ऑपरेशन कैक्टस: जब भारतीय सेना ने की थी मालदीव की रक्षा

विश्व ने भारत का पराक्रम देखा था!

ऑपरेशन कैक्टस

ऑपरेशन कैक्टस : एक राष्ट्र की सैन्य शक्ति और उसके राजनयिक संकाय, राष्ट्र की शांति और सुरक्षा के लिए परस्पर सहयोगी के रूप में काम करते हैं। सकारात्मक रूप से यह कथन भारत के लिए भी सही है। अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर विदेश नीतियों या सैन्य सहायता के बल पर भारत  ने ऐतिहासिक रूप से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव के लिए कई जंग जीती हैं। नवंबर 1988 में मालदीव में जो तख्तापलट के प्रयास हुए, वह भी इसी तथ्य का प्रमाण है कि भारतीय सशस्त्र बल न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम हैं बल्कि अपने पड़ोसियों की सुरक्षा में भी अहम योगदान निभाते हैं।

मालदीव में तख्तापलट

3 नवंबर 1988 को मालदीव से एक एसओएस संदेश के जरिए मदद कि गुहार लगाई गई थी। कॉल से कुछ घंटे पहले, 2000-द्वीपों से बने इस राष्ट्र पर मालदीव के व्यवसायी और राजनीतिक आकांक्षी अब्दुल्ला लुथुफी के नेतृत्व में 80 या उससे अधिक स्थानीय उग्रवादीयों और लिट्टे के आतंकियों द्वारा हमला कर तख्ता पलट करने की शुरुआत हो चुकी थी। लुथुफी ने मालदीव की तत्कालीन मौजूदा सरकार के प्रति अपनी घृणा के कारण  राज्य के प्रमुख मौमून अब्दुल गयूम के खिलाफ तख्तापलट का प्रयास किया। मालदीव तब एक अपराध-मुक्त राज्य था। इस देश में आखिरी हत्या 1976 में हुई थी, वो भी एक जर्मन नागरिक द्वारा कि गई थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उनकी सरकारों के खिलाफ तख्तापलट के प्रयास से मालदीव के लोग अनभिज्ञ थे। 1988 में यह गयूम की सरकार के खिलाफ तीसरा तख्तापलट का प्रयास था।

श्रीलंका समर्थित इस विद्रोही समूह ने राजधानी माले को बंदूकों, हथगोले और मोर्टार से जीत लिया। उसके बाद उग्रवादियों ने राष्ट्रपति आवास और राष्ट्रीय सुरक्षा सेवा मुख्यालय पर हमला किया जिसमें दोनों पक्षों के कई लोग मारे गए। मालदीव में प्रत्यक्ष भय व्याप्त था क्योंकि उन्होंने देश के रेडियो, टीवी और संचार स्टेशनों को कब्जाते हुए समुद्र के माध्यम से शहर में प्रवेश करने के मार्गों को भी अवरुद्ध कर दिया था। कुछ घंटों के भीतर ही उन्होंने बिजली और पानी की आपूर्ति में भी कटौती कर दी। सात वर्ग किमी से कम की छोटी राजधानी पूरी तरह से भाड़े के सैनिकों के नियंत्रण में थी। उनका अंतिम लक्ष्य अब राष्ट्रपति गयूम पर कब्जा करना था। परन्तु, कोई भी विद्रोही नहीं जानता था कि राष्ट्रपति अब्दुल गयूम कैसा दिखता है।

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अन्य देशों का मदद से इनकार, कहा- “भारत से मदद मांगो”

राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम पहले से ही एक सुरक्षित ठिकाने में थे परन्तु, विद्रोही सतत रूप से उनकी ओर बढ़ रहे थे। उन्होंने तुरंत श्रीलंका, मलेशिया, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अन्य  देशों से एसओएस संदेश के माध्यम से मदद मांगी।

मालदीव के राष्ट्रपति गयूम ने पाकिस्तान और श्रीलंका से सैन्य हस्तक्षेप की मांग की, लेकिन उन्होंने सशस्त्र बलों की कमी का हवाला देते हुए इनकार कर दिया। पाकिस्तान ने भौगोलिक दूरी के कारण त्वरित कार्रवाई करने में असमर्थता का भी हवाला दिया। सिंगापुर ने मालदीव की मदद करने से इनकार कर दिया और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मालदीव से कहा कि उन्हें मदद के लिए माले पहुंचने में 2-3 दिन लगेंगे। तब राष्ट्रपति गयूम ने यूनाइटेड किंगडम से बात की जिसने भारत से मदद लेने की सलाह दी क्योंकि भारत ने तो पीछे हटना सीखा ही नहीं। राजीव गांधी सरकार द्वारा एसओएस कॉल का अभूतपूर्व मुस्तैदी और ठोस कार्रवाई के साथ जवाब दिया गया।

ऑपरेशन कैक्टस शुरू

भारत ने राष्ट्रपति के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और तुरंत नई दिल्ली में एक आपात बैठक की व्यवस्था की गई। मालदीव को तख्तापलट के इस नृशंस प्रयास उबारने के लिए भारत कुछ ही घंटों में ऑपरेशन कैक्टस के लिए तैयार हो गया। यह विश्व की सबसे त्वरित सैन्य कारवाइयों में से एक थी।

