केरल देश का एक ऐसा सूबा जहां कोरोना अभी भी आम जनमानस को क्षति पहुंचा रहा है। वैक्सीन और कोरोना से बचाव को लेकर केरल सरकार की चारो तरफ आलोचना हो रही है। देश के अलग-अलग राज्यों में कोरोना वायरस के कम मामले और वहीं केरल में बढ़ते मामले केरल सरकार की पोल खोल रहे हैं। भारत में जब कोरोना लोगों को लील रही था, उस समय केरल सरकार बयानवीर बन रही थी। अब यह खबर सामने आ रही है कि केरल में सक्रिय ड्यूटी पर तैनात 5000 शिक्षकों को ‘धार्मिक’ कारणों से टीका नहीं लगाया गया।
केरल में धार्मिक मान्यताओं के आधार पर वैक्सीन
दरअसल, आज के परिदृश्य में केरल देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां पर राज्य की जनता को कोरोना वैक्सीन की डोज़ लगाने की गति धीमी है। विपक्ष ने केरल सरकार द्वारा कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर जनता के लिए कोई व्यापक सुविधा ना मुहैया कराने का आरोप लगाया है। उत्तरी केरल के कासरगोड और मलप्पुरम जिलों में कम से कम 5,000 शिक्षक धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए COVID टीकों से दूरी बना रहे हैं। केरल में मलप्पुरम और कासरगोड मुस्लिम बहुल जिले हैं, जहां मलप्पुरम में 70% से अधिक मुस्लिम निवासी हैं। कुछ ऐसा हीं मामला महाराष्ट्र से भी सामने आया था, जहां पर अल्पसंख्यक समुदाय में वैक्सीन को लेकर असहजता दिखी थी।
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इस मामले को लेकर केरल राज्य के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने कहा कि लगभग 5,000 स्कूल शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने धार्मिक मान्यताओं और खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कोरोना वायरस के टीके की एक भी खुराक नहीं ली है। उन्होंने कहा कि “स्थायी निर्देश हैं कि बिना टीकाकरण वाले शिक्षकों को कक्षाएं लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।” उन्होंने आगे इस मुद्दे को लेकर कहा कि “इन शिक्षकों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से पहले इन शिक्षकों को खुद को टीका लगवाने के लिए कुछ और समय दिया जाएगा।”
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अधिकारियों के अनुसार, इनमें से अधिकांश अशिक्षित शिक्षकों ने ऑफ़लाइन कक्षाओं में भी भाग नहीं लिया है। प्रशासन शिक्षकों के बीच टीके की झिझक से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहा है और धार्मिक नेताओं को भी टीके के बारे में शिक्षकों को शिक्षित करने और उन्हें कोरोना वायरस टीकों के महत्व को समझने में मदद करने के लिए प्रयास कर रहा है। बावजूद इसके अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षकों ने वैक्सीन नहीं तक लगवाया है।
बढ़ते कोरोना मामलों को रोक नहीं पा रही केरल सरकार
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्य के शिक्षा विभाग के पास उन शिक्षकों का डेटा नहीं है, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है। अधिकांश शिक्षकों ने टीकाकरण नहीं कराने का कारण ‘धार्मिक मान्यताओं’ को बताया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार केरल में 96% लोगों ने कोविड-19 वैक्सीन की पहली खुराक ली है और 65% लोगों ने वैक्सीन की दोनों खुराक ली है।
केरल 39,679 संक्रमित संबंधित मौतों के साथ देश में सबसे खराब कोविड -19 प्रभावित राज्यों में से एक रहा है, जो महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, रविवार को केरल में 1,500 नए मामले सामने आए, जबकि भारत में कुल नए मामलों की संख्या 1,832 थी। ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि केरल की विजयन सरकार राज्य में कोरोना के मामलों पर लगाम लगाने में असमर्थ रही है।