समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा- इन दो पत्रकारों ने त्रिपुरा को हिंसा की आग में झोंकने की कोशिश की

देश को छलनी कर रही है वामपंथियों की झूठी पत्रकारिता!

समृद्धि सकुनिया

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इस लेख का निहितार्थ इस प्रश्न में निहित है-“पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ क्यों कहा गया?” पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ है, सभी जानते हैं। परंतु, क्यों है? ये जानना महत्वपूर्ण है। अगर आपका यह प्रश्न निरुत्तरित रहा, तो इस स्तम्भ पर आश्रित लोकतन्त्र ध्वस्त हो जाएगा और एक नागरिक के तौर पर आप किसी को उत्तरदायी भी नहीं ठहरा सकेंगे! खैर, मूल प्रश्न पर आते है। पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ इसलिए है, क्योंकि लोकतन्त्र का आधार न्याय है, न्याय सत्य से सृजित होता है और सत्य पर ही पत्रकारिता टिकी है। परंतु, सूचना के इस युग में सत्य को मिथ्या में परिवर्तित कर दिया गया है और पत्रकारिता को प्रोपगेंडे और पैसेवाले पेशे में। आइए परिवर्तन की इस प्रक्रिया को हम उदाहरण से समझते हैं।

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पत्रकारों ने की लोगों को भड़काने की कोशिश

समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा दिल्ली स्थित एचडबल्यू न्यूज़ में पत्रकार हैं। लोग जब इस समाचार एजेंसी का नाम नहीं जानते, तो इसके पत्रकारों को तो क्या ही जानेंगे! पर, प्रसिद्धि प्राप्ति हेतु इन दोनों पत्रकारों के द्वारा प्रसारित समाचार के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है। समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा ने हिंदुओं द्वारा त्रिपुरा के मस्जिद में कुरान जलाने की झूठी खबर प्रसारित की, ताकि हिंदुओं के नरसंहार को अंजाम दिया जा सके।

पिछले महीने बांग्लादेश में दुर्गा पूजा समारोह के दौरान कुरान को अपमानित करने की झूठी खबर फैलाकर मुसलमानो द्वारा हिंदुओं पर व्यापक हमले किए गए। दर्जनों हिंदुओं की मौत हुई, जिसमें इस्कॉन मंदिर पर हमला भी शामिल था। इस घटना के विरोध में त्रिपुरा के हिंदू संगठनों ने जुलूस निकाला, उस दौरान उपद्रव की छिटपुट घटनाएं भी हुई। यह एक सामान्य घटना थी, परंतु समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा जैसे वामपंथी पत्रकारों को इसमे यश और धन प्राप्ति का अवसर दिखा!

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11 नवंबर को दोनों पत्रकार नागरिक विमान से त्रिपुरा की राजधानी अगरतल्ला पहुंची और फिर सड़क मार्ग से धरमपुर। वो झूठ बोलकर होटल में रुकी और गोमती, सिपाहिझला, उनाकोटी और अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों का दौरा किया। उनाकोटी जिले के फतिक्रॉय थाने में पड़नेवाले पॉल बाज़ार जाकर उन्होंने मुसलमानों को हिंदुओं पर हमले के लिए उकसाया और साथ ही हिंदुओं के बारे में आपत्तिजनक बयान देते हुए मुसलमानों को हिंसा के लिए बरगलाया।

जब वहां बात नहीं बनी, तब ओडिशा के झारसुगुड़ा की रहने वाली सकुनिया ने 11 नवंबर को ट्वीट किया कि गोमती जिले के काकराबन थाना क्षेत्र के हुरिजाला में रहमत अली के एक प्रार्थना कक्ष के अंदर हिंदुओं द्वारा कुरान की प्रति जलाई जा रही है।