3 नवंबर 1988 को, भारत ने “ऑपरेशन कैक्टस” के साथ मालदीव में हस्तक्षेप किया। भारतीय वायु सेना के IL-76 विमानों ने पैराशूट ब्रिगेड और पैराशूट फील्ड रेजिमेंट को एयरलिफ्ट किया और उन्हें बिना रुके 2,000 किलोमीटर दूर माले अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक पहुँचाया। साक्षात प्रलय और रणभूमि में विमान उतरने का साहस भारतीय वायु सेना के अलावा कोई अन्य कर भी नहीं सकता था। भारतीय सशस्त्र बल नियंत्रण स्थापित होने के कुछ ही घंटों के भीतर पहुंच गए। इस बीच भारतीय नौसेना ने अपने जहाजों को पूरी गति से माले की ओर मोड़ दिया और नौसेना के जहाज़ों ने मालदीव द्वीप समूह पर पूर्ण निगरानी स्थापित कर दी।

भारतीय पैराट्रूपर्स ने वहां पहुंचते ही एयरफील्ड पर नियंत्रण कर लिया। भारतीय सुरक्षा बलों के हस्तक्षेप की जानकारी मिलते ही भाड़े के सैनिकों में हड़कंप मच गया। भारतीयों ने राजधानी के हर हिस्से पर अपनी वीरता का प्रदर्शन करके अभूतपूर्व तरीके से भाड़े के सैनिकों के कब्जे को उखाड़ फेंका।

भारतीय सशस्त्र बलों ने भाड़े के सैनिकों की आकांक्षाओं को खत्म करते हुए 4 नवंबर की सुबह को ही राष्ट्रपति गयूम की सरकार को माले का नियंत्रण सौंप दिया। परन्तु, मालदीव के शिक्षा मंत्री सहित अन्य बंधकों के साथ कुछ भाड़े के सैनिक “एमवी प्रोग्रेस लाइट” नामक एक अपहृत मालवाहक जहाज पर सवार हो श्रीलंका की ओर भाग गए।

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नौसेना की साहसिक करवाई

यह ऑपरेशन कैक्टस का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा था। अपहृत जहाज पर सवार बंधकों को छुड़ाना था। भारतीय नौसेना बल अब कार्रवाई में थे। भारतीय नौसेना को तुरंत बंधकों को ले जाने वाले भाड़े के सैनिकों के बारे में सूचित किया गया। भारतीय नौसेना ने तुरंत “एमवी प्रोग्रेस लाइट” को रोकने के लिए अपने बलों को तैनात किया।

4 नवंबर की सुबह भारतीय नौसेना के विमान ने प्रोग्रेस लाइट के स्थान की पुष्टि की। उसके बाद बंधकों को छुड़ाने के लिए बातचीत शुरू हुई। स्थिति से निपटने के लिए आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा को तैनात किया गया है।

5 नवंबर को वार्ताकार एमवी प्रोग्रेस लाइट को श्रीलंका की ओर बढ़ने से नहीं रोक पाए। वार्ता विफल रही। परन्तु, श्रीलंकाई सरकार ने अपहृत मालवाहक जहाज को श्रीलंकाई जलक्षेत्र में अनुमति देने से इनकार कर दिया।

6 नवंबर की सुबह, अंतिम चेतावनी देने के बाद भी जब एमवी प्रोग्रेस लाइट के अपहर्ताओं ने सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी तो भारतीय नौसेना ने करवाई शुरू कर दी। पहले छोटे हथियारों से हमले किये गए। जब एमवी प्रोग्रेस लाइट ने अभी भी रुकने से इनकार कर दिया तो फॉरवर्ड कार्गो सेक्शन पर एक बाद हमला किया गया। जहाज पूर्णतः ध्वस्त हो गया और तुरंत रुक गया। भारतीय नौसेना बलों ने अपहृत जहाज से बंधकों को छुड़ाया। भाड़े के सैनिकों को मालदीव सरकार को सौंप दिया गया।

7 नवंबर को जलती हुई एमवी प्रोग्रेस लाइट डूबते हुए उद्घोष करती गई कि भारत के साहस का सूर्य सदा सर्वदा के लिए चमकता रहेगा। मिशन को नई दिल्ली के युद्ध कक्ष में सफल घोषित किया गया था जो स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहा था।

ऑपरेशन कैक्टस का वैश्विक प्रभाव पड़ा। भारत दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरा। अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया भर के नेताओं ने भी इस खतरे में भारत की भूमिका की सराहना की थी। विश्व ने भारत का पराक्रम देखा था। भारतीय सेना ने वो किया था जिसे करने में विश्व कि महाशक्तियों नें भी असमर्थता ज़ाहिर कर दी थी और वो भी इतनी जल्दी और बिना किसी जान माल  के नुकासान के। दुनिया दंग थी। विश्व आज भी भारतीय सेना के इस पराक्रम ऑपरेशन कैक्टस को अपने सैन्य पाठ्यक्रम में पढ़ता है।

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