“मंदिरों के दान से आप कॉलेज नहीं खोल सकते”, मद्रास HC ने दान के पैसे से कॉलेज बनाने के फैसले पर लगाई रोक

मंदिरों के पैसे पर शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना पर कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक

मद्रास उच्च न्यायालय कॉलेज

भारत में रहने वाले बहुसंख्यक हिंदू अपनी आस्था को लेकर काफी सजग रहते हैं। हिंदू धर्म अपनी सहिष्णुता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसे मानने वाले जब भी मंदिर के दर्शन करने जाते हैं, तब वे मंदिरों में रखी दान पेटी में अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार भगवान को चढ़ावा भेंट करते हैं। इस दान पेटी में पैसे भेंट करने का मुख्य कारण है, मंदिर के प्रांगण में होने वाले पूजा-पाठ में अपना योगदान देना और मंदिर के सुखद कर्म का भागीदार बनना। लेकिन आज के दिनों में, मंदिरों के पैसे पर देश की कुछ राज्य सरकारें अपनी नज़र गड़ाए हुए है, जिससे हिंदू धर्म की आस्था को चोट पहुंच रही है। इसी बीच तमिलनाडु से खबर आती है कि वहां के मंदिरों के पैसे से कॉलेज बनाए जाएंगे। इस मामले के सामने आते हीं बवाल मच गया है और यह मुद्दा मद्रास उच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है।

शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना पर कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक

यह मामला इतना गंभीर है कि मद्रास हाई कोर्ट ने तुरंत संज्ञान लेते हुए पहले से स्थापित चार कॉलेजों के अलावा, मंदिर के अधिशेष धन का उपयोग कर हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR & CE) द्वारा नए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना पर अंतरिम रोक लगा दी है।

मद्रास हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता रमेश ने आरोप लगाया कि “तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के विधानसभा क्षेत्र कोलाथुर में कपालेश्वर मंदिर द्वारा कॉलेज की स्थापना के लिए जल्दबाजी में कदम उठाए गए और कॉलेज की स्थापना में उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।” टी. आर. रमेश ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि “मंदिरों के धन का उपयोग संबंधित मंदिरों के जीर्णोद्धार में किया जाना चाहिए।”

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ट्रस्टियों की अनुपस्थिति में निर्णय नहीं लिया जा सकता

याचिका में, उन्होंने कहा कि “वित्तीय मामलों पर निर्णय केवल ट्रस्टी ही ले सकते हैं, न कि वे व्यक्ति जो मंदिरों के प्रशासन के प्रबंधन के लिए तदर्थ आधार पर नियुक्त किए गए हैं।” इस मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति पीडी आदिकेसवालु की पीठ ने टी. आर. रमेश द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आदेश जारी किया, जिसमें तमिलनाडु उच्च शिक्षा विभाग के एचआर एंड सीई विभाग को मंदिरों के पैसे से नए कॉलेज खोलने की अनुमति देने के सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी।

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मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि “मंदिरों का अधिशेष धन अनिवार्य रूप से श्रद्धालुओं के तरफ से विशेष कारण के लिए दी जाने वाली भेंट है, और इसे हटाने का कोई भी निर्णय ट्रस्टियों की अनुपस्थिति में नहीं लिया जा सकता है।” हाई कोर्ट की पीठ ने आगे कहा कि “केवल ट्रस्टियों को ही मंदिर की संपत्तियों और प्रसाद के प्रबंधन की शक्तियां दी जाती हैं और कोई अन्य व्यक्ति इसके वित्तीय मामलों पर फैसला नहीं कर सकता।”

मद्रास उच्च नयायालय का निर्णय सराहनीय है

मद्रास उच्च न्यायालय ने मानव संसाधन और सीई विभाग को निर्देश दिया कि वह विभाग के तहत आने वाले कॉलेजों में चार महीने के भीतर नियमित रूप से हिंदू धर्म पर एक नया विषय पेश करे। मद्रास उच्च न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल को निर्देश दिया कि यदि हिंदू धर्म पर एक नया विषय नियमित रूप से नहीं पढ़ाया जाता है, तो इन कॉलेजों को कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और चार स्थापित कॉलेजों का कामकाज भी न्यायालय के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा।

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न्यायालय ने आगे इस मामले पर कहा है कि “हालांकि, शिक्षा प्रदान करने के कदम की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन धार्मिक संप्रदाय से संबंधित धन को “धर्मनिरपेक्ष धन” के रूप में नहीं माना जा सकता है।” मद्रास उच्च न्यायालय की तरफ से इस निर्णय के आने के बाद हिंदू धर्म के अनुयाइयों में खुशी का माहौल है और उन्होने न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत किया है। अंततः हिंदू मंदिरों की धार्मिक सहिष्णुता को बनाये रखने में मद्रास उच्च नयायालय का निर्णय सराहनीय है।

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