आम तौर भारत सरकार और उनकी एजेंसियों की छवि एक लेटलतीफ सेवाएं देने के लिए जानी जाती हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार के कई एजेंसियों को कुशल बना दिया है और भारत का केंद्रीय बैंक RBI भी उन्हीं में से एक है। इस साल फरवरी में RBI ने घोषणा करते हुए कहा कि बहुत जल्द खुदरा निवेशक सरकारी बॉन्ड बाजार में भाग ले सकेंगे। 9 महीने के भीतर, भारत के केंद्रीय बैंक ने इस वादे को पूरा किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने RBI Retail Direct Scheme की शुरुआत की है, जिसके तहत खुदरा निवेशक सीधे सरकारी (बॉन्ड) Securities and Treasury Bills में निवेश कर पाएंगे।
जब सरकार ने फरवरी में सरकारी उधारी में निवेश को लोकतांत्रिक बनाने की घोषणा की थी, तब भी TFI की ओर से इस कदम की सराहना की गई थी। अब RBI ने 9 महीने के भीतर इतना बड़ा डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार कर दिया है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए।
Retail Direct Scheme के तहत अब प्राथमिक के साथ-साथ द्वितीयक बाजारों से सीधे ट्रेजरी बिल, दिनांकित प्रतिभूतियां (Dated securities), Sovereign Gold Bonds (SGB) और State Development Loans (SDLs) ) खरीद सकते हैं। साथ ही RBI की ओर से इस योजना के तहत प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के लिए एक पैसा भी नहीं लिया जा रहा है।
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सरकारी बॉन्ड में कर सकेंगे निवेश
केंद्रीय बैंक की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि “सरकारी प्रतिभूतियों यानी Government Securities बाजार के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो भारतीय रिजर्व बैंक-रिटेल डायरेक्ट (आरबीआई-आरडी) योजना निवेश की प्रक्रिया को सरल बनाकर G-Sec को आम आदमी की पहुंच में लाएगी।” अब तक, G-Sec में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के अलावा केवल संस्थागत निवेशकों को ही सरकारी बॉन्ड में निवेश करने की अनुमति थी और वे सरकारी ऋण वित्तपोषण के प्रमुख स्रोत थे।
वास्तव में SBI, HDFC जैसे वाणिज्यिक बैंकों को सरकारी बांडों में कुल जमाराशि का कम से कम पांचवां हिस्सा निवेश करने के लिए अनिवार्य किया गया था, ताकि सरकारों (राज्य और संघ) के पास ऋण वित्तपोषण तक आसान पहुंच हो। अब पहली बार खुदरा निवेशकों को सरकारी बॉन्ड में सीधे निवेश करने का अवसर मिलेगा। इससे एक साथ कई मुद्दों का समाधान हो जाएगा।
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इससे होंगे कई तरह के फायदे
सबसे पहले पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिए सरकार के पास बहुत सारा पैसा होगा। इस तथ्य को देखते हुए कि भारत के लोग निजी फर्मों की तुलना में अपने पैसे को लेकर सरकार पर अधिक भरोसा करते हैं, वे बड़ी संख्या में सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करेंगे।
दूसरा, सरकार को कर्ज के लिए विदेशी निवेशकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। Moody’s और S&P जैसी विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां कम डिफॉल्ट होने की संभावना के बावजूद भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की रेटिंग कम रखती हैं, जबकि विदेशी सरकारों की रेटिंग, जो कई बार डिफॉल्ट कर चुकी हैं, उनकी रेटिंग उच्च रखी जाती हैं। रेटिंग एजेंसियों के दृष्टिकोण औपनिवेशिक होते हैं और वे चाहते हैं कि पश्चिमी सरकारों को आसानी से सस्ते ऋण मिले, जबकि विकासशील देशों की सरकारें ऋण के लिए अरबों डॉलर का भुगतान करती हैं।
तीसरा, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी क्षेत्र को ऋण देने के जोखिम से बचने के लिए सरकारी बॉन्ड में निवेश करने के बजाय निजी खिलाड़ियों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
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भारत में पारदर्शी होते जा रहा हैं वित्तीय बाजार
इसके अलावा Government securities के लिए बैंकों और खुदरा निवेशकों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी और इससे ब्याज दर में और कमी आएगी। यदि सरकार के पास सस्ते ऋण उपलब्ध होंगे, तो उसके पास नई परियोजनाओं पर खर्च करने के लिए अधिक फंड होगा। RBI द्वारा खुदरा निवेशकों को सरकारी बॉन्ड में अनुमति देने का निर्णय एक क्रांतिकारी कदम है और इससे न केवल सरकारी वित्त में सुधार होगा, बल्कि कई अन्य सकारात्मक प्रभाव भी होंगे। अमेरिका और ब्राजील के बाद खुदरा निवेशकों को सरकारी बॉन्ड में अनुमति देने वाला तीसरा देश भारत है। इस क्रांतिकारी कदम के साथ शक्तिकांत दास RBI के इतिहास में सबसे अच्छे गवर्नरों में से एक बन जाएंगे। उनके नेतृत्व में, भारत का वित्तीय बाजार अधिक पारदर्शी होते जा रहा है तथा तेजी से विस्तार भी कर रहा हैं।