1983 विश्व कप जीत के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन सेनापति कपिल देव ने जब लॉर्ड्स के मैदान में विश्व कप की ट्रॉफी अपने हाथ में उठाई थी, तो उस वक्त मुंबई के एक बच्चे ने विश्व कप उठाने की शपथ ली थी, नाम सचिन ‘रमेश’ तेंदुलकर। उनका सपना पूरा हुआ 28 वर्ष बाद 2011 में। उस 28 वर्ष के दौरान अनेकों संघर्ष, दुख-दर्द, शारीरिक-मानसिक चोटों की एक लंबी कतार लगी। इसके विपरीत उसी 2011 विश्व कप विजेता टीम में एक अंडर19 विश्व कप विजेता टीम के कप्तान विराट कोहली भी थे। अब आप सोच रहे होंगे, कि दोनों की बात एक साथ क्यों कर रहे हैं? तो इसलिए क्योंकि एक सचिन तेंदुलकर थे, जिन्होंने भारत में क्रिकेट को नया आयाम दिया था। वहीं, अब विराट कोहली के कारण भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता शून्यता की ओर जा रही है।
टी-20 विश्व कप से बाहर भारत
वर्ष 2000 के बाद ये माना जाता था, कि भारत में क्रिकेट टीम मजबूत है, और विश्व कप में उसकी लोकप्रियता आसमान छूती थी। इसके विपरीत आज की स्थिति ये है कि भारतीय टीम का प्रदर्शन इतने निचले स्तर पर चला गया है कि देश में क्रिकेट की लोकप्रियता खत्म होने लगी है। उम्मीद थी, कि टी-20 विश्व कप में यदि भारत का प्रदर्शन अच्छा रहता, तो कुछ सामान्य होता किन्तु विश्व कप के लीग मैचों में ही प्रतियोगिता से बाहर होना, भारत के लिए शर्मनाक रहा है।
भारत की स्थिति इतनी बुरी थी कि उसे अफगानिस्तान बनाम न्यूजीलैंड में अफगानिस्तान की असंभावी जीत की उम्मीद रखनी थी। इधर अफगानिस्तान हारा, उधर भारत का विश्व कप से बाहर होना तय हो गया। इस शर्मनाक प्रदर्शन के लिए यदि कोई सर्वाधिक जिम्मेदार है, तो मात्र कप्तान विराट कोहली, जिनकी हरकतों के कारण भारतीय टीम का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। ऐसे में अब वो लोग भी आक्रोशित हैं, जो कभी विराट कोहली को क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर का उत्तराधिकारी मानते थे।
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क्रिकेट मतलब सचिन तेंदुलकर
1991 के दशक में जब भारत में आर्थिक स्थिति नाज़ुक थी, तो दूसरी ओर देश में एक क्रिकेट का सितारा उभरा था, सचिन तेंदुलकर! अपने बल्ले से दिग्गज गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने वाले सचिन का आफ द फील्ड व्यक्तित्व इतना शालीन था कि उन्हें एक परफेक्ट इंसान माना जाता है। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का कारण बने तेंदुलकर ने जो विज्ञापन किए वो भले ही कॉमर्शियल थे, लेकिन उनके कारण ही भारत में उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी थी। 1996, 1999, 2003 2007, 2011 विश्व की कोई भी श्रंखला हो, भारत का कोई सितारा सर्वाधिक चमका, तो सचिन तेंदुलकर ही थे।
