किसी को जीवन में इतने अधिक दुःख-दर्द दे दो कि वो अपने जीवित रहने को भी विकास का पर्याय मानने लगे। सुनने में ये अजीब लग सकता है, किन्तु बिहार की सच्चाई यही है! 15 वर्ष पहले जिस जंगलराज के समूल नाश का नारा देकर आरजेडी के लालू प्रसाद यादव के खिलाफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजनीतिक बिगुल फूंका था, उस जंगलराज की स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ है। बिहार में सुशासन सिर्फ नीतीश कुमार के ट्वीटर हैंडल और उनके मंत्रियों के जुबान पर ही होता है, जमीनी स्तर पर स्थिति आज भी बदतर ही है! इसका हालिया उदाहरण बिहार के मधुबनी में संदिग्ध हालात में हुई एक युवा पत्रकार बुद्धिनाथ झा उर्फ अविनाश की मौत है, जिनकी निर्भीक पत्रकारिता मधुबनी के निजी अस्पतालों का पर्दाफाश कर रही थी। उनकी मौत के साथ ही ये सवाल उठने लगे हैं कि नीतीश कुमार आखिर किस तथ्य के दम पर ये कहते हैं कि बिहार में जंगलराज समाप्त हो गया है, क्योंकि जंगलराज की स्थिति तो बनी हुईं है।
पत्रकार की संदिग्ध मौत
बिहार में यदि सबसे बड़ी कोई समस्या है, तो वो कानून व्यवस्था की ही है। वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के शासन को जंगलराज बताकर, जब पहली बार जेडीयू नेता नीतीश कुमार एनडीए के नेतृत्व में मुख्यमंत्री बने थे, तो उनका कहना केवल यही था कि बिहार को जंगलराज से मुक्त कर देंगे। संभवत इसी कारण से उन्होंने राज्य का गृह मंत्रालय भी अपने पास रखा, किंतु क्या इन हवा-हवाई बातों से जमीनी स्तर पर कोई प्रभाव पड़ा है, निश्चित ही नहीं…। इसका उदाहरण है पत्रकार बुद्धिनाथ झा उर्फ अविनाश की संदिग्ध मौत!
खबरों के अनुसार, बिहार के मधुबनी जिले में बीते 4 दिनों से लापता एक स्वतंत्र पत्रकार की हत्या कर दी गई, उनका शव शुक्रवार देर रात बेनीपट्टी-बसैठ राजमार्ग संख्या-52 के पास उरेन गांव में पेड़ के नीचे पड़ा मिला। इस घटना ने एक बार फिर राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं।
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निजी अस्पतालों का कर रहे थे पर्दाफाश
बिहार में अस्तपालों की स्थिति सर्वविदित है, ऐसे में अपनी निर्भीक पत्रकारिता से बुद्धिनाथ राज्य के मधुबनी जिले के अस्पताल का काला सच सामने लाने का प्रयास कर रहे थे, और एक नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी वो लगातार काम कर रहे थे। मृतक पत्रकार के भाई चंद्रशेखर कुमार ने 4 दिन से गायब अपने भाई की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया था कि, “भाई बीते सालों से बेनीपट्टी में चले रहे फर्जी नर्सिंग होम पर कार्रवाई के लिए कागजी प्रक्रिया कर रहा था। 9 नवंबर की रात से अविनाश गायब था। किसी गहरी साजिश के तहत बेनीपट्टी के स्थानीय अस्पताल संचालकों ने भाई को लापता कर दिया था।”
एक्शन में पुलिस
मृतक पत्रकार का शव मिलने के बाद से ही पुलिस जांच में जुटी हुई है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि बुद्धिनाथ को 4 दिन पहले ही मार दिया गया था, जिस दिन से वो गायब थे। वहीं, अपराधियों की धरपकड़ भी शुरू हो गई है। बेनीपट्टी इलाके के एसएचओ अरविंद कुमार का कहना है कि “सभी बिंदुओं पर जांच की जा रही है। इस मामले में लगातार छापेमारी जारी है और कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है।”
बताया जा रहा है कि पुलिस इस केस में उस अस्पताल के मैनेजमेंट की भी जांच करेगी, जिससे संबंधित खुलासे लगातार बुद्धिनाथ कर रहे थे। वहीं, इस मामले में बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार एक सर्जन डॉक्टर सुनील कुमार झा ने कहा, “मारे गए पत्रकार बुद्धिनाथ झा लगातार निजी नर्सिंग होम के ख़िलाफ़ शिकायतें करते थे। उनकी शिकायतों पर बेनीपट्टी के चार नर्सिंग होम पर कुछ माह पहले ही 50-50 हज़ार का जुर्माना लगाया गया था।”
ऐसा नहीं है कि अविनाश अचानक ही नर्सिंग होम से संबंधित खुलासे करने लगें, अपितु इसको लेकर उनके भाई त्रिलोक ने महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उन्होंने बताया, “पहले उसने एक क्लिनिक शुरू किया था, जिसमें बाहर से आए डॉक्टर स्थानीय लोगों का इलाज करते थे। लेकिन स्थानीय नर्सिंग होम संचालकों ने उसे इतना परेशान किया कि उसे ये काम बंद करना पड़ा। इसके बाद उसने ठान लिया कि वो फ़र्जी नर्सिंग होम के इस धंधे को खत्म करेगा।” स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी आपबीती से सबक लेकर नर्सिंग होम के नाम पर धंधा चला रहे व्यापारियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और यही अभियान उनके लिए मौत का सबब बन गया।
नीतीश शासन पर सवाल
बुद्धिनाथ झा उर्फ अविनाश की संदिग्ध हत्या के बाद एक बार फिर बिहार में पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं, किंतु इन सब में एक बड़ा सवाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन पर भी खड़ा हुआ है। हाल ही में बिहार के चंपारण में भी मनीष कुमार सिंह नामक एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जो सुदर्शन टीवी में काम करते थे। उन्हें भी अपहरण के बाद मौत के घाट उतार दिया गया था। पिछले 1-2 सालों में राज्य में ऐसे मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है, जो इस बात का संकेत है कि बिहार में पत्रकारों की सुरक्षा ना के बराबर है। खास बात यह भी है कि अविनाश के परिजनों ने इस हत्याकांड के लिए नीतीश सरकार में मंत्री लेसी सिंह और उनके भतीजे को ही जिम्मेदार ठहराया है, जो कि नीतीश कुमार के लिए एक नई परेशानी का पर्याय होगा।
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गौरतलब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रत्येक चुनावों में बिहार की जनता को यही डर दिखाते हैं कि यदि उनके अलावा आरजेडी की जीत होती है, तो बिहार पुनः 2005 के लालू शासन के जंगल राज में चला जाएगा, किंतु उनके सत्ता में बैठने के बाद भी पिछले 15 वर्षों में बिहार की कानून व्यवस्था में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की कानून व्यवस्था को संभाल पाने में विवश रहे हैं, जबकि पिछले 15 वर्षों से गृह मंत्रालय हमेशा उन्होंने अपने पास ही रखा है।
बताते चलें कि नीतीश कुमार के शासन का सीधा नुकसान बिहार की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी के मत्थे भी आएगा। ऐसे में अब आवश्यकता है कि नीतीश की नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए भाजपा उन पर सत्ता से हटने का दबाव बनाए और राज्य में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा उतारे, वरना नीतीश अपने आखिरी कार्यकाल में भाजपा को राजनीतिक कुएं में गिरा देंगे!