दिल्ली विश्वविद्यालय: जिसे आपके भेड़चाल ने बनाया महान

बेमतलब की प्रतिस्पर्धा, पुरानी इमारतें, लंबी कतारें और राजीनीति, फिर भी DU में जाना चाहते हैं देश भर के बच्चे

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र

सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात विद्या मुक्ति का मार्ग है परन्तु दिल्ली विश्वविद्यालय से किसी भी छात्र के लिए शिक्षा प्राप्त करना मुक्ति से भी दुर्लभ है। कारण इसको लेकर हमारा ऑब्सेशन है। किसी भी परीक्षा को श्रेष्ठ या तो उसके प्रश्नपत्र की गुणवत्ता या प्रतियोगियों की प्रतिस्पर्धा बनती है। यहां की ना तो पढ़ाई में गुणवत्ता है ना प्रतियोगिता नें बस भेेड़चाल ने इसके कट ऑफ को 100 प्रतिशत पहुंचा दिया है।

आइए, कुछ अपवाद स्वरूप कॉलेजों को छोड़कर, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्तर्गत है आते है, हम आपको यहां के यथार्थ से परिचित करवाते है।

लंबी कतारें

दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाला कोई भी छात्र कभी न कभी चिलचिलाती धूप में घंटों कतारों में खड़े रहने का आदी हो जाता है। यह आदत प्रवेश प्रक्रिया से ही छात्रों पर थोपी जाती है। लंबी कतारों का होना दरसअल एक संस्थान के गलत प्रबंधन का परिचायक है लेकिन स्वयं को निरर्थक रूप से महिमामंडित कर दिल्ली विश्वविद्यालय ने इसे गर्व का विषय बना दिया है।

दुर्दशा के हालात में संस्थान और क्लासरूम

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश कॉलेजों की अधिकांश कक्षाओं में सिर्फ पंखे हैं, जो या तो धीमे हैं या बिल्कुल भी काम नहीं करते। दुनिया केंद्रीकृत एयर कंडीशनर और स्मार्ट कक्षा के शैक्षणिक व्यवस्था की ओर मुड़ रही है, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की लचर सुविधाओं वाले क्लासरूम अपने छात्रों की उम्मीदों पर पानी फेरते है।

डीयू कॉलेजों के बुनियादी ढांचे की ना तो मरम्मत की गई है और न ही सुधारा गया है। पुरानी ईंटें, दागी दीवारें और चिपके हुए पेंट खराब पृष्ठभूमि बनाते हैं और विदेशी छात्रों के सामने शर्मिंदगी का कारण बनते है।

“नो अटेंडेंस”

उपस्थिति रिकॉर्ड रखने के लिए कोई डिजिटल साधन नहीं हैं। प्राध्यापक स्वयं उपस्थिति लेते हैं या कभी-कभी कक्षा में उपस्थिति पत्रक परिचालित किया जाता है। छात्र और शिक्षकों के बीच उपस्थिति को लेकर एक मौन गठजोड़ है। छात्रों की अनुपस्थिति पर शिक्षक कुछ नहीं बोलते और शिक्षकों की अनुपस्थिति पर बहुल छात्र वर्ग। कॉलेज सिर्फ मौज-मस्ती, अय्याशी, वामपंथी राजनीति और धरनेबाजी की जगह बन गई है। अगर पढ़ाई करनी है तो आप घर पर ही पढ़ें।

परन्तु, मुख्य प्रश्न तो ये है कि आखिरकार फिर भी यहां से इतने मेधावी छात्र कैसे निकलते है ?

आरक्षण और कठिन मानक

कहावत है- “होनहार बिरवान के होत चिकने पात” अर्थात जो नैसर्गिक रूप से प्रतिभाशाली है वो तो कीचड़ में भी कमल समान खिल उठेगा। थकाऊ भर्ती प्रक्रिया, लंबी कतारें, कोटा सिस्टम, आरक्षण और नेताओं की सिफारिशों ने दिल्ली विश्वविद्यालय को सामान्य छात्रों के लिए दूभर बना दिया है जिससे या तो यहां पर अति उत्कृष्ट या अत्यंत निकृष्ट छात्रों का ही चयन संभव हो पाता है। ऐसे माहौल में कुछ मेधावी छात्र अवश्य सफलता प्राप्त कर लेते है। परन्तु, इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय का कोई श्रेय नहीं है उल्टे ऐसे छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए ब्रांड एंबेसडर का काम करे है। इस साल सामान्य कट ऑफ 100 प्रतिशत था। आप स्वयं अंदाज़ा लगा सकते है कि दिल्ली विश्वविद्यालय सिर्फ मेधावी छात्रों के लिए छननी का कार्य करता है।

