अत्याचारी ‘दोस्त मोहम्मद’ के कारण रानी कमलापति ने ली थी जल समाधि, हबीबगंज स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है

रानी कमलापति के नाम बना पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन!

रानी कमलापति

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बने विश्वस्तरीय हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड जनजाति से आने वाली रानी कमलापति के नाम पर रख दिया गया है। 18 वीं शताब्दी में क्षेत्र की गोंड की रानी कमलापति, गिन्नोरगढ़ के प्रमुख, तथा गोंड शासक निजाम शाह की पत्नी थीं। निजाम शाह की मृत्यु के बाद उन्होंने ही राज्य का कार्यभार संभाला था। यह वही रानी हैं, जिन्होंने अफगानों के सरदार दोस्त मोहम्मद से अपनी आबरू बचाने के लिए जल समाधि ले लिया था।

वीर, निडर होने के साथ-साथ हर क्षेत्र में कुशल थी रानी

रानी कमलापति (या कमलावती) निज़ाम शाह की सात पत्नियों में से एक थीं और चौधरी कृपा-रामचंद्र की बेटी थी। रानी अपनी सुंदरता और क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध थीं, जिसके कारण अक्सर उनकी प्रशंसा होती रहती थी। 14वीं ई. में जगदीशपुर (इस्लामनगर) में गोंड राजाओं का शासन था। सन् 1715 में, अंतिम गोंड राजा नरसिंह देवड़ा थे। उन्होंने भोपाल में 476 ई. से 533 ई. तक लगभग 60 वर्षों तक शासन किया। 16वीं शताब्दी में, भोपाल से 55 किमी दूर, देहलावाड़ी के पास 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य का गठन किया गया था। इसके राजा सूरज सिंह शाह (सलाम) थे। उनके पुत्र निजामशाह थे, जो बहुत वीर, निडर और हर क्षेत्र में कुशल थे।

कमलापति का विवाह उन्हीं से हुआ था। राजा निजाम शाह ने 1700 ई. में रानी कमलापति के प्रेम के प्रतीक के रूप में भोपाल में सात मंजिला महल बनवाया था, जिसे लखौरी ईंटों और मिट्टी से बनाया गया था।

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शिवराज सिंह चौहान ने एक लेख में बताया है कि यह सात मंजिला यह महल अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था। उनका एक पुत्र भी था जिसका नाम उन्होंने नवल शाह रखा था। हालांकि, वहीं के बाड़ी किले के जमींदार के एक लड़के और राजा निजामशाह के भतीजा चैन सिंह भी थे, जिनका रानी कमलापति के प्रति आकर्षण था। वह कमलापति के विवाह होने के पश्चात भी उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे। यह आकर्षण इतना बढ़ गया था कि वह अनेक बार राजा निजामशाह को मारने की कोशिश कर चुके थे।

हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली थी। परंतु कहते हैं न हर बार किस्मत साथ नहीं देती। एक उन्होंने आत्मीयता का नाटक कर राजा निजामशाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में विष मिलाकर देकर उनकी हत्या कर दी। यह खबर पूरे गिन्नौरगढ़ में खलबली मचाने के लिए काफी थी। चैन सिंह यही नहीं रुका और गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला बोल दिया। हालांकि, रानी कमलापति ने समझदारी दिखते हुए अपने 12 वर्षीय बेटे नवलशाह और कुछ सैनिकों के साथ निजाम शाह द्वारा बनवाए महल में छिप जाने का निर्णय लिया।

रानी पर मोहित था दोस्त मोहम्मद

इस महल में कुछ दिनों तक रहने के बाद रानी कमलापति को यह खबर मिली की कुछ अफगानियों ने भोपाल की सीमा के पास अपना गढ़ बना रखा था। इस अफगानी सेना का सरदार दोस्त मोहम्मद था जो औरंगजेब की सेना में सेना प्रमुख भी था। वहां, से वह किसी कारणों से भाग कर मध्यभारत में शरण लिया हुआ था। ये वही सेना थी जिसने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर हमला किया था और उस पर अधिकार जमा लिया था।

कहा जाता है कि ये उस क्षेत्र में एक paid militia की तरह काम करते थे और जो उन्हें पैसे देता था उसके लिए लड़ते थे। अजय पाल सिंह ने अपनी पुस्तक Forts and Fortifications in India: With Special Reference to Central India में बताया है कि रानी कमलापति ने अपनी और अपने बेटे के लिए दोस्त मोहम्मद से मदद मांगी। कुछ रिपोर्ट्स यह कहते हैं कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहर की पेशकश की थी और उन्हें चैन सिंह पर हमला करने के लिए कहा।

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राज्य की लालच में दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला किया और चैन सिंह की हत्या कर किले पर कब्जा कर लिया। हालांकि, यहां सवाल उनके बेटे के जीवन का था, तो कमलापति ने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर विरोध नहीं किया। लेकिन दोस्त मोहम्मद यहीं नहीं रुका, वह पूरे भोपाल के साथ-साथ रानी कमलापति की सुंदरता पर मोहित हो कर, उन्हें भी अपने अधिकार में करना चाहता था। इसके लिए उसने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने को कहा। जब यह बात रानी कमलापति के 14 वर्षीय बेटे नवलशाह को पता चली, तो वह मुट्ठी भर सैनिकों के साथ दोस्त मोहम्मद के खिलाफ युद्ध के लिए चल पड़े। हालांकि, उन्हें इस युद्ध में हार हुई और दोस्त मुहम्मद ने उनकी हत्या कर दी।

रानी ने ले ली जल समाधि

अपने पुत्र की मृत्यु के बाद रानी कमलापति बेहद कठिन परिस्थति में फंस गयी थी। दोस्त मोहम्मद किसी भी तरह उन्हें अपने हरम का हिस्सा बनाना चाहता था। शिवराज सिंह चौहान ने अपने एक लेख में बताया है कि, “उन्होंने अपनी इज्जत को बचाने के लिए तालाब के बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। इसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता हैं। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली।”

दोस्त मोहम्मद खान जब तक अपनी पूरी सेना के साथ वहां चढ़ाई करता, उतनी देर में कमलापति ने जल समाधि ले लिया था। इससे दोस्त के हाथ न तो रानी आई और न ही उनके धन-दौलत। कुछ रिपोर्ट्स की माने तो रानी कमलापति की मृत्यु 1723 में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान पूरे भोपाल का नवाब बन गया था और उसके साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ।

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