कई महीनों की राजनीतिक अस्थिरता के बाद से अब पंजाब के राजनीतिक गलियारों में स्थिति कुछ सामान्य होती दिख रही है। जब से चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब की बागडोर दी गयी है, तब से ही वह कई बड़े फैसले ले चुके हैं जो स्पष्ट तौर पर आने वाले चुनाव में निर्णायक साबित हो सकते हैं। पंजाब सरकार द्वारा बिजली बिल और प्रदर्शनकरी किसानों के लिए मुआवजे के फैसले के बाद अब एक और बड़ा फैसला देखने को मिल सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने रविवार को द ट्रिब्यून को बताया कि पंजाब जल्द ही सरकारी और निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों को लगभग 100% आरक्षण प्रदान करने के लिए एक विशेष कानून प्रस्ताव पेश करेगा।
चुनाव से पहले चन्नी की नई चाल!
रिपोर्ट के अनुसार चन्नी ने कहा कि सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह सुनिश्चित करना है कि पंजाब के लोगों को राज्य में रोजगार मिले। उन्होंने द ट्रिब्यून को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि “जब हम नौकरी का विज्ञापन करते हैं, तो 25% [आवेदक] हरियाणा से आते हैं, हिमाचल प्रदेश से 15%, कुछ दिल्ली से आते हैं, पंजाबियों के लिए कोई जगह नहीं बची है।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं यह सुनिश्चित करने के लिए एक कानून ला रहा हूं कि पंजाबियों को पंजाब में 100% नौकरियां मिलें, खासकर सरकारी नौकरियों में। मैं वकीलों से सलाह ले रहा हूं।” द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब सरकार अगले 45 दिनों में 1 लाख नौकरियां देने के लक्ष्य पर काम कर रही है। चन्नी ने कहा कि “लोगों को योग्यता के आधार पर नौकरी मिलनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार पंजाब में युवाओं के लिए व्यापार करने के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहती है।
द ट्रिब्यून ने बताया कि पंजाब में कांग्रेस सरकार अन्य राज्यों द्वारा अपने निवासियों को नौकरी कोटा प्रदान करने के लिए लिए गए निर्णयों का अध्ययन कर रही है।
हरियाणा में लागू है 75 प्रतिशत का कोटा
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पंजाब के अगल-बगल के राज्य जहां नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण कोटा लागू कर चुके हैं, तो वहीं पंजाब सरकार की ओर से 100 प्रतिशत कोटे की बात कही जा रही है। इससे पहले हरियाणा सरकार ने दुष्यंत चौटाला के दबाव में स्थानीय लोगों को 30,000 रुपये तक का भुगतान करने वाले 75 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित करने वाला कानून बनाया था।
वहीं, जब तक अमरिंदर सिंह पंजाब के सीएम थे, तब तक पंजाब इस तरह के प्रलोभन वाले कानून से बचा रहा लेकिन अब चन्नी के नेतृत्व में ऐसी ही नीतियां पंजाब की राजनीति पर पकड़ बना रही हैं। पंजाब में आने वाले कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में बताया जा रहा है कि राज्य की जनता को लुभाने हेतु कांग्रेस सरकार की ओर से यह कदम उठाया जा रहा है।
निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण प्रदान करने वाला पहला विधेयक साल 2017 में टीआरएस शासित तेलंगाना द्वारा लाया गया था। टीआरएस द्वारा स्थानीय लोगों के लिए 62 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित करने के लिए एक विधेयक लाया गया था, लेकिन यह सार्वजनिक रोजगार तक सीमित था। साल 2019 में, आंध्रप्रदेश की नवनिर्वाचित जगन मोहन रेड्डी सरकार की ओर से भी 75 प्रतिशत निजी और सार्वजनिक नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने के लिए एक विधेयक लाया गया था।
भारतीय राजनीति में तुष्टीकरण की राजनीति को देखते हुए, महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार की ओर से भी इसी तरह का कानून बनाया गया। हालांकि, आरक्षण का प्रतिशत फिर भी बहुत कम था और यह सिर्फ सार्वजनिक रोजगार तक ही सीमित था।
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पंजाब से जल्द ही बाहर निकल जाएंगी कई कंपनियां
मौजूदा समय में पंजाब के सीएम चन्नी इस पागलपन को एक अलग ही स्तर पर ले जा रहे हैं कि सभी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित होंगी! अब इस बात को लेकर भी चिंता जताई जा रही है कि पंजाब की कृषि, जो पूरी तरह से यूपी, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के मजदूरों पर निर्भर है, उसका हश्र क्या होगा। साथ ही सरकार की ऐसी नीतियां उद्यमियों और उद्योगों को राज्य के भीतर कर्मचारियों की तलाश करने के लिए मजबूर करेंगी और इससे कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
यह ध्यान में रखना चाहिए कि आज के युग में उद्योग अकुशल या शारीरिक श्रम के ही दम पर नहीं चल सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि उद्योगों को व्यव्हारिक रूप से तकनीकी रूप से कुशल और योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता होगी और वो एक ही राज्य में नहीं मिल सकते। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस कानून के बाद उद्योग पंजाब से निकलने का प्रयास अवश्य करेंगे।