने का वादा किया, जिसमें फिल्म में उक्त समुदाय को क्रूर दिखाया गया था।

जय भीम फिल्म को तो वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित बताया गया था, लेकिन सोशल मीडिया पर सच्चाई बाहर आने में एक पल भी नहीं लगी। कई लोगों ने फिल्म पर ऐसी घटनाओं को प्रदर्शित करने का आरोप लगाया है, जो वास्तविकता के बिल्कुल विपरीत हैं।

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निर्माताओं ने अपने प्रोपेगेंडा के लिए बदल दी पात्रों की जातियां

बता दें कि इस जय भीम फिल्म को यह कह कर बनाया गया है कि यह 1990 के दशक में तमिलनाडु में हुई वास्तविक घटना पर आधारित है, जहां एक वकील ने एक आदिवासी महिला को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी थी। हालांकि, अब यह बात सामने आई है कि जय भीम फिल्म के निर्माताओं ने अपने प्रोपेगेंडा के लिए कुछ पात्रों की जातियों को जानबूझ कर बदल दिया था। यह ठीक उसी तरह है, जैसे चक दे इंडिया में मीर रंजन नेगी को ‘कबीर खान’ के रूप में चित्रित किया गया था, जिससे ऐसा लगे कि कबीर खान को मुस्लिम होने के कारण भारत की जनता ने हार के बाद विरोध किया था।

इन्हीं कारणों से वन्नियार समुदाय के कई लोग इस प्रोपेगेंडा के लिए सूर्या और जय भीम फिल्म के निर्माताओं की आलोचना कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर पर कई दिनों से लगातार इस फिल्म का विरोध हो रहा है। सूर्या के अलावा फिल्म में प्रकाश राज, राव रमेश, राजिशा विजयन और लिजो मोल भी हैं। सूर्या ने अपने होम बैनर के तहत फिल्म का निर्माण भी किया है। सोरारई पोटरू के बाद ओटीटी पर उनकी यह दूसरी फिल्म रिलीज हुई है। जय भीम को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लेफ्ट ब्रिगेड के बुद्धिजीवियों द्वारा सराहा गया है और इसका कारण स्पष्ट है कि फिल्म केवल हिंदुओं का मजाक उड़ाना चाहती है! हालांकि, अब सोशल मीडिया के जमाने में ऐसी फिल्मों का बच कर निकल जाना लगभग असंभव है।

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