जैसे-जैसे अयोध्या में राम मंदिर अपने निर्माण के अंतिम चरण में पहुंच रहा है, वैसे-वैसे काशी मथुरा के लिए जनभावना भी प्रबल होती जा रही है। जिस प्रकार से घटनाक्रम मोड़ ले रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अगली कार सेवा मथुरा में हो सकती है। अखिल भारत हिंदू महासभा ने घोषणा की है कि वह भगवान कृष्ण के ‘वास्तविक जन्मस्थान’ पर उनकी एक मूर्ति स्थापित करेगी। वास्तविक जन्मस्थान प्रमुख मंदिर के नजदीक मस्जिद के अंदर है।
रिपोर्ट के अनुसार हिंदू महासभा की नेत्री राज्य श्री चौधरी ने कहा कि मूर्ति को 6 दिसंबर को ‘महा जलाभिषेक’ के बाद जगह को ‘शुद्ध’ करने के लिए स्थापित किया जाएगा। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि संगठन द्वारा इस कार्य के लिए चुनी गई तारीख 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस वाले दिन की ही रखी गई है। शाही ईदगाह के अंदर अनुष्ठान करने के लिए महासभा की धमकी ऐसे समय में आई है जब स्थानीय अदालतें कटरा केशव देव मंदिर के करीब 17 वीं शताब्दी की एक मस्जिद को “हटाने” की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही हैं।
हालांकि, हिंदू महासभा की नेत्री राज्यश्री चौधरी ने इस बात से इनकार किया कि 1992 के आयोजन और मथुरा योजना के बीच कोई संबंध है। उन्होंने कहा कि पवित्र नदियों का पानी “महा जलाभिषेक” के लिए लाया जाएगा। चौधरी ने कहा, “हमें अब तक सिर्फ राजनीतिक आजादी मिली है, लेकिन आध्यात्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आजादी अभी हासिल नहीं हुई है।”
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बता दें कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए कानूनी पेंच 1856 से फंसा हुआ था, लेकिन जब 1949 में 22 और 23 दिसंबर की रात को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के अंदर राम लला की एक मूर्ति रखी गई थी, तब से एक नया आंदोलन आरंभ हुआ। देखने में तो यह एक छोटा सा कदम था लेकिन यही कदम देश को एकजुट करने और कार सेवकों को 1990 आते-आते एक करने में निर्णायक साबित हुआ। इसी एक घटना से राम जन्मभूमि का मामला एक आंदोलन में परिवर्तित हो गया और फिर उसके बाद 1990 में, फायरब्रांड नेता लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में आरंभ हुई रथ यात्रा ने इस आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया। उन्होंने अपनी रथ यात्रा गुजरात के सोमनाथ से शुरू की जिसे अयोध्या में समाप्त होना था। उसी के लिए अक्टूबर 1990 में कारसेवक अयोध्या में एकत्रित हुए थे और फिर आरंभ हुई कार सेवा।
जिस तरह से हिन्दू महासभा ने घोषणा की है उससे ऐसा लगता है कि अगली कार सेवा मथुरा में देखने को मिल सकती है। बता दें कि मथुरा जन्मभूमि के कानूनी कार्रवाई में भी स्पष्ट सफलता मिलने की संभावना है। इसी वर्ष फरवरी में मथुरा की एक अदालत ने न सिर्फ कृष्ण जन्मस्थान से संबंधित याचिका स्वीकार की थी, बल्कि सभी पक्षकारों जैसे उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के सचिव, श्री कृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के प्रबंधन न्यासी और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव को नोटिस भी भेजा था।
बता दें कि जहां आज शाही ईदगाह मस्जिद है, वहाँ कभी कंस का कारागार था, जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसीलिए इस स्थान को श्री कृष्ण जन्मस्थान का नाम दिया गया है, और यहाँ पर कभी श्रीकृष्ण का एक भव्य मंदिर विराजमान था, जिसे मुगल बादशाह औरंगज़ेब के निर्देश पर ध्वस्त किया गया था। इसी संबंध में पिछले वर्ष जिला जज साधना रानी ठाकुर के नेतृत्व वाली पीठ के सामने 12 अक्टूबर को इस सम्बन्ध में एक याचिका दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं का दावा था कि श्री कृष्ण जन्मस्थान के 13 एकड़ के कटरा केशव देव मंदिर के परिसर पर 17वीं शताब्दी में शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई थी। इसीलिए याचिककर्ताओं ने अपने मुकदमे में मांग की है कि शाही ईदगाह मस्जिद वाली जमीन समेत कटरा केशव देव मंदिर परिसर के संपूर्ण 13.7 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण का पूरा अधिकार है, यानि कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि को पुनरनिर्मित करने के लिए इस भूमि को श्रीकृष्ण के अनुयायियों को सौंपा जाना चाहिए।
इससे यह स्पष्ट होता है कि श्री राम जन्मभूमि के कानूनी युद्ध को जीतने के बाद अब अब श्री कृष्ण जन्मस्थान के पुनरुत्थान का समय आ चुका है, क्योंकि जैसे भक्तों का नारा है, “अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा अभी बाकी है।”