राजनाथ सिंह ने दी पेपर ड्रैगन को चेतावनी, UNCLOS पर चीन की मनमानी व्याख्या नहीं चलेगी

चीन समुद्री क्षेत्र पर अपनी मनमानी करता रहे और भारत चुपचाप देखे ऐसा नहीं हो सकता!

UNCLOS

भारतीय नौसेना के विध्वंसक पोत ‘विशाखापट्टनम’ को सेना में शामिल होने के अवसर पर कल यानी सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन पर कड़े शब्दों में हमला करते हुए कहा कि “कुछ गैर-जिम्मेदार राष्ट्र” गुंडागर्दी दिखाने के लिए UNCLOS की परिभाषा ही बदल रहे हैं। राजनाथ सिंह ने इसे चिंता का विषय बताया और कहा कि कुछ देशों द्वारा इसकी परिभाषा की मनमानी व्याख्या से UNCLOS को बार-बार कमजोर किया जा रहा है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि वर्चस्ववादी प्रवृत्तियों वाले ‘‘कुछ गैर-जिम्मेदार देश’’ अपने संकीर्ण पक्षपातपूर्ण हितों के कारण संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) को गलत तरीके से परिभाषित कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अपना आधिपत्य जमाने वाले कुछ गैर-जिम्मेदार देश अंतरराष्ट्रीय कानूनों की गलत व्याख्या कर रहे हैं।

राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में कहा कि 1982 के ”United Nations Convention on the Law of the Sea” (UNCLOS) में, राष्ट्रों के क्षेत्रीय जल, विशेष आर्थिक क्षेत्र और ‘समुद्र में अच्छी व्यवस्था’ के सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया है। कुछ गैर-जिम्मेदार राष्ट्र अपने संकीर्ण पक्षपातपूर्ण हितों के लिए इन अंतरराष्ट्रीय कानूनों की आधिपत्य की प्रवृत्ति से नई और अनुचित व्याख्या करते रहते हैं।

उन्होंने कहा कि, “मनमाना व्याख्या नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है।  हम नेविगेशन की स्वतंत्रता, मुक्त व्यापार और सार्वभौमिक मूल्यों के साथ एक नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहे हैं, जिसमें भाग लेने वाले सभी देशों के हितों की रक्षा की जाती है।”

उन्होंने इस अवसर पर भारत की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि एक जिम्मेदार समुद्री हितधारक के रूप में, भारत सर्वसम्मति-आधारित सिद्धांतों और शांतिपूर्ण, खुले, नियम-आधारित स्थिर समुद्री व्यवस्था का समर्थन करता है।

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दक्षिण चीन सागर के पानी पर फिलीपींस और वियतनाम सहित इस क्षेत्र के अन्य देशों द्वारा भी दावा किया जाता है परन्तु चीन अपनी मनमानी करते हुए इन सभी देशों पर अपनी गुंडागर्दी दिखाता है।

बता दें कि दक्षिण चीन सागर में चीन के सामने ASEAN के छोटे-छोटे देश बिखर जाते हैं जिससे इस क्षेत्र में चीन का दावा लगातार मजबूत होता गया। वर्ष 2016 में UNCLOS के तहत आई Arbitral ruling में हार के बावजूद चीन अपनी स्थिति से टस से मस नहीं हुआ। इसी बीच चीन ने सफलतापूर्वक अपने 9 डैश लाइन के सिद्धान्त को भी दक्षिण चीन सागर में लागू कर दिया और अन्य देशों की चिंताओं की उसने कभी फिक्र नहीं की। ऐसे में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इस परिपेक्ष्य में देखा जाए तो रक्षा मंत्री का बयान महत्वपूर्ण है।

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UNCLOS के नियमों के तहत अभी हर देश को अपनी ज़मीन से लेकर समुद्र में 200 नॉटिकल माइल्स तक Exclusive Economic Zone मिलता है, जहां पर सिर्फ वही देश अपनी आर्थिक गतिविधियों को अंजाम दे सकता है। हालांकि, अगर कोई देश समुद्र में अपने Continental Shelf होने के दावों को पुष्ट कर देता है तो Exclusive Economic Zone की सीमा को 200 नॉटिकल माइल्स से बढ़ाकर 350 नॉटिकल माइल्स भी किया जा सकता है। सुरक्षा और आर्थिक कारणों की वजह से चीन दक्षिण चीन सागर को अपना हिस्सा मानता है और UNCLOS के नियमों को ना मानते हुए दक्षिण चीन सागर से सटे देश जैसे फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया और मलेशिया के Exclusive Economic Zones का उल्लंघन करता रहता है।

पिछले वर्ष तो चीन अपनी सभी हदें पार करते हुए वियतनाम पर धावा बोलने की तैयारी कर रहा था। तब वियतनाम चाहता था कि, भारत उसकी तत्काल प्रभाव से सहायता करे।

अपनी टिप्पणी में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत के हित सीधे हिंद महासागर से जुड़े हुए हैं जो बदले में विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हिंद महासागर और भारत-प्रशांत क्षेत्रों से गुजरने वाले व्यापार की बड़ी मात्रा को देखते हुए, इस क्षेत्र को खुला और सुरक्षित रखना भारतीय नौसेना का एक प्रमुख उद्देश्य है।

उन्होंने कहा कि “वैश्वीकरण के मौजूदा समय में नियम आधारित नेविगेशन की स्वतंत्रता और समुद्री मार्गों की सुरक्षा भारत और दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। समुद्री डकैती, आतंकवाद, हथियारों और नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी, मानव तस्करी, अवैध मछली पकड़ने और पर्यावरण को नुकसान जैसी चुनौतियां समुद्री क्षेत्र को प्रभावित करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।  इसलिए पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।”

हालांकि, रक्षा मंत्री ने चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि इसके आसपास के समुद्रों पर दावा करने के लिए दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा अपनी गुंडागर्दी दिखाने के लिए द्वीपों के निर्माण और क्षेत्र के सैन्यीकरण के कारण बीजिंग ही उनका लक्ष्य था।

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