Hindustan Zinc Ltd की कहानी: अनिल अग्रवाल की सबसे बड़ी सफलता और बिड़ला का सबसे बड़ा अफसोस

विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जस्ता उत्पादक है Hindustan Zinc Ltd.

हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड

जब से प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यभार संभाला है, उन्होंने भारत के विकास की कहानी में बड़े कॉरपोरेट्स को भी शामिल किया है। कॉरपोरेट घरानों के बीच से प्रतिस्पर्धात्मक खबरें भी सामने आती रहती हैं। मंगलम बिड़ला का हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को लेकर दिया गया बयान इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। आदित्य बिड़ला समूह के मालिक कुमार मंगलम बिड़ला ने हाल ही में एक भारतीय एकीकृत खनन कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) के स्वामित्व का अधिग्रहण करने में सक्षम न होने पर असंतोष व्यक्त किया और इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा अफसोस बताया। बिड़ला, इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) के साथ एक संवाद सत्र को संबोधित कर रहे थे।

दुनिया के चौथे सबसे बड़े जिंक-लेड स्मेल्टर (HZL) को खोने पर अपने दशक के लंबे दर्द को व्यक्त करते हुए, बिड़ला ने कहा, “हिंदुस्तान जिंक वास्तव में बहुत कम अंतर से हमने खो गया है, और मुझे लगता है कि हमने कुछ विवरणों पर ध्यान न देने कारण खोया।” उन्होंने आगे कहा कि, “इससे मैंने जो सीख ली है, वह यह है कि विवरण में ही सफलता है। हम थोड़े से के लिए चूक गए। यह जोड़ने के लिए एक अच्छा निवेश हो सकता था … मुझे लगता है कि आप जो विवरण कर सकते हैं, उसका कोई अंत नहीं है, जो कि एक स्मार्ट तरीका है। “

हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में 70 प्रतिशत से अधिक है वेदांता की हिस्सेदारी

वर्तमान में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता समूह के पास है। वेदांता के पास कंपनी में 70.46 प्रतिशत के कुल स्वामित्व के साथ बहुसंख्यक हिस्सेदारी है, जबकि 29.54 प्रतिशत भारत सरकार के पास है। वहीं, HZL दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जस्ता उत्पादक है। जिंक को गलाने के मामले में यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा जिंक स्मेल्टर है। यही नहीं, यह दुनिया के शीर्ष 10 चांदी उत्पादकों में से भी एक है।

हालांकि, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड का 77 साल का लंबा इतिहास है। कंपनी पहली बार साल 1944 में भारत के स्वतंत्रता के पूर्व अस्तित्व में आई थी। इसका नाम मेटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया रखा गया था। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को 1966 में तत्कालीन मेटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से निगमित किया गया था। आरंभ में यह पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) था। 25 से अधिक वर्षों तक इसने जस्ता, सीसा, चांदी और कैडमियम के खनन और उत्पादन की अलग-अलग समाजवादी सरकारों की परियोजनाओं को पूरा किया।

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1991 के बाद सरकार ने शुरू किया हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड का विनिवेश

1990 के  दशक में जैसे ही भारत ने दुनिया के लिए अपना बाजार खोलना शुरू किया, सार्वजनिक उपक्रमों पर नियंत्रण कम करने की मांग बढ़ने लगी और तब भारत सरकार द्वारा हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड का स्वामित्व भी इसी चपेट में आ गया। इस प्रकार, सरकार ने खनन कंपनी पर अपना नियंत्रण समाप्त करने का निर्णय लिया। हालांकि, सरकार ने कंपनी के विनिवेश में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और इसे कई भागों में विनिवेश करने का फैसला किया।