सचिन तेंदुलकर ने अपने दो दशक के क्रिकेट करियर में रिकॉर्ड्स की बौछार कर दी थी, जिनमें से अधिकतर को तोड पाना किसी के लिए भी नंगे पैर पहाड़ चढ़ने के समान है। एक ऐसा क्रिकेटर जो न जाने कितनी बार 90-99. के बीच अंपायर की गलतियों से आउट करार दिया गया, न जाने कितने बार बदनीयती से गेंदबाजों द्वारा किए गए वार सहता रहा, लेकिन किसी को पलट कर न जवाब दिया, और न ही कभी अपने रिकॉर्ड्स का घमंड किया। यही कारण है कि आज भी उन्हें क्रिकेट का भगवान कहा जाता है। एक शख्स जिसके पिता का आकस्मिक देहांत हुआ हो, और वो अंतिम संस्कार कर के आया हो, तो अमूमन उससे किसी कार्य की उम्मीद नहीं की जाती, लेकिन सचिन अलग थे, जो कि पिता का अंतिम संस्कार करने लंदन से भारत आए, और पुन: अगले दिन विश्व कप के ही मैच में उन्होंने शतक ठोंक दिया। उनका ये रवैया उनकी कर्तव्यपरायणता को दर्शाता है।
कोहली का अजीबो-गरीब रवैया
जिस विश्वकप ट्रॉफी को पाने के लिए सचिन ने 28 वर्ष मेहनत की, विराट को वो सचिन के सामने ही मिल गया। ऐसे में सचिन के सामने कोई सपना ही नहीं है। भले ही तकनीक के लहजे से वो अच्छे खिलाड़ी हो सकते हैं, किन्तु उनका हालिया रवैया इसकी गवाही नहीं देता है। वहीं विराट की नेतृत्वक्षमता के कारण भारतीय क्रिकेट टीम अपने सबसे खराब दौर में पहुंच गई है। विरट का ऑनफील्ड रवैया ही बताता है कि कैसे वो एक घमंडी और अतिआत्मविश्वास से ओत प्रोत रहने वाले खिलाड़ी हैं, जो कि विरोधी टीम के सामने जरूरत से अधिक आक्रामकता दिखाते हैं, तो दूसरी अपनी टीम के खिलाड़ियों तक से अच्छे संबंध नहीं रखते हैं। यही कारण हैं कि भारतीय क्रिकेट बर्बाद की कगार पर है।
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ये कहा जाता है कि जैसा सेनापति होगा, वैसी ही सेना होगी, नतीजा ये भारतीय टीम में विराट जैसे व्यक्तित्व वाले खिलाड़ियों की ही भरमार है। विराट को Woke बनने का शौक है। वो दिवाली पर पटाखे न चलाने के कैंपेन में वामपंथियों का साथ देने में आगे रहते हैं। विज्ञापनों के जरिए पैसा कमाने और अभिनय करने में वो दिन-प्रतिदिन सक्रिय हो रहे हैं, लेकिन अपना मूल काम क्रिकेट खेलना भूल चुके हैं।
भारत जो कभी पाकिस्तान से विश्व कप में नहीं हारा था, वो इस टी-20 विश्व कप में हार गया। यही कारण है कि देश में अब क्रिकेट के पीछे लोगों का पागलपन खत्म हो चुका है। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को अब इस बात की उम्मीद ही नहीं है कि भारत किसी मैच में अच्छा प्रदर्शन करेगा।
सचिन तेंदुलकर जहां टीम को साथ लेकर चलते थे, तो वहीं मुश्किल घड़ी में टीम के अकेले संकटमोचक भी साबित होते थे, जोकि भारत को लगभग सभी मैचों में जीत दिलाने का प्रयास करते थे। शायद यही कारण है कि सचिन तेंदुलकर को देखने के लिए लोग 5 दिन का टेस्ट मैच भी दिलचस्पी के साथ देखते थे, जिससे भारत का क्रिकेट स्वर्णिम इतिहास तक पहुंचा था किंतु आप भारतीय टीम जिस विराट कोहली के अंतर्गत खेल रही है, असल में वो अब टीम में रहने तक के लायक नहीं है क्योंकि विश्व कप में हार के बाद भारतीयों का मोह विराट कोहली या किसी भी क्रिकेट खिलाड़ी से भंग हो चुका है।