हमने पहले भी कहा था और अब भी कह रहे हैं। कांग्रेस के कुछ सम्मानित सदस्यगण अपनी पार्टी के लिए नहीं बल्कि भाजपा के लिए काम कर रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के नेता भाजपा के लिए एक मजबूत नींव तैयार कर रहे हैं। हाल ही में पंजाब कांग्रेस के आलाकमान नवजोत सिंह सिद्धू ने जो किया है, उससे भाजपा का और सशक्त होना शत प्रतिशत तय है।
नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम कांग्रेस में उनकी महत्व में और किरकिरी जोड़ने के लिए काफी है और कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलग होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने सबसे बढ़िया काम कांग्रेस के लिए किया है। क्या है पूरा मामला! जानेंगे TFI की इस विडियो में मेरे यानी अनिमेष के साथ!
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू शनिवार को गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने के लिए पाकिस्तान की सीमा पार कर गए। ऐसा उन्होंने क्यों किया? इसके पीछे तमाम कारण हो सकते हैं लेकिन उनके इस पाकिस्तान दौरे के पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि वह कांग्रेस से बदला ले रहे हैं। आपको बताते चलें कि उनका नाम पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के दौरे में किसी “तकनीकी गड़बड़ी” के कारण दरबार में जाने से छूट गया था।
पंजाब कांग्रेस प्रमुख सिद्धू ने वीजा मुक्त करतारपुर गलियारे से यात्रा की और शनिवार दोपहर भारत वापस आ गए। आने के बाद उन्होंने अपने आंतरिक पक्ष को सबके समक्ष रखा और पत्रकारों से बात करते हुए सिद्धू ने सीमा पार व्यापार के लिए गलियारा खोलने की वकालत कर दी!
सिद्धू ने ANI के हवाले से कहा, “मैं अनुरोध करता हूं कि यदि आप पंजाब के जीवन को बदलना चाहते हैं, तो हमें सीमाएं खोलनी चाहिए। हमें मुंद्रा बंदरगाह से सामान क्यों आयात करना चाहिए, जो कुल 2100 किलोमीटर है? यहां (करतारपुर कॉरिडोर) से क्यों नहीं, जहां यह केवल 21 किलोमीटर (पाकिस्तान के लिए) है।”
पाकिस्तान के साथ बॉर्डर खोलना तो एक चीज है। नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस को एक बार फिर खटास के महासागर में में उतार दिया है। पंजाब की अमृतसर (पूर्वी) सीट से विधायक सिद्धू ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना “बड़ा भाई” कह नया विवाद खड़ा कर दिया है।
सिद्धू, जो कांग्रेस के राज्य प्रमुख है और अगले साल के चुनाव से पहले अपनी ही पार्टी के एक अविश्वसनीय आलोचक बन गए हैं, वो पाकिस्तान में दरबार साहिब गुरुद्वारा (करतारपुर कॉरिडोर के माध्यम से) का दौरा कर रहे थे। पाकिस्तानी पक्ष द्वारा उनका और उनके दल के सदस्यों का स्वागत किया गया और उन्हें माल्यार्पण किया गया।
अब आज की तारीख में सच को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। वायरल हो रही एक छोटी वीडियो क्लिप में पाक अधिकारी ने प्रधान मंत्री इमरान खान की ओर से सिद्धू को बधाई दी, जिस पर सिद्धू ने जवाब दिया, “धन्यवाद … वह (इमरान खान) मेरे भाई की तरह है … मेरे बड़ा भाई।”
होना क्या था! इसके बाद आलोचनाओं के शब्द मजबूत हो गए और सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धू की जमकर भर्त्सना की।
यह सिर्फ भाजपा नहीं थी जिसने कांग्रेस को फटकार लगाई थी। भाजपा के पूर्व सहयोगी, अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने सिद्धू पर देश के सैनिकों का बार-बार अपमान करने और उनका मनोबल गिराने” के लिए निशाना साधा है।
सिद्धू ने जो लीपापोती की है, खुद कांग्रेस को सिद्धू की आलोचना करनी पड़ी है। कांग्रेस प्रवक्ता और आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी ने ‘बड़ा भाई’ वाली टिप्पणी को लेकर नवजोत सिद्धू पर निशाना साधा दिया।
मनीष तिवारी ने ट्वीट कर कहा, “इमरान खान किसी का भी बड़ा भाई हो सकता है, लेकिन भारत के लिए वह पाकिस्तान स्टेट ISI-मिलिट्री गठबंधन का प्रमुख है जो पंजाब में हथियारों और नशीले पदार्थों को ड्रोन उपलब्ध करता है और जम्मू-कश्मीर में LOC के पार दैनिक आधार पर आतंकवादियों को भेजता है। क्या हम इतनी जल्दी पुंछ में अपने जवानों की शहादत को भूल गए हैं?”
आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब सिद्धू ने यह छीछालेदर किया है। 2018 में भी सिद्धू ने पाकिस्तान सेना प्रमुख बाजवा को गले लगाया था। गले लगाने की एक घटना सिद्धू के गले पड़ गई थी। पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को गले लगाने के लिए अपने वरिष्ठ मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की कड़ी आलोचना करते हुए, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसे “अच्छा इशारा नहीं” बताया था और कहा कि यह “पूरी तरह से टालने योग्य” था।
उस समय अमरिंदर ने कहा था कि बाजवा के प्रति स्नेह दिखाना पंजाब के मंत्री का गलत काम है। मुख्यमंत्री ने कहा, “सिद्धू को इस तरह के कृत्य में शामिल होने से बचना चाहिए था, वो भी तब जब सीमा पर हर दिन भारतीय सैनिक मारे जा रहे हैं। आखिरकार, वह सेना प्रमुख ही है जो मारने का आदेश देता है और सैनिक केवल उसी का पालन करते हैं।”
उस समय इमरान खान का महिमामंडन और तारीफ करते हुए सिद्धू ने कहा था कि वह कोई समझौता नहीं करेंगे, “एक आदमी के चरित्र का पतन समझौते से उपजा है। उसके (इमरान) विचारों की स्पष्टता है, वह सबकी सुनता है लेकिन वह वही करेगा जो उसे सही परिप्रेक्ष्य में लगता है और हमें उसे नीतियां बनाने और लागू करने के लिए कुछ समय देना चाहिए।”
खैर वक्त बदल गया लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू की समस्या वहीं की वहीं है। आज भी वह पाकिस्तान प्रेम से बाहर नहीं निकल सके है। अब देखना यह है कि सिद्धू की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा की विजय होती है या राष्ट्रीय सुरक्षा की विजय होती है और इसबार इसका जवाब जनमत से दिया जाएगा।