वीएचपी के कार्यकर्ता की शिकायत

वो तो भला हो विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता कंचन दास का, जिन्होंने फतिक्रॉय थाने को इन दोनों तथाकथित पत्रकारों द्वारा मुसलमानों को भड़काने के प्रयास के बारे में पुलिस को सूचित किया और विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के प्रति उनके विषकथन से भी अवगत कराया। उनकी शिकायत पर धारा 120बी, 153ए और धारा 504 (भारतीय दंड संहिता) के तहत एफ़आईआर दर्ज किया गया है। दोनों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 ए के तहत नोटिस दिया गया था, जिसमें उन्हें 21 नवंबर तक फतिक्रॉय पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा गया है।

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पोल खुलने पर भागने की कोशिश

दूसरी ओर जब पुलिस ने समृद्धि सकुनिया द्वारा कुरान जलाने का ट्वीट देखा तब उनके मंसूबों का पूर्णतः पर्दाफाश हो गया। पुलिस ने आनन फानन में रहमत अली को फोन कर सत्य की पुष्टि की। रहमत अली ने बताया कि मस्जिद पूर्णतः सुरक्षित है और ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं है। यहां तक कि पुलिस को इसका खंडन करने के लिए मस्जिद की तस्वीर जारी करनी पड़ी। आपको बता दें कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले कुरान के अपमान की झूठी खबर के कारण ही हुए थे और महाराष्ट्र के कई शहरों में हिंदुओं पर हमले त्रिपुरा में हिंदुओं द्वारा कुरान को अपमानित करने की झूठी घटना के कारण हुए।

इसीलिए त्रिपुरा पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों से कुरान जलने की खबर का प्रामाणिक साक्ष्य मांगा। इन दोनों ही गिद्ध पत्रकारों की धृष्टता तो देखिये, पुलिस द्वारा साक्ष्य मांगे जाने पर उन्होने पुलिस को घटनास्थल से ही साक्ष्य एकत्रित करने को बोला। लेकिन पुलिस तो सत्य जान चुकी थी और ये बात ये दोनों महिला पत्रकार भी जान चुकी थी।

अतः पुलिस द्वारा बयान दर्ज करने के निर्देशन के बावजूद दोनों पत्रकार चुपके से होटल से भाग गयी। टैक्सी के माध्यम से कुमारघाट होते हुए असम-त्रिपुरा की सीमा पर स्थित चारुबारी पहुंची और करीमगंज होते हुए असम में दाखिल हो गयी, जहां से वो विमान से दिल्ली भागने वाली थी।

झूठे पत्रकारों की गिरफ्तारी और नागरिकों के लिए सीख

उसके बाद असम पुलिस के साथ समन्वय स्थापित करते हुए 14 नवम्बर को करीमगंज के नीलम बाजार से इन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, लड़कियों ने रात को यात्रा करने से साफ माना कर दिया। तब 15 नवम्बर को पुलिस, उन्हें लेकर त्रिपुरा पहुंची। मौजूदा समय में लड़कियां हिरासत में हैं और कार्रवाई चल रही है। पुलिस और पत्रकार दोनों जानते है कि देर सवेर वो बच जाएंगी। परंतु, एक नागरिक के तौर पर आप क्या जानते है, क्या समझते है, और क्या कर सकते है, यह मातृभूमि के लिए महत्वपूर्ण है।

जानना ये है कि हिंदुत्व को बदनाम करने की वामपंथी चाल निष्प्रभावी हो चुकी है, इसके पीछे का कारण हिन्दू जनजागरण है। समझना ये है कि अब ऐसे पत्रकार मिथ्या भ्रम फैलाकर हिंदुओं पर प्रतिघात को और तीव्र करेंगे, स्वयं के लिए झूठी यश-कीर्ति और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का मेडल बटोरेंगे। जहां तक कुछ करने का सवाल है, तो एक नागरिक के तौर पर इनका बहिष्कार करिए! कीर्ति और टीआरपी के इनकी चाह को निंदा और आलोचना से परिष्कृत करिए! सतर्क रहिए और राष्ट्रवादी पत्रकारिता के साथ खड़े रहिए, क्योंकि आजकल सत्य भ्रम और मिथ्या बन चुका है, जिसे आपको पहचानना है!

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