‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का दिखा सार्थक परिणाम, अब भारत में हैं प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं

मोदी सरकार की ऐतिहासिक योजनाओं का दिख रहा है असर!

लिंगानुपात

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेतृत्व में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 द्वारा बीते बुधवार को जारी लिंगानुपात के आंकड़ों में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई। अब भारत में पहली बार महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो गई है और नए अंकाड़ों के अनुसार लिंगानुपात 1000 पुरुषों के मुक़ाबले 1020 महिलाएं हैं। स्वतन्त्रता के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब महिलाओं की संख्या पुरुषों की संख्या से आगे निकली है। सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत के लिंगानुपात में 2021 में सुधार हुआ है, जिसमें प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं। मतलब, प्रति 1000 पुरुषों पर 20 अतिरिक्त महिलाएं हैं। अगर इसके कारणों की समीक्षा की जाए तो मौजूदा शासन की भूमिका बेहद अहम है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि लिंगानुपात 1000 को पार कर जाने के साथ ही हम कह सकते हैं कि भारत विकसित देशों के समूह में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इसका श्रेय महिला सशक्तिकरण के लिए किए गए उपायों जैसे वित्तीय समावेश और लैंगिक पूर्वाग्रह तथा असमानताओं से निपटने आदि को जाता है।

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दरअसल, NFHS-5 के लिए सर्वे 17 क्षेत्रीय एजेंसियों द्वारा दो चरणों में किया गया था। चरण-1 को 17 जून, 2019 से 30 जनवरी, 2020 तक तथा चरण-2 को 2 जनवरी, 2020 से 30 अप्रैल, 2021 तक आयोजित किया गया था। NFHS-5 ने 636,699 घरों, 724,115 महिलाओं और 101,839 पुरुषों से जानकारी एकत्र की थी। यही नहीं, जन्म के समय भी लिंगानुपात में सुधार हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा 2015-16 में प्रति 1000 बच्चों पर 919 बच्चियों का था, जो 2019-21 में बढ़कर प्रति 1000 बच्चों पर 929 बच्चियों का हो गया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मिशन निदेशक विकास शील ने सर्वे की घोषणा के बाद कहा कि “जन्म के समय बेहतर लिंगानुपात और लिंग अनुपात भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है; भले ही वास्तविक तस्वीर जनगणना से सामने आएगी, हम अभी के परिणामों को देखते हुए कह सकते हैं कि महिला सशक्तिकरण के हमारे उपायों ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ाया है।”

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पीएम मोदी की योजनाओं का असर

साल 2005-06 में आयोजित NFHS-3 के अनुसार, अनुपात 1000: 1000 के बराबर था। हालांकि, 2015-16 में मोदी सरकार के पहली बार सत्ता में आने के एक साल बाद, लिंगानुपात 991 था। जिसके बाद 6 साल के भीतर, मोदी सरकार ने अपने लक्षित ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और अन्य प्रमुख महिला-केंद्रित योजनाओं के माध्यम से एक ऐसा सामाजिक परिवर्तन की ओर कदम बढ़ाया, जिसके परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के कुछ महीने बाद जनवरी 2015 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की थी। इस योजना को 100 करोड़ रुपये का प्रारंभिक कोष आवंटित किया गया था और उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और दिल्ली जैसे सबसे कम लिंगानुपात वाले राज्यों को लक्षित किया गया था, जहां लिंगानुपात देश के अन्य हिस्सों के मुक़ाबले कम था।

मौजूदा समय में हरियाणा जैसा राज्य भी अब बेहतर प्रदर्शन करते हुए लिंगानुपात में एक बड़ा उछाल हासिल करने में सफल रहा है। सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, इस उत्तरी राज्य में शिशु-बालिका के लिए पिछले पांच वर्षों में (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएं) जन्म के समय लिंग-अनुपात में 57 अंकों की वृद्धि हुई है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को मानव संसाधन विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से समर्थित किया जाता है। 8 मार्च, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजस्थान के झुंझुनू जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा “बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ” योजना के विस्तार के रूप में राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरूआत की गई थी।

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एक तरफ जहां बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम के तहत लोगों को जागरूक किया गया, तो वहीं सरकार द्वारा भ्रूण जांच केन्द्रों पर उचित कार्रवाई करने में भी सक्रिय भूमिका निभाई गई। सरकार ने बड़े पैमाने पर जागरूक अभियान चलाये, जिसके तहत गांवो और अस्पतालों में बेटी के जन्म पर खुशी मनाने की रीति को बढ़ावा दिया गया। इसके अलावा गणतन्त्र दिवस और स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर लड़कियों से ध्वजारोहण कराया गया, ताकि समाज में एक सकारात्मक संदेश दिया जा सके।

ग्राम पंचायतों को लिंगानुपात में सुधार करने के लिए पुरुस्कृत किया गया और शहरों में प्रभात फेरियों का आयोजन किया गया। इतने विस्तृत जागरूक अभियान का ही यह नतीजा निकला कि लोगों ने बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी अपनाना शुरू कर दिया! दूसरी तरफ सरकार ने भ्रूण हत्या और भ्रूण जांच के खिलाफ सख्त कानून बनाए और उन्हें सख्ती से लागू भी किया गया। इससे जमीनी स्तर पर जागरूकता फैली और लोगों को लड़कियों का महत्व समझ आया।

सर्वेक्षण के अन्य निष्कर्ष

इसके अलावा, TFI द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वेक्षण के अन्य निष्कर्षों के मुताबिक देश में कुल प्रजनन दर (प्रति महिला बच्चे) प्रजनन क्षमता के ‘प्रतिस्थापन’ स्तर पर पहुंच गई है, जो एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय उपलब्धि है। साल 2015-16 में कुल प्रजनन दर 2.2 थी, जो साल 2019-21 में प्रति महिला 2.0 बच्चों तक पहुंच गई है। भारत पिछले कुछ वर्षों से ऐसे कई समस्याओं को समाप्त करने में लगा हुआ है, जिन्हें वर्षों तक अनदेखा किया गया था। लिंगानुपात में यह बदलाव इसी परिवर्तन का प्रमाण है।

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