विनिवेश के पहले भाग में सरकार ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी का 24.08 फीसदी हिस्सा बाजार में जारी किया। वित्तीय संस्थानों द्वारा 12.54 प्रतिशत, कॉर्पोरेट निकायों और अनिवासी भारतीयों द्वारा 7.58 प्रतिशत और भारतीय नागरिकों द्वारा 3.96 प्रतिशत का अधिग्रहण किया गया था। तब HZL को भी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किया गया था। दूसरी किश्त में, श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 प्रतिशत शेयर का विनिवेश करने का निर्णय लिया। इसमें वेदांता समूह ने सबसे ज्यादा बोली लगाकर जीत हासिल की थी।

4 अप्रैल, 2002 को, सरकार ने Sterlite Opportunities & Ventures Ltd (SOVL), के साथ एक शेयर खरीद समझौते पर हास्ताक्षर किया। एक सप्ताह के भीतर, SOVL ने भारत सरकार द्वारा रखे गए अन्य 20 प्रतिशत शेयरों का अधिग्रहण कर लिया। SOVL इसे खुले बाजार में एक अनिवार्य प्रस्ताव के माध्यम से अधिग्रहण किया था।

अगस्त 2003 में, SOVL ने कॉल ऑप्शन के माध्यम से सरकार के स्वामित्व वाले 18.92 प्रतिशत शेयरों पर अपना अधिकार कर लिया। नवंबर 2003 में हस्तांतरण को अंतिम रूप दिया गया। इसके साथ, कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के 64.92 प्रतिशत शेयरों की मालिक बन गई। बाद में, भारत सरकार ने अपनी शेष 29.54 प्रतिशत की हिस्सेदारी को कंपनी में निवेश करने का निर्णय लिया। हालांकि, विनिवेश की प्रक्रिया आसान नहीं थी।

विनिवेश कार्यवाही में उत्पन्न हुई कई बाधाएं

नवंबर 2003 में, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा SOVL को 26 प्रतिशत शेयर के हस्तांतरण के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इसे बाद में 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपने 29.54 प्रतिशत बचे हुए हिस्से को बेचने की अनुमति दी, साथ ही, कोर्ट ने 2002 में 26 प्रतिशत शेयरों के विनिवेश में कथित अनियमितताओं की CBI जांच का भी निर्देश दिया। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि चूंकि वेदांत समूह के पास अधिकांश हिस्सेदारी है, इसलिए मोदी सरकार द्वारा विनिवेश के लिए उसे ही शेष 29.54 प्रतिशत हिस्सेदारी के स्वामित्व के लिए चुना जाएगा।

वर्तमान में, यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ओपन-पिट खदान और राजस्थान के रामपुरा अगुचा में दुनिया की सबसे बड़ी जिंक खदान का संचालन करती है, जिसमें कुल जस्ता और सीसा उत्पादन क्षमता 10 लाख टन है। कंपनी अपने वित्तीय मानकों में इतनी बड़ी है कि विनिवेश का केवल 29.54 प्रतिशत से ही सरकारी खजाने में कुल 40,000 करोड़ रुपये जोड़ेगी।

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विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जस्ता उत्पादक है HZL

देखा जाए तो वेदांता समूह देश के लिए खनन के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है। कुछ वर्ष पहले लेफ्ट ब्रिगेड के प्रायोजित प्रोपेगेंडे के कारण इस समूह को अपने कॉपर प्लांट को बंद करना पड़ा था, जिसका नुकसान देश को भी हुआ था और कॉपर आयात करने की नौबत आ गयी थी। भारत में अपने कॉपर के कारोबार के एक बड़े हिस्से के नुकसान के बाद, अगर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड का स्वामित्व अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाली वेदांता समूह को मिलता है, तो यह किसी बूस्टर से कम नहीं होगा। जिस प्रकार से आज Hindustan Zinc Ltd आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जस्ता उत्पादक है, और आगे इसके नंबर एक होने की भी उम्मीद की जा सकती है। HZL की सफलता देख कर ही, आज कुमार मंगलम बिड़ला इसका अधिग्रहण न कर पाने के कारण इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा अफसोस बता रहे हैं।

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