प्रियंका गाँधी ने राजनीतिक रैली में पढ़ी चुराई हुई कविता, तो कवि ने की धुआंधार बेइज्जती

न हम आपसे सहमत, आपकी हरकत से!

प्रियंका गाँधी कविता

यह सर्वविदित है कि प्रियंका गाँधी वाड्रा का राजनीति से उतना ही सम्बन्ध है, जितना सोनम कपूर का प्रतिभा से, स्वरा भास्कर का तर्कों से, और वीर दास का कॉमेडी से। लेकिन सपने देखने पर कोई टैक्स थोड़े ही लगता है, इसीलिए प्रियंका पहुँच गई चित्रकूट। ‘लड़की हूँ-लड़ सकती हूँ’ अभियान के अंतर्गत अपने आप को नारी सशक्तिकरण की प्रतिमूर्ति के रूप प्रस्तुत करते हुए वह ‘सुनो द्रौपदी’ कविता का मंचन करने लगी।

प्रियंका गाँधी ने कहा कि महिलाओं की स्थिति में तब तक सुधार नहीं होगा जब तक फ़ैसले लेने वाली जगहों पर महिलाएँ नहीं होंगी। काँग्रेस  ने इसीलिए चुनाव में 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को देने का ऐलान किया है। महिलाएँ ही महिलाओं का दर्द समझ सकती हैं और जब विधानसभा में बड़ी तादाद में महिलाएँ होंगी तो उनके पक्ष में नीतियाँ भी बनेंगी। इसके बाद महोदया पढ़ने लगी, “बहुत हुआ इंतजार अब, सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएँगे।औरों से कब तक आस लगाओगी…।”

एक बार को उनका वक्तव्य सुनकर आप भी बोलोगे, ‘वाह, क्या कविता बोलती हैं।’ परन्तु फिर पधारे , जिन्होंने मूल कविता की रचना की, और उन्होंने प्रियंका गाँधी पर अपनी कविता का दुरूपयोग अपनी घटिया राजनीति के लिए करने का आरोप लगाया और ट्वीट किया,

“प्रियंका गाँधी जी, ये कविता मैंने देश की स्त्रियों के लिए लिखी थी न कि आपकी घटिया राजनीति के लिए। न तो मैं आपकी विचारधारा का समर्थन करता हूं और न आपको ये अनुमति देता हूं कि आप मेरी साहित्यिक संपत्ति का राजनैतिक उपयोग करें। कविता भी चोरी करने वालों से देश क्या उम्मीद रखेगा?”

twitter.com/viYogiee/status/1461239940277276675?s=20

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पुष्यमित्र उपाध्याय ने इसके पश्चात अपनी जनवरी की एक ट्वीट भी शेयर किया, जहाँ उन्होंने एक न्यूज़ क्लिप शेयर की कि कैसे निर्भया काण्ड से प्रभावित होकर उन्होंने आक्रोश में उस कविता का निर्माण किया था, और कैसे वे प्रियंका गाँधी जैसे राजनेताओं द्वारा अपने ही रचना के इस घटिया उपयोग से एकदम विक्षुब्ध हैं।

 

जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को ‘बच्चा’ बताया था, तो वे कहीं न कहीं उनकी राजनीतिक नासमझी और उनकी अपरिपक्वता पर ही निशाना साध रहे थे। प्रियंका गाँधी वाड्रा राजनीतिक रूप से कितनी परिपक्व हैं, इसका अंदाज़ा 2019 के लोकसभा चुनाव से ही पता चल चुका था, जब उन्होंने पूर्वांचल में कांग्रेस के प्रचार-प्रसार का ज़िम्मा अपने सर लिया था, और सीधा उस व्यक्ति से दो-दो हाथ किए, जिसके लिए दशकों से पूर्वांचल उनका घर भी है और उनका राजनीतिक गढ़ भी – योगी आदित्यनाथ। हराना तो दूर की बात, प्रियंका गाँधी अपने 32 सीटों में से मुश्किल से एक सीट पर ज़मानत बचाने में सफल हो पाई।

लेकिन इससे इन्होने न तो राजनीतिक रूप से और न ही सांस्कृतिक रूप से प्रियंका गाँधी वाड्रा ने कोई सबक लिया, और योगी को फिर से चुनौती देने के लिए वह किसी भी हद तक गिरने को तैयार है, जो हाथरस और लखीमपुर में उनके द्वारा हिंसा भड़काने के प्रयासों से स्पष्ट दिखाई देता है

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