PM मोदी ने एक ही भाषण से ‘नकली पर्यावरणवादियों’ और ‘न्यायपालिका’ की कलई खोल दी

प्रधानमंत्री ने 'न्यायपालिका' और उसके काम करने के तरीके पर जो कहा है, वो सुनने योग्य है!

भारत में छद्म धर्मनिरपेक्षता की, छद्म आदर्शवाद की, छद्म पर्यावरण संरक्षण की वकालत करने वालों की सामने से आलोचना करना एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक कदम है। यही वो चीजें है, जिसके चलते एक लंबे समय तक भारत पीछे रहा है। ऐसे लोग जो भारतीय सहिष्णुता का लाभ उठाकर, नीतियों के हवाले से लगातार भारत विरोधी कार्य करते हैं, वो विकास की राह में रोड़ा बनते है लेकिन अब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन सबको एक साथ फटकार लगाई है।

अब हाल ही में ऐसे समूहों, लोगों और यहां तक की न्यायपालिका को भी सरकार द्वारा फटकार लगाई गई है। बात यह है कि एक कार्यक्रम में, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मौजूदगी में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मौजूद थे। वहां पर प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से जो फटकार लगाई है, वो देखने योग्य चीज है।

आपको यह मालूम होगा कि नर्मदा बांध पर तीस्ता सीतलवाड़ जैसे आर्मचेयर एक्टिविस्ट लोगों ने कैसे विधवा विलाप किया था और उन्हें न्यायपालिका द्वारा कैसे एक तरीके का संरक्षण प्राप्त था। प्रधानमंत्री ने उनको सम्बोधित करते हुए कहा कि ये योजना सरदार वल्लभ भाई पटेल जी का सपना था, इसकी नीवं जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और वर्षों तक कागजो में लिपटने के कारण वह अटका रहा। कभी कहीं से कोई विरोध कर देता था, तो कभी कोई कहीं से अपना दिमाग लगाने लगता था।

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प्रधानमंत्री ने बताया कि कैसे उस बांध को पूरा करने से रोकने हेतु न्यायपालिका और पर्यावरण संरक्षण के सिपाही अवरोध उत्पन्न करते रहे। न्यायपालिका उस समय एक ठोस निर्णय लेने से कतराती रही थी। पर्यावरण क्रांतिकारियों के चलते विश्व बैंक ने भी पैसा नहीं दिया था। इतने सालों बाद उसी बांध के चलते कच्छ में जो विकास हुआ है, जो एग्रो एक्सपोर्ट में झंडे गाड़े गए है, उसपर कोई ध्यान नहीं देता है।

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि ऐसे लिपस्टिक आंदोलनकारियों से नुकसान गरीबों का हुआ है। सड़के नहीं है तो अस्पताल, स्कूल दूर है। बिजली नहीं है तो आर्थिक और बौद्धिक विकास दूर है। कुछ चंद लोगों की हठधर्मिता के कारण सभी लोगों का नुकसान नहीं होने दिया जा सकता है। यह असहनीय है कि कुछ लोग जिनके पक्ष को आसानी से दरकिनार किया जा सकता था, लेकिन तार्किकता को एक किनारे रखकर भारतीय लोकतंत्र में एक वक्त ऐसे लोगों की पूजा की गई है।

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भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस अंदाज में ऐसे छद्म और दोगले लोगों को फटकार लगाई है, वह भी समझ गए होंगे कि विदेशी पैमाने पर भारतीय पर्यावरण को नापना मूर्खता होगी। ये निहायती मूर्खों का कार्य है कि वह अपने देश की विरासत को विदेशी कौड़ियों में बेचना चाहते है। प्रधानमंत्री ने ऐसे ही लोगों को उपनिवेशवाद मानसिकता में जकड़ा हुआ समूह बताया है।

खैर, देर आये दुरुस्त आये। भारतीय प्रधानमंत्री ने जो कार्य किया है, वह लाजवाब है। ऐसे भिगोकर मारा है कि कई दिनों तक विरोधियों के होश उड़ जाएंगे। उम्मीद है कि यहीं तेवर मूलभत बदलावों को साकार करने के लिए जमीन पर भी होंगे।​

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