मनीष तिवारी किताब – 26 नवंबर 2008 की शाम पाकिस्तान के 10 आतंकी भारत में घुस आए। आतंकियों ने रेलवे स्टेशन, होटल, बार, ताज होटल, ओबेरॉय होटल जैसी जगहों को निशाना बनाया। 26 नवंबर की रात 9 बजकर 43 मिनट पर शुरू हुआ आतंका का तांडव, 29 नवंबर की सुबह 7 बजे खत्म हुआ। मुंबई की सड़कों पर मौत का ये तांडव 60 घंटों तक चला। इस हमले में 166 लोग मारे गए, जबकि 9 आतंकियों को एनकाउंटर में मार गिराया गया। एकमात्र आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया था, जिसे 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई। मुंबई हमलों में मुंबई पुलिस, ATS और NSG के 11 जवान शहीद हुए थे। पर उसके बाद जो हुआ वो उससे भी ज्यादा शर्मनाक था।
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दिग्विजय सिंह की गद्दारी
इस शर्मनाक घटना का विवरण खुद कांग्रेस के एक दिग्गज नेता मनीष तिवारी ने अपने किताब ’10 Flash Points; 20 Years – National Security Situations that Impacted India’ में लिखा है। मनीष तिवारी का कहना है कि पाकिस्तान को मुंबई हमले का कोई अफसोस और पछतावा नहीं था, अपितु वहां बैठे आतंकी, आईएसआई और पाकिस्तानी हुक्मरान निर्दोष भारतीयों का खून बहाकर अति प्रसन्न थे। ऐसे देश के प्रति धैर्य रखना संयम नहीं कायरता का प्रतीक है। उससे भी बड़ी बेशर्मी और देश के साथ गद्दारी तो दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की हरकतें थी, जिन्होंने उस संकट के समय में देश में भ्रम फैलाकर पाकिस्तान को बचाने की कोशिश की। उस काठी वक्त में दिग्विजय सिंह ने किताब प्रकाशित कर हेमंत करकरे से लेकर हमले तक का सारा जिम्मा हिंदुओं के मत्थे मढ़ दिया था।
कांग्रेस सरकार ने बांध दिए थे सेना के हाथ
मनीष तिवारी लिखते है कि पूरा देश संतप्त था और क्रोधित भी। उस समय के वायुसेनाध्यक्ष फली होमी मेजर थे, जिन्होंने उसी समय पाकिस्तान से बदला लेने की वायुसेना के मंशा से मनमोहन सरकार को अवगत कराया। मोदी सरकार में हुए सर्जिकल स्ट्राइक को आम बात बताने वाली कांग्रेस सरकार ने तब वायुसेना के हाथों को बांध दिए। वायुसेना को किसी प्रकार की कारवाई करने से रोक दिया गया। इतना ही नहीं, मनीष तिवारी ने अपनी किताब “10 Flash Points, 20 Years” में मुंबई हमले की तुलना अमेरिका के 9/11 से करते हुए कहा कि भारत को उस समय अमेरिका की तरह ही जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए थी।
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अब, इस मुद्दे ने देश की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया है। भाजपा की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रवक्ता गौरव भाटिया ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से जवाब मांगा है। लेकिन बाटला के आतंकियों के लिए रोनेवाली और भगवा को ही आतंक से जोड़ने वाले सोनिया और राहुल गांधी से कुछ भी अपेक्षा करना व्यर्थ है! उल्टे हमें एक नागरिक के तौर पर चिंतन करना चाहिए कि क्या प्रधानमंत्री पद के लिए एक कठपुतली और राष्ट्रवाद रहित प्रधानमंत्री को चुना जाना चाहिए? होंगे मनमोहन सिंह बहुत बड़े वित्त मंत्री और आर्थिक ज्ञाता, लेकिन देश एक सशक्त राजनेता से संचालित होता है और रही बात सोनिया और राहुल गांधी की, तो वो तो राष्ट्र और राष्ट्रवाद की परिकल्पना को ही खारिज करते है तो उनसे क्या ही उम्मीद करें!