इस साल, विश्वविद्यालय में लगभग 70,000 सीटों के लिए कुल 4,38,696 उम्मीदवारों ने पंजीकरण कराया। हालांकि, अधिकांश सीटों पर प्रवेश उन लोगों के लिए आरक्षित था, जिन्होंने 100 प्रतिशत अंक की बाधा को तोड़ दिया था। 95% से कम प्रतिशत वाला कोई भी व्यक्ति व्यावहारिक रूप से विश्वविद्यालय में अपने मन-मुताबिक कोर्स में प्रवेश नहीं प्राप्त कर पता।

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क्षेत्रवाद और वामपंथ का वर्चस्व

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अपने गुट के साथ-साथ चलते हैं और गर्व से शेखी बघारते हैं। विश्वविद्यालय/महाविद्यालय का नाम अपेक्षा को बढ़ाता है, लेकिन प्रतिभाशाली होने की आवश्यकता को कम नहीं करता है। अभी हाल ही में TFI द्वारा खुलासा किया गया था कि कैसे केरला अपने छात्रों को अधिकाधिक अंक देकर दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू जैसे संस्थानों पर वैचारिक कब्ज़ा करना चाहता हैl  गुटबाजी, क्षेत्रवाद और वामपंथ ने इस शिक्षक संस्थान को अपने कब्जे में ले लिया है।

DUSU, DUTA, धरना, हड़ताल

दिल्ली विश्वविद्यालय में एक छात्र संघ (DUSU) और एक शिक्षक संघ (DUTA) है। चुनाव का समय थोड़ा बदसूरत और हिंसक भी हो जाता है। लगातार रैलियों और हड़तालों के साथ, परिसर का समग्र वातावरण अप्रिय और अक्सर असुरक्षित हो जाता है। इन सब से ऊपर यह शैक्षणिक माहौल के साथ साथ गुरु शिष्य परंपरा को ब्बी प्रभावित करता है।

दौड़ते रहो या फिर किसी राजनीतिक छात्र  संघ से जुड़ो

दिल्ली विश्वविद्यालय बड़ा है, बल्कि बहुत बड़ा है, जिसमें बहुत सारे अधिकारी, बहुत सारी खिड़कियों में बहुत सारे काउंटरों पर बैठते हैं।प्रवेश हो, शुल्क भुगतान या परीक्षा परिणामों का पुनर्मूल्यांकन आपका अनुरोध बस एक खिड़की से दूसरी खिड़की तक प्रसारित होता रहेगा, जब तक आप थककर किसी राजनीतिक छात्रा संगठन के कार्यकर्ता नहीं बन जाते।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, दिल्ली विश्वविद्यालय को 2021 की क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में 474वां स्थान दिया गया।  इसके अलावा कुल 71 भारतीय विश्वविद्यालयों ने टाइम्स हायर एजुकेशन  वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022 में जगह बनाई, जो पिछले साल 63 थी। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) – सूची में एक नियमित, लगातार तीसरे वर्ष 301-350 बैंड में क्रम प्राप्त किया। आईआईटी-रोपड़ और जेएसएस एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन ने खुद को 351-400 बैंड के बीच पाया, जबकि आईआईटी इंदौर 401 और 500 के बीच चौथे स्थान पर है। विश्वविद्यालय द्वारा अनुसरण किया जाने वाला पाठ्यक्रम अत्यंत पुराना है और अब लगभग 10 वर्षों में इसका पुनरीक्षण भी नहीं किया गया है।शिक्षकों में असंतोष हैै और छात्र असंतुष्ट है।

देश में चल रहे विकास के साथ, छात्रों को प्रासंगिक विषयों को पढ़ाया जाना चाहिए जो वास्तव में उनके परास्नातक और उनके भविष्य के करियर के लिए उनकी मदद करते हैं। इसके साथ  साथ उनके वामपंथ और क्षेत्रवाद की जगह राष्ट्रवाद संचयन करते है